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उज्जयिनी में राजा चंद्रसेन का राज था। वह भगवान शिव का परम भक्त था। शिवगणों में मुख्य मणिभद्र नामक गण उसका मित्र था। एक बार मणिभद्र ने राजा चंद्रसेन को एक अत्यंत तेजोमय ‘चिंतामणि’ प्रदान की। चंद्रसेन ने इसे गले में धारण किया तो उसका प्रभामंडल तो जगमगा ही उठा, साथ ही दूरस्थ देशों में उसकी यश-कीर्ति बढ़ने लगी। उस ‘मणि’ को प्राप्त करने के लिए दूसरे राजाओं ने प्रयास आरंभ कर दिए। कुछ ने प्रत्यक्षतः माँग की, कुछ ने विनती की।

एक समय की बात है, तीन बैल गहरे मित्र थे| वे एक साथ रहते, चरते और खेलते थे| उसी क्षेत्र में एक शेर भी था, जो बैलों को मारकर खा जाना चाहता था| कई बार वह आक्रमण कर चुका थ, मगर हर बार वे तीनों सिर बाहर करके त्रिकोण-सा घेरा बना लेते थे थे तथा अपने तेज और मजबूत सींगो से अपनी सुरक्षा करते थे| बैल शेर को भगा देते थे|

एक समय की बात है| महात्मा बुद्ध का एक शिष्य उनके पास गया| महात्मा के चरणों में झुककर प्रणाम कर निवेदन किया- “भगवान् मुझे देश के ऐसे अंचल में जाने की अनुमति दें जहाँ अत्यंत क्रूर और भयंकर जन-जातियाँ रहती हों|”