अध्याय 32
1 [ष]
जाता वै भुजगास तात वीर्यवन्तॊ दुरासदाः
शापं तं तव अथ विज्ञाय कृतवन्तॊ नु किं परम
“Bhishma said, ‘The fowler, O king, happened to see that pair whileseated on their celestial car. Beholding the couple he became filled withsorrow (at the thought of his own misfortune) and began to reflect uponthe means of obtaining the same end.
नगर के बाहर बने शिव मंदिर में ताम्रचूड़ नामक एक सन्यासी रहता था, जो उस नगर में भिक्षा माँगकर बड़े सुख से अपना जीवन व्यतीत कर रहा था| वह अपने खाने-पीने से बचे अन्न-धान्य को एक भिक्षा पात्र में रख देता और फिर उस पात्र को रात्रि में खूंटी पर लटकाकर निश्चिंतता से सो जाया करता था| प्रातकाल ताम्रचूड़ स्नान-पूजादि से निवृत होकर उस अन्न-धान्य आदि को मंदिर के बाहर बैठनेवाले भिखारियों में बाँट देता था|
गंगा के किनारे खड़ी नाव में सभी यात्री बैठ चुके थे। बगल में ही युवक खड़ा था। नाविक ने उसे बुलाया, पर चूंकि उसके पास नाविक को उतराई देने के लिए पैसे नहीं थे, इसलिए वह नाव में नहीं बैठा और तैरकर घर पहुंचा।
“Sanjaya said, ‘Then Drona’s son began to cause a great carnage amongsthis foes in that battle, like the Destroyer himself at the end of theYuga.
“Vaisampayana said, ‘Having reached that Sami tree, and havingascertained Virata’s son to be exceedingly delicate and inexperienced inbattle, Partha addressed him, saying, ‘Enjoined by me, O Uttara, quicklytake down (from this tree) some bows that are there.
“Vaisampayana said,–Beholding that vast assembly of kings agitated withwrath, even like the terrific sea agitated by the winds that blow at thetime of the universal dissolution, Yudhishthira addressing the agedBhishma, that chief of intelligent men and the grandsire of the Kurus,even like Puruhita (Indra) that slayer of foes, of abundant energyaddressing Vrihaspati, said,–‘This vast ocean of kings, hath beenagitated by wrath.
पृथु नामक एक कर्मनिष्ठ ब्राह्मण थे| वे प्रतिदिन संध्या, होम, तर्पण, जप-यज्ञ आदि धार्मिक कार्यों में लगे रहते थे| उन्होंने मन और इन्द्रियों को वश में कर लिया था|