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महाराज रन्तिदेव मनु के वंश में उत्पन्न हुए थे, इनके पिता का नाम सुकृत था| महाराज रन्तिदेव में मानवता कूट-कूट कर भरी हुई थी| ये प्राणीमात्र में भगवान् को देखा करते थे|

किसी जंगल में चंडल नाम का श्रृंगाल रहता था| एक बार भूख के कारण एक नगर में घुस गया| बस फिर क्या था नगर के कुत्ते उसे देखते ही भौंकने लगे| उसके पीछे-पीछे थे वह बेचारा आगे-आगे भाग रहा था|

एक राजा अपने दरबारियों से पौराणिक आख्यान सुना करता था। एक मंत्री ने राजा को इंद्र और उनके स्वर्ग की कथा सुनाई। राजा ने कहा- मंत्रीजी! स्वर्ग की बात मुझे तो गप लगती है। मंत्री बोला- महाराज! स्वर्ग तो वास्तव में होता है।