अध्याय 284
1 [पराषर]
एष धर्मविधिस तात गृहस्थस्य परकीर्तितः
तपस्विधिं तु वक्ष्यामि तन मे निगदतः शृणु
1 [वै]
ततॊ ऽभिषेका संभारान सर्वान संभृत्य शास्त्रतः
बृहस्पतिः समिद्धे ऽगनौ जुहावाज्यं यथाविधि
स्त्री या पुरुष घुटनों पर हाथ रखकर उठता है तो समझ लेना चाहिए कि वह वृद्ध हो चला है और उसके घुटनों में दर्द बनने लगा है| ऐसी अवस्था में घुटनों के दर्द से बचने के लिए उचित उपचार तथा आहार-विहार का पालन करना चाहिए|
1 [बर]
यः सयाद एकायने लीनस तूष्णीं किं चिद अचिन्तयन
पूर्वं पूर्वं परित्यज्य स निरारम्भकॊ भवेत
“Bhishma said, ‘This thy maternal uncle Sakuni is, O king, equal to asingle Ratha. Having caused the (present) hostilities (to break out) withthe sons of Pandu, he will fight.
-Sanjaya said, ‘After that army had (thus) been routed, and Arjuna andBhimasena had all gone after the ruler of the Sindhus, thy son(Duryodhana) proceeded towards Drona.
“Draupadi said, ‘I do not ever disregard or slander religion, O son ofPritha! Why should I disregard God, the lord of all creatures?
की बेदर्दों के संग यारी?
रोवण अखियां ज़ारो-ज़ारी| टेक|
उज्जयिनी में राजा चंद्रसेन का राज था। वह भगवान शिव का परम भक्त था। शिवगणों में मुख्य मणिभद्र नामक गण उसका मित्र था। एक बार मणिभद्र ने राजा चंद्रसेन को एक अत्यंत तेजोमय ‘चिंतामणि’ प्रदान की। चंद्रसेन ने इसे गले में धारण किया तो उसका प्रभामंडल तो जगमगा ही उठा, साथ ही दूरस्थ देशों में उसकी यश-कीर्ति बढ़ने लगी। उस ‘मणि’ को प्राप्त करने के लिए दूसरे राजाओं ने प्रयास आरंभ कर दिए। कुछ ने प्रत्यक्षतः माँग की, कुछ ने विनती की।