एकलव्य की गुरुभक्ति
आचार्य द्रोण राजकुमारों को धनुर्विद्या की विधिवत शिक्षा प्रदान करने लगे। उन राजकुमारों में अर्जुन के अत्यन्त प्रतिभावान तथा गुरुभक्त होने के कारण वे द्रोणाचार्य के प्रिय शिष्य थे।
आचार्य द्रोण राजकुमारों को धनुर्विद्या की विधिवत शिक्षा प्रदान करने लगे। उन राजकुमारों में अर्जुन के अत्यन्त प्रतिभावान तथा गुरुभक्त होने के कारण वे द्रोणाचार्य के प्रिय शिष्य थे।
“Sanjaya said, ‘Hear, O king, with attention, how that great carnage ofthe Kurus and the Pandavas occurred when they encountered each other.
जैसे-जैसे होली का दिन समीप आ रहा था, कृष्ण की बेचैनी बढ़ती जा रही थी। इसी बीच उनका मन कई बार चाहा कि वे स्वयं रथ हाँकें और सुरक्षाकर्मियों, को चकमा दे कर तीव्र गति से ब्रजप्रदेश पहुँच जाएँ, परंतु नटवरलाल सुरक्षाकर्मियों के समक्ष जैसे विवश हो गए थे।
किसी नगर में एक महा विद्वान ब्राह्मण रहता था| विद्वान होने पर भी वह अपने पूर्वजन्म के कर्मों के फलस्वरूप चोरी किया करता था| एक बार उसने अपने नगर में ही बाहर से आए हुए चार ब्राह्मणों को देखा|
हमारे देश में तुलसी का पौधा घर-घर में मिलता है| तुलसी का अर्थ है – तु’ से भौतिक, ‘ल’ से दैविक और ‘सी’ से आध्यात्मिक तापों का संहार करने वाली| इसका पौधा लगभग 3-4 फुट ऊंचा होता है|
“Yudhishthira said, ‘When a king becomes desirous of making gifts in thisworld, what, indeed, are those gifts which he should make, O best of theBharatas, unto such Brahmanas as are possessed of superioraccomplishments?
1 [व]
तस्मिन संप्रस्थिते कृष्णा पृथां पराप्य यशस्विनीम
आपृच्छद भृशदुःखार्ता याश चान्यास तत्र यॊषितः