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राजा ब्रह्मादत्त वाराणसी या काशी में शासक थे| उनके अमात्य बोधिसत्व थे| एक बार राजमहल की रानियाँ कपड़े और गहने उतार और उन्हें दासी को सौंपकर सरोवर में स्नान करने लगी| दासी को ऊंघती देखकर एक बंदरिया मुक्ताहार ले भागी| जागने पर मुक्ताहार न देखकर दासी चिल्लाई- “एक आदमी मुक्ताहार लेकर भाग गया|”

यह भारतीय नारी के हाथ-पैरों के श्रृंगार के प्रतीक के रूप में ही नहीं, बल्कि शरीर के स्वास्थ्य के रूप में भी विख्यात है| साथ ही यह नारी के सौभाग्य का चिह्न भी है, निरोगता का साधन भी है| इसके पत्ते वमन कारक, कफ निस्सारक, शरीर की दाह को शांत करने वाले एवं कुष्ठ में लाभप्रद हैं| इस के फूल उत्तेजक, हृदय तथा मज्जा-तंतुओं को बलशाली बनाते हैं| बीज मलारोधक, ज्वरनाशक और उन्माद में लाभ पहुंचाने वाले होते हैं| यह शीतवीर्य है|

सुश्रुत, वागभट्ट आदि प्राचीन आचार्यों ने औषधि विज्ञान में चूने का महत्वपूर्ण स्थान रखा है| शरीर की हड्डियों को मजबूत करने के लिए कैलशियम नामक तत्त्व को बहुत उपयोगी माना जाता है और वह कैलशियम चूने में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है| चूना जंतु-नाशक है, चूना में क्षार अधिक मात्रा में पाया जाता है| चूने में पाया जाने वाला कैलशियम सर्व प्रकार के प्रदाहिक सूजन में लाभ करता है| इसे चूने के पानी के रूप में प्रयोग किया जाता है| चूने के पानी के रूप में प्रयोग किया जाता है| चूने का पानी आम्ल-नाशक होता है|