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गंगा नदी के तट पर भगवान का एक परम भक्त नित्य पूजा-पाठ व ध्यान करता था। वह प्रात:काल आता, स्नान करता और आसन लगाकर बैठ जाता। भगवान की भक्ति में जो रमता तो घंटों बिता देता। उसकी यह विशेषता थी कि पूजा या ध्यान के समय कैसी भी विघ्न-बाधाएं आतीं, किंतु वह अपने आसन से टस से मस नहीं होता।