अध्याय 186
1 [य]
आचारस्य विधिं तात परॊच्यमानं तवयानघ
शरॊतुम इच्छामि धर्मज्ञ सर्वज्ञॊ हय असि मे मतः
सूफी-संतों में राबिया का स्थान बहुत ऊंचा था| वे बड़ी सादगी का जीवन बितातीं थीं और सबको बेहद प्यार करती थीं| ईश्वर में उनकी अगाध श्रद्धा थी| उन्होंने अपना सब कुछ उन्हीं को सौंप रखा था|
OM! HAVING BOWED down unto Narayana, and Nara the foremost of malebeings, and unto the goddess Saraswati, must the word Jaya be uttered.
“Bhishma continued, ‘In this connection is also cited the old narrativeof the verses sung by Janaka the ruler of the Videhas, who had attainedto tranquillity of soul.
बंगाल के एक सुन्दर गांव में एक निर्धन ब्राह्मण अपनी पत्नी के साथ बहुत तंगहाली में रह रहा था| दोनों घर-घर जाकर भिक्षा मांगते, तब कहीं उन्हें दो जून रोटी नसीब होती थी|
Sanjaya said,–“Unto him thus possessed with pity, his eyes filled andoppressed with tears, and desponding, the slayer of Madhu said thesewords.”
“Vaisampayana said, ‘Having speedily recovered his wealth Virata owning alarge army entered his city with a cheerful heart, accompanied by thefour Pandavas.
एक छोटी व शांत पहाड़ी पर एक बैरागी रहते थे। उनकी आत्मा शुद्ध और हृदय निर्मल था। उस हरे-भरे एकांत में वे अकेले प्रभुभक्ति में रमे रहते। वे न कहीं आते-जाते और न ही उनकी विशेष आवश्यकताएं थीं। अपनी सीमित जरूरतों को वे वहीं पूर्ण कर लेते थे। वन के पशु और आकाश के पक्षी सभी उनके पास आते और वे उनसे खूब बातें करते।