Chapter 33
“The Holy One said, ‘Now I will tell thee that art without envy that mostmysterious knowledge along with experience, knowing which thou wilt befreed from evil.
“The Holy One said, ‘Now I will tell thee that art without envy that mostmysterious knowledge along with experience, knowing which thou wilt befreed from evil.
Vaisampayana said, “Yudhishthira saw his brothers, each possessed of theglory of Indra himself, lying dead like the Regents of the world droppedfrom their spheres at the end of the Yuga.
काशी में एक कर्मकांडी पंडित का आश्रम था, जिसके सामने एक जूते गांठने वाला बैठता था। वह जूतों की मरम्मत करते समय कोई न कोई भजन जरूर गाता था। लेकिन पंडित जी का ध्यान कभी उसके भजन की तरफ नहीं गया था। एक बार पंडित जी बीमार पड़ गए और उन्होंने बिस्तर पकड़ लिया।
Vaisampayana said,–“Then the vanquished sons of Pritha prepared fortheir exile into the woods. And they, one after another, in due order,casting off their royal robes, attired themselves in deer-skins.
नेक कोई एक तो करम करले, नेक कोई एक तो करम करले
रोज़ थोड़ा-थोड़ा साँई का भजन कर ले – 2
“Sanjaya said, ‘The white steeded (Arjuna) also, O monarch, routed thyforce even as the winds, approaching a heap of cotton, scatters it on allsides.
1 [विभान्द]
रक्षांसि चैतानि चरन्ति पुत्र; रूपेण तेनाद्भुत दर्शनेन
अतुल्यरूपाण्य अति घॊरवन्ति; विघ्नं सदा तपसश चिन्तयन्ति
एक बार भगवान बुद्ध के दो शिष्य उनसे मिलने जा रहे थे| पूरे दिन का सफर था| चलते-चलते रास्ते में एक नदी पड़ी| उन्होंने देखा कि उस नदी में एक स्त्री डूब रही है|