अध्याय 155
1 [स]
हैडिम्बं निहतं दृष्ट्वा विकीर्णम इव पर्वतम
पाण्डवा दीनमनसः सर्वे बाष्पाकुलेक्षणाः
प्राचीन काल में माहिष्मति नाम की एक श्रेष्ठ नगरी थी, जो नृपश्रेष्ठ वरेण्य की राजधानी थी| महाराज वरेण्य परम धर्म परायण थे| ऐसा लगता था कि मानो मूर्तिमान धर्म ने उनके रुप में अवतार ग्रहण किया हो| वे बड़ी तत्परता से प्रजा का पालन करते थे| उन्हीं की भांति उनकी पत्नी महारानी पुष्पिका भी परम गुणवती, पतिव्रता एवं सदाचारिणी थी|
स्वामी रामकृष्ण परमहंस के शरीर-त्याग के बाद उनके शिष्य स्वामी विवेकानंद तीर्थयात्रा के लिए निकले|
Vaisampayana said, “Thus addressed by Arjuna of curly hair, the Kuru kingborn of Kunti remained speechless. Then the island-born (Vyasa) saidthese words.
Dhritarashtra said, “When the generalissimo Sweta, O son, was slain inbattle by the enemy, what did those mighty bowmen, the Panchalas with thePandavas, do?
1 [य]
समागताः पाण्डवाः सृञ्जयाश च; जनार्दनॊ युयुधानॊ विराटः
यत ते वाक्यं धृतराष्ट्रानुशिष्टं; गावल्गणे बरूहि तत सूतपुत्र