जटू तपस्वी (Jatu Tapsvi)
प्रेम पिआला साध संग शबद सुरति अनहद लिव लाई|
धिआनी चंद चकोर गति अंम्रित द्रिशटि स्रिसटि वरसाइ ||
प्रेम पिआला साध संग शबद सुरति अनहद लिव लाई|
धिआनी चंद चकोर गति अंम्रित द्रिशटि स्रिसटि वरसाइ ||
धूल तेरे चरणों की बाबा चन्दन और अबीर बनी
जिसने लगाई निज मस्तक पर उसकी तो तकदीर बनी
दोनों सेनाओं में सत्रह दिनों से युद्ध चल रहा था| कर्ण की मृत्यु के बाद राजा शल्य को कौरव सेना का संचालन बनाया गया| संग्राम के अठारहवें दिन युधिष्ठिर और शल्य का आमना-सामना हुआ और युधिष्ठिर ने शल्य का वध कर दिया| शकुनि और उसका पुत्र, नकुल और सहदेव के हाथों मारे गए|
“Dhritarashtra said, ‘Thou didst mention to me before the name of Pandya,that hero of world-wide celebrity, but his feats, O Sanjaya, in battlehave never been narrated by thee. Tell me today in detail of the prowessof that great hero, his skill, spirit, and energy, the measure of hismight, and his pride.’
1 [युधिस्ठिर]
केन वृत्तेन वृत्तज्ञ वीतशॊकश चरेन महीम
किं च कुर्वन नरॊ लॊके पराप्नॊति परमां गतिम
1 [सात्यकि]
न राम कालः परिदेवनाय; यद उत्तरं तत्र तद एव सर्वे
समाचरामॊ हय अनतीत कालं; युधिष्ठिरॊ यद्य अपि नाह किं चित
किसी नगर में एक आदमी रहता था| उसके आंगन में एक पौधा उग आया| कुछ दिनों बाद वह पौधा बड़ा हो गया और उस पर फल लगे|