अध्याय 172
1 [वै]
तस्यां रजन्यां वयुष्टायां धर्मराजॊ युधिष्ठिरः
उत्थायावश्य कार्याणि कृतवान भरतृभिः सह
1 [वै]
तस्यां रजन्यां वयुष्टायां धर्मराजॊ युधिष्ठिरः
उत्थायावश्य कार्याणि कृतवान भरतृभिः सह
त्वं पुरा सागरोत्पन्नो विष्णुना विधृतः करें ।
निर्मितः सर्वदेवैश्च पाञ्चजन्य नमोस्तुते ।।
कुंजबिहारी की आरती समस्त प्रसिद्ध आरतियों में से एक है. यह भगवान का पूजन करते समय यथा श्रीकृष्ण के जन्म जन्माष्टमी के अवसर पर कुंजबिहारी की आरती की स्तुति की जाती है. आरती अक्सर मंदिरों और घरों में गाई जाती है. कुंजबिहारी भगवान कृष्ण के हजारों नामों में से एक नाम है तथा कुंज का अभिप्राय वृन्दावन की हरियाली घासों से युक्त एक स्थल से है|
“Dhritarashtra said, ‘When those divisions (of mine), O Sanjaya, werebroken and routed, and all of you retreated quickly from the field, whatbecame the state of your minds?
1 And Jehovah spake unto Moses in the wilderness of Sinai, in the tent of meeting, on the first day of the second month, in the second year after they were come out of the land of Egypt, saying,
“Suka said, ‘I have now understood that there are two kinds of creation,viz., one commencing with Kshara (which is universal), and which is fromthe (universal) Soul. The other, consisting of the senses with theirobjects, is traceable to the puissance of the knowledge.