अध्याय 167
1 [अर्ज]
ततॊ निवातकवचाः सर्वे वेगेन भारत
अभ्यद्रवन मां सहिताः परगृहीतायुधा रणे
गांगं वारि मनोहारि मुरारिचरणच्युतम् ।
त्रिपुरारिशिरश्चारि पापहारि पुनातु माम् ।।
ॐ ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी, भानुः शशी भूमिसुतो बुधश्च ।
गुरुश्च शुक्रः शनिराहु केतवः, सर्वे ग्रहा शान्तिकरा भवन्तु ।।
एक स्त्री थी| उसे बहुत गुस्सा आता था| जरा-सी कोई बात होती कि उसका पारा चढ़ जाता और वह कहनी-अनकहनी सब तरह की बातें कह डालती|
“Bhishma said, ‘The king, O Yudhishthira, should always be ready foraction. That king is not worth of praise who, like a woman, is destituteof exertion.
1 And Jehovah spake unto Moses in the wilderness of Sinai, in the first month of the second year after they were come out of the land of Egypt, saying,
1 [य]
कषीणस्य दीर्घसूत्रस्य सानुक्रॊशस्य बन्धुषु
विरक्त पौरराष्ट्रस्य निर्द्रव्य निचयस्य च
“Vyasa said, ‘Borne up and down in life’s ocean, he that is capable ofmeditation seizes the raft of Knowledge and for achieving hisEmancipation adheres to Knowledge itself (without extending his armshither and thither for catching any other support).'[919]
1 [उमा]
उक्तास तवया पृथग धर्माश चातुर्वर्ण्यहिताः शुभाः
सर्वव्यापी तु यॊ धर्मॊ भगवंस तं बरवीहि मे