अध्याय 94
1 [स]
दरॊणं स जित्वा पुरुषप्रवीरस; तथैव हार्दिक्य मुखांस तवदीयान
परहस्य सूतं वचनं बभाषे; शिनिप्रवीरः कुरुपुंगवाग्र्य
1 [स]
दरॊणं स जित्वा पुरुषप्रवीरस; तथैव हार्दिक्य मुखांस तवदीयान
परहस्य सूतं वचनं बभाषे; शिनिप्रवीरः कुरुपुंगवाग्र्य
1 [वै]
ततॊ ऽरजुनश चित्रसेनं परहसन्न इदम अब्रवीत
मध्ये गन्धर्वसैन्यानां महेष्वासॊ महाद्युतिः
प्रेम भक्ति के संसार में कुबिजा का नाम बड़ा आदर-सत्कार से लिया जाता है| कुबिजा मालिन के प्यार के गीत बनाकर कविजन गुनगुनाते हैं| गुरुबाणी में भी यह आता है, ‘कुबजा ओधरी अंगसुट धार’ (बसंतु राग) आओ, श्रद्धालु और भक्तो जनो! आज आपको कुबिजा की कथा सुनाते हैं| श्रद्धा और प्यार से जो स्त्री-पुरुष यह कथा श्रवण करेगा, उसके हृदय और आत्मा में प्यार उमड़ आएगा|
1 And when Abram was ninety years old and nine, Jehovah appeared to Abram, and said unto him, I am God Almighty; walk before me, and be thou perfect.
1 जया कर्षणं शत्रुनिबर्हणं च; कृषिर वणिज्या पशुपालनं च
शुश्रूषणं चापि तथार्थ हेतॊर; अकार्यम एतत परमं दविजस्य
YUDHISHTHIRA SAID, ‘O king thou hast duly propounded unto me, in the wayin which it should be, the path of Yoga which is approved by the wise,after the manner of a loving preceptor unto his pupil. I ask now aboutthe principles of the Sankhya philosophy.
“Vyasa said, ‘O Yudhishthira, thy wisdom, I conceive, is not adequate.None doth any act by virtue of his own power.