अध्याय 68
1 [य]
भूय एव कुरुश्रेष्ठ दानानां विधिम उत्तमम
कथयस्व महाप्राज्ञ भूमिदानं विशेषतः
कुछ वर्षों पुरानी कहानी है, जब देश में रियासतें थी, पर इस कथा की सीख आज भी अमर है| एक राजा के दीवाने थे; काम करते-करते बूढ़े हो गए| वह राजा के पास पहुँचे|
1 And it came to pass after these things, that God did prove Abraham, and said unto him, Abraham. And he said, Here am I.
1 किम आहुर दैवतं विप्रा राजानं भरतर्षभ मनुष्याणाम अधिपतिं तन मे बरूहि पिता मह 2 अत्राप्य उदाहरन्तीमम इतिहासं पुरातनम बृहस्पतिं वसु मना यथा पप्रच्छ भारत 3 राजा वसु मना नाम कौसल्यॊ धीमतां वरः महर्षिं परिपप्रच्छ कृतप्रज्ञॊ बृहस्पतिम 4 सर्वं वैनयिकं कृत्वा विनयज्ञॊ बृहस्पतेः दक्षिणानन्तरॊ भूत्वा परणम्य विधिपूर्वकम 5 विधिं पप्रच्छ राज्यस्य सर्वभूतहिते रतः परजानां
“Janaka said, ‘Whence, O great Rishi, does this difference of colourarise among men belonging to the different orders? I desire to know this.Tell me this, O foremost of speakers! The Srutis say that the offspringone begets are one’s own self.
1 [बराह्मणी]
न संतापस तवया कार्यः पराकृतेनेव कर्हि चित
न हि संतापकालॊ ऽयं वैद्यस्य तव विद्यते
बहुत पहले की बात है | एक गरीब किसान एक गांव में रहता था | उसके पास एक बहुत छोटा सा खेत था जिसमें कुछ सब्जियां उगा कर वह अपना व अपने परिवार का पेट पालता था |
विश्वामित्र के जाने के उपरांत राजा हरिश्चंद्र सोच में डूब गए कि ‘अब मै क्या करूं? इस अनजान नगर में कोई मुझे ॠण भ नहीं दे सकता| अब तो एक ही उपाय है की मै स्वयं को बेच दूं|’