पुत्र की भूख
काशी नगरी में राजा हरिश्चंद्र को कोई पहचानता नहीं था| वे अपनी पत्नी के साथ गंगा के किनारे जा पहुचें और हाथ-पांव धोकर, गंगा जल पीकर किनारे पर बैठ गए| पास में ही एक कुत्ता किसी की फेंकी हुई रोटियां चबा रहा था|
काशी नगरी में राजा हरिश्चंद्र को कोई पहचानता नहीं था| वे अपनी पत्नी के साथ गंगा के किनारे जा पहुचें और हाथ-पांव धोकर, गंगा जल पीकर किनारे पर बैठ गए| पास में ही एक कुत्ता किसी की फेंकी हुई रोटियां चबा रहा था|
“Vaisampayana said, ‘Then Drupada’s priest, having approached the Kauravachief, was honoured by Dhritarashtra as also by Bhishma and Vidura.
“Markandeya said, ‘Thus addressed by Utanka, that unvanquished royalsage, with joined hands, O thou foremost of the Kuru race, replied untoUtanka, saying, ‘This visit of thine, O Brahmana, will not be in vain.
अन्नपूर्णे सदा पूर्णे शंकरप्राणवल्लभे ।
ज्ञानवैराग्यसिद्ध्य भिक्षां देहि च पार्वति ।।
राजा भोज वन में शिकार करने गए लेकिन घूमते हुए अपने सैनिकों से बिछुड़ गए और अकेले पड़ गए। वह एक वृक्ष के नीचे बैठकर सुस्ताने लगे। तभी उनके सामने से एक लकड़हारा सिर पर बोझा उठाए गुजरा। वह अपनी धुन में मस्त था। उसने राजा भोज को देखा पर प्रणाम करना तो दूर, तुरंत मुंह फेरकर जाने लगा।
1 [बर]
यॊ ऽयं परश्नस तवया पृष्टॊ गॊप्रदानाधिकारवान
नास्य परष्टास्ति लॊके ऽसमिंस तवत्तॊ ऽनयॊ हि शतक्रतॊ