अध्याय 117
1 [न]
गालवं वैनतेयॊ ऽथ परहसन्न इदम अब्रवीत
दिष्ट्या कृतार्थं पश्यामि भवन्तम इह वै दविज
“Vasudeva said, ‘In this connection is cited the ancient narrative, O sonof Pritha, of the discourse that took place between a married couple.
“Vrihaspati said, ‘Thou art the mouth, O Agni, of all the gods. Thou artthe carrier of sacred offerings. Thou, like a witness, hast access to theinner souls of all creatures.
“Markandeya said, ‘Continually reflecting upon that wonderful discourseof the woman, Kausika began to reproach himself and looked very much likea guilty person and meditating on the subtle ways of morality and virtue,he said to himself,
उस्ताद अलाउद्दीन खां के पास दूर-दूर से लोग संगीत सीखने और विचार-विमर्श के लिए आते थे। उनमें अमीर भी होते और गरीब भी। वह सभी को समान भाव से शिक्षा देते थे। एक बार वह अपने बगीचे में अत्यंत साधारण कपड़े पहने हुए काम कर रहे थे। हाथ-पांव मिट्टी से सने थे। उसी समय एक व्यक्ति बढि़या सूट-बूट पहने आया और खां साहब से बोला, ‘ऐ माली, उस्ताद कहां हैं। मुझे उनसे मिलना है।’ खां साहब ने पूछा, ‘क्या काम है?’ उस व्यक्ति ने कहा, ‘मुझे उनसे संगीत सीखना है।’ खां साहब ने कहा, ‘वह अभी आराम कर रहे हैं।’
संसार का प्रत्येक जीव-जंतु और पशु-पक्षी भूखा रह सकता है, पर प्यासा नहीं रह सकता| जल (पानी) के बिना जीवन नहीं है? प्यास केवल पानी से ही बुझ सकती है| पानी के अभाव में संसार की हजार नियामतें भी बेकार हैं| पानी केवल प्यास ही नहीं बुझाता, शरीर के अनेक रोगों को भी दूर करता है|
1 [धृ]
यस्मिञ जयाशा सततं पुत्राणां मम संजय
तं दृष्ट्वा विमुखं संख्ये किं नु दुर्यॊधनॊ ऽबरवीत
कर्णॊ वा समरे तात किम अकार्षीद अतः परम
1 [मार्क]
यदाभिषिक्तॊ भगवान सेनापत्येन पावकिः
तदा संप्रस्थितः शरीमान हृष्टॊ भद्र वटं हरः
रथेनादित्यवर्णेन पार्वत्या सहितः परभुः
1 And Nadab and Abihu, the sons of Aaron, took each of them his censer, and put fire therein, and laid incense thereon, and offered strange fire before Jehovah, which he had not commanded them.