आचरण की महिमा – कबीर दास जी के दोहे अर्थ सहित
आचरण की महिमा: संत कबीर दास जी के दोहे व व्याख्या
“Utanka said, ‘I know thee, O Janarddana, to be the creator of theuniverse. Without doubt, this knowledge that I have is the result of thygrace towards me, O thou of unfading glory, my heart is possessed ofcheerful tranquillity in consequence of its being devoted to thee.
एक राजा था| वह एक दिन शाम के वक्त अपने महल की छत पर घूम रहा था| साथ में पाँच-सात आदमी भी थे| महल के पीछे कुछ मकानों के खण्डहर थे|
1 [वै]
जयद्रथस तु संप्रेक्ष्य भरातराव उद्यतायुधौ
पराद्रवत तूर्णम अव्यग्रॊ जीवितेप्सुः सुदुःखितः
“Yudhishthira said, ‘If there is any efficacy in gifts, in sacrifices, inpenances well-performed, and in dutiful services rendered to preceptorsand other reverend seniors, do thou, O grandsire, speak of the same tome.
1 [वैषम्पायन]
ततॊ युधिष्ठिरॊ राजा जञातीनां ये हता मृधे
शराद्धानि कारयाम आस तेषां पृथग उदारधीः
शनि देव के पिता, सुर्येदेव अत्यन्त तीव्र प्रकाश और आभा के सवरूप माने जाते हैं, इसके अलावा भगवान् सुर्येदेव ही एकमात्र ऐसे देव हैं, जो की साक्षात दिखाई पढ़ते हैं| प्रतिदिन उठ कर इनकी आराधना सबसे पहले की जाती है, अथवा इन्हे जल चढ़ाना बहुत शुभ कारी मना गया है| सूर्य देव के प्रातः दर्शन कर जल चढ़ाने से सफलता, शांति और शक्ति की प्राप्ति होती है। सूर्यदेव जी की प्रसन्न करने के लिए रोज प्रातः उनकी आरती करनी चाहिए।