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सिक्ख गुरु साहिबान

अकबर बादशाह लाहौर से वापिस आ रहे थे| वापिस आते हुए दिल्ली को जाते हुए गोइंदवाल पड़ाव किया| अकबर बादशाह यह देखकर दंग रह गए कि गुरु जी का अटूट लंगर चल रहा है|

सिद्धों का एक स्थान अचल बटाला जहां हर साल शिवरात्रि का मेला लगता है| यहां सिद्ध अपनी करामातें दिखाकर लोगों से अपनी पूजा करवाते है| गुरु जी के मेले में पहुंचते ही सभी लोग गुरु जी के पास इकट्ठे हो गए|

श्री गुरु अंगद साहिब जी की सुपुत्री बीबी अमरो श्री अमरदास जी के भतीजे से विवाहित थी| आप ने बीबी अमरो जी को कहा की पुत्री मुझे अपने पिता गुरु के पास ले चलो| मैं उनके दर्शन करके अपना जीवन सफल करना चाहता हूँ| पिता समान वृद्ध श्री अमरदास जी की बात को सुनकर बीबी जी अपने घर वालो से आज्ञा लेकर आप को गाड़ी में बिठाकर खडूर साहिब ले गई|

कीरतपुर से दिल्ली को जाते हुए गुरु जी अम्बाले के पास पंजोखरे गाँव में ठहरे| पंडित जो उसी गाँव के रहने वाले थे आपसे कहने लगे कि आप छोटी उम्र में ही ईश्वर अवतार और गुरु कहलाते हो| 

एक दिन श्री रामदास जी को गुरु अमरदास जी ने अपने पास बिठा लिया व बताया कि सतयुग में इक्ष्वाकु जी, जो अयोध्या के पहले राजे थे उन्होंने इस स्थान पर यज्ञ कराया था|

गुरु जी ने जैसे ही अयोध्या नगरी में प्रवेश किया, लोगों की भीड़ एकत्रित हो गई| गुरु जी ने एक पण्डित से पूछा कि हमने सुना है कि अयोध्या नगरी को श्रीराम जी अपने साथ बैकुण्ठ में ले गए थे, फिर यह तो यहीं के यहीं हैं|

एक दिन उजैन शहर के रहने वाले एक सिक्ख बशंबर दास ने गुरु जी के आगे प्रार्थना की कि सच्चे पातशाह! मुझे धन कि बख्शिश करो| मेरे घर बड़ी गरीबी है|  

एक दिन श्री गुरु गोबिंद सिंह जी दीवान की ओर आ रहे थे कि रास्ते में एक सिक्ख दीवार पर लेप कर रहा था| दीवार के ऊपर लेप मारते समय उससे गुरु जी के पाजामे के ऊपर चिकड़ के छींटे पड़ गए| 

गुरु तेग बहादर जी की महिमा सुनकर आसाम देश का राजा अपनी रानी सहित गुरु जी की शरण में आया| उसने गुरु जी के आगे भेंट आदि अर्पण की| भेंट अर्पण करने के पश्चात उसने प्रार्थना की कि महाराज! मेरे पास कोई औलाद नहीं है| मुझे पुत्र का वरदान दो जो हमारे राज्य का मालिक बने| 

एक दिन श्री गुरु अर्जन देव जी का दीवान सजा था| उस दीवान में गुरु जी ने वचन किया कि शुभ कार्य करने अच्छे होते है|

गुरु साहिब की हजूरी में दीवान लगा था| सभी सिक्ख वहीं उपस्थित थे| तभी धरमदास, डूगरदास, दीपा, जेठा, संसार व बालू तीर्थ ने गुरु जी से प्रार्थना की कि महाराज! हमारा उद्धार किस प्रकार सम्भव है? गुरु जी कहने लगे कि पहले अपने मन का अहंम भाव त्यागो|

श्री गुरु रामदास जी प्रभु प्यार में सदैव मगन रहते| अनेकों ही सिख आप जी से नामदान लेकर गुरु-२ जपते थे| गुरु सिखी कि ऐसी रीति देख कर एक इर्शालु तपस्वी आपके पास आया| गुरु जी ने उसे सत्कार देकर अपने पास बिठाया और पूछा! आओ तपस्वी जी किस तरह आए हो?

एक तपस्वी जो कि खडूर साहिब में रहता था जो कि खैहरे जाटो का गुरु कहलाता था| गुरु जी के बढ़ते यश को देखकर आपसे जलन करने लगा और निन्दा भी करता था| संवत १६०१ में भयंकर सूखा पड़ा| लोग दुखी होकर वर्षा कराने के उदेश्य से तपस्वी के पास आए| पर उसने कहना शुरू किया कि यहाँ तो उलटी गंगा बह रही है|

एक दिन एक पीर जी कि रोपड़ में रहता था अपने मुरीदो से कार भेंट लेता हुआ आनंदपुर आया| गुरु जी के दरबार की महिमा संगत का आना-जाना तथा लंगर चलता देख वह बड़ा प्रभावित हुआ| उसने एक सिख से पूछा यह किस गद्दी का गुरु है? सिख ने कहा यह गुरु नानक साहिब जी की गद्दी पर बैठे नौवें गुरु श्री गुरु तेग बहादर जी हैं|

एक विधवा माई जो की गोइंदवाल में रहती थी उसका पुत्र बुखार से मर गया| वह रात्रि से समय ऊँची ऊँची रोने लगी| उसका ऐसा विर्लाप सुनकर गुरु अमरदास जी माई के घर गये और अपने चरण बच्चे के माथे पर धरे| गुरु जी के चरण माथे पर लगते ही बेटा जीवित हो गया|

एक बजुर्ग माई जो कि निर्धन थी| उसके मन में यह भाव था कि गुरु जी उसके हाथ का तैयार किया हुआ भोजन खाये| जिस दिन गुरु जी उसके हाथ का बना भोजन खायेगें वह किसमत वाली हो जायेगी| उसने मेहनत मजदूरी करके कुछ पैसे जोड़ लिए और गुरु जी के भोजन के लिए रसद भी तैयार करके रख ली| 

गुरु जी कटक शहर में पहुंच कर भैरों मन्दिर के पास आकर बैठ गए| आप अडोल रहे तो पुजारी ने आपको शक्तिशाली मानकर भूल की क्षमा मांगी|

एक दिन गुरु अर्जन देव जी के पास चड्डे जाति के दटू, भानू, निहालू और तीर्था आए| उन्होंने आकर गुरु जी से प्रार्थना की महाराज! हमें तो आपके वचनों की समझ ही नहीं आती| एक जगह आप जी लिखते हैं –  

गुरु जी मरदाने के साथ बैठकर शब्द कीर्तन कर रहे थे तो अचानक अँधेरी आनी शुरू हो गई, जिसका गुबार पुरे आकाश में फ़ैल गया| इस भयानक अँधेरी में भयानक सूरत नजर आनी शुरू हो गई, जिसका सिर आकाश के साथ व पैर पाताल के साथ के साथ थे| मरदाना यह सब देखकर घबरा गया|

बाउली की कार सेवा में भाग लेने के लिए सिख बड़े जोश के साथ दूर दूर से आने लगे| इस तरह काबुल में एक प्रेमी सिख की पति व्रता स्त्री को पता लगा| 

एक दिन काला अपने यतीम भतीजो लोहिया और संदली को साथ लेकर गुरु हरि राय जी के पास लाया| पहले उसने गुरु जी को माथा टेका फिर अपने भतीजो को ऐसा करने के लिए कहा| परन्तु वहाँ खड़े खड़े ही बच्चों के पेट बजने लगे| गुरु जी ने कहा कालेआ! यह क्या कहतें हैं|

सज्जन ठग को सच्चा ठग बनाकर गुरु जी पाकपटन शेख ब्रह्म के साथ ज्ञान चर्चा करके कुरुक्षेत्र पहुंच गए| उस समय लोग सूर्यग्रहण के मेले के लिए दूर-दूर से आए थे|

श्री गुरु नानक देव जी दीपालपुर शहर से बाहर एक कुटिया देखकर उस के पास जा बैठे| उस कुटिया में एक कोहड़ी रहता था| उसका यह हाल सम्बन्धियों ने किया था| उस कोहड़ी ने गुरु जी से कहा कि आप मेरे से दूर ही रहो, मुझे कुष्ट रोग है, गुरु जी कुटिया के पास पीपल के नीचे डेरा डालकर बैठ गए|

श्री गुरु नानक देव जी विध्यांचल के दक्षिणी जंगलों में गए| वहां कौड़ा नाम का राक्षस रहता था जो इन्सानों को तलकर खाता था| कौड़ा राक्षस मरदाने को तल कर खाने लगा था| परन्तु गुरु जी ने वहां समय पर पहुंच कर मरदाने की रक्षा की|

खडूर के चौधरी को मिरगी का रोग था| वह शराब का बहुत सेवन करता था| एक दिन गुरु जी के पास आकर विनती करने लगा कि आप तो सब रोगियों का रोग दूर कर देते हो, आप मुझे भी ठीक कर दो| लोगों की बातों पर मुझे विश्वास तब आएगा जब मेरा मिरगी का रोग दूर हो जायेगा| गुरु जी कहने लगे चौधरी!

श्री गुरु तेग बहादर जी जब गाँव मूलोवाल पहुँचे तो मईया व गोदे ने आपकी खूब सेवा की| गुरु जी को बहुत प्यास लगी| उन्होंने पीने के लिए पानी मंगवाया| परन्तु पानी बहुत खारा था| गुरु जी ने उनसे पूछा कि यहाँ कोई मीठे पानी का कूआँ नहीं है? तब मईया ने कहा कि महाराज! मीठे पानी का कूआँ गाँव से बहुत दूर है| यदि आप हुक्म करो तो वहाँ से मीठा पानी ले आऊँ|  

ग्रीष्म ऋतु के समाप्त होते ही सावन-भादो आ गई| महिता कालू जी ने उचित समय को देखते हुए फसल बोने की सोची|

श्री गुरु नानक देव जी खेत की रखवाली करने खेत में जाते| परन्तु उनकी सारी खेती पशुओं ने चर ली| क्योंकि गुरु जी पशुओं को बाहर न निकालते|

एक दिन श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने सिक्खों को शिक्षा देने के लिए शेर की खाल रात के समय एक गधे को पहना दी| उस गधे को बाहर खेतों में छोड़ दिया| हरे खेत खाकर गधा बहुत मस्त हो गया| 

गुरु जी (Shri Guru Nanak Dev Ji) को चुपचाप व बिना किसे काम के घर में लेटे रहते देख महिता जी ने उन्हें किसे काम धंधे में लगाने कि सोची| पिता का कहना मान कर अगले ही दिन गुरु जी गाये भेसों को चराने ले गए| तीन चार दिन तो सब ठीक चलता रहा, सुबह पशुओं को बाहर ले जाते व सांयकाल वापिस घर ले आते|

एक दिन कुला, भुला और भागीरथ तीनों ही मिलकर गुरु अर्जन देव जी के पास आए| उन्होंने आकर प्रार्थना की कि हमें मौत से बहुत डर लगता है| आप हमें जन्म मरण के दुख से बचाए|  

जब दिन निकला तो चंदू फिर अपनी बात मनाने के लिए गुरु जी के पास पहुँचा| परन्तु गुरु जी ने फिर बात ना मानी| उसने गुरु जी से कहा कि आज आपको मृत गाए के कच्चे चमड़े में सिलवा दिया जाएगा| उसकी बात जैसे ही गुरु जी ने सुनी तो गुरु जी कहने लगे कि पहले हम रावी नदी में स्नान करना चाहते है, फिर जो आपकी इच्छा हो कर लेना|

जहाँगीर ने गुरु जी को सन्देश भेजा| बादशाह का सन्देश पड़कर गुरु जी ने अपना अन्तिम समय नजदीक समझकर अपने दस-ग्यारह सपुत्र श्री हरिगोबिंद जी को गुरुत्व दे दिया| उन्होंने भाई बुड्डा जी, भाई गुरदास जी आदि बुद्धिमान सिखों को घर बाहर का काम सौंप दिया| इस प्रकार सारी संगत को धैर्य देकर गुरु जी अपने साथ पांच सिखों-

एक दिन श्री गुरु अमरदास जी ने श्री (गुरु) रामदास जी को अपने पास बिठाया और कहने लगे – हे सुपुत्र! अब आप रामदास परिवार वाले हो गए हो|

श्री गुरु नानक देव जी हेम कुन्ट के रास्ते बदरी नाथ पहुंचे| वे वहां कैलाश पर्वत पर सिद्ध-मण्डली के स्थान मानसरोवर के पास पहुँच गए| वहां गुरु जी को 84 सिद्ध व गोरख नाथ मण्डली मिली| उन्होंने गुरु जी से प्रश्न किया – हे बालक! आपको यहां कौन सी शक्ति लेकर आई है?

बादशाह जहाँगीर के साथ गुरु जी के मेल मिलाप बढ़ गए| ऐसा देखकर चंदू बहुत तंग था| वह उस मौके की तलाश में था जब किसी भी तरह मेल मिलाप को रोका जाये या तोड़ा जाये| एक दिन जहाँगीर को बुखार हो गया| चंदू ने एक ज्योतिषी को बुलाया|

गुरु जी अपने आसन पर विराजमान थे| कुछ सिक्ख गुरु जी के दर्शन करने के लिए पहुंचे|

महिता कालू जी ने श्री गुरु नानक देव जी को बहन नानकी व जीजा जै राम के पास भेज दिया| परन्तु वहां आप बेकार बैठे आनन्द लेते रहे|

गुरु नानक देव जी जब 5 वर्ष के हुए तो उन्होंने बच्चों के साथ खेलना शुरू कर दिया| गुरु जी सभी बालकों को इतना प्यार करते थे कि उन्हें खाने व खेलने की वस्तुएँ घर से लाकर बाँट देते|

बाबा कालू जी ने शुभ दिन वार पूछ कर आपको नए वस्त्र पहना कर पांधे के पास भेज दिया| आप उनके लिए कुछ नकदी व मिष्ठान भी साथ लेकर गए|

भाई भगतू का पुत्र गौरा जो की बठिंडे का राजा था गुरु हरि राय जी के आने की खबर सुनकर उनके पास पहुँचा उसने एक अच्छा घोड़ा और पांच सौ रुपये भेंट करकर गुरु जी को माथा टेका| गुरु जी ने गौरे से पूछा जिस लड़की से भाई भगतू ने अपनी मृत्यु से पहले वचन के द्वारा ही शादी की थी उसका क्या हाल है|

श्री गुरु तेग बहादर जी कैथल विश्राम करके बारने गाँव आ गये| इस गाँव के बाहर ही ठहर कर गुरु जी ने पुछा कि यहाँ कोई गुरु नानक देव जी का सिख रहता है? उसने कहा महाराज! यहाँ जिमींदार सिख रहता है| गुरु जी ने उसे बुलाने के लिए कहा| यह आदमी जाकर जिमींदार को बुला लाया|  

श्री गुरु नानक देव जी योगियों के प्रसिद्ध स्थान गोरखमते पहुंचे| वहां उन्होंने उनके डेरे से कुछ दूर बैठकर कीर्तन आरम्भ कर दिया|

शाहजहाँ घोड़े को देख कर बहुत खुश हो गया| उसकी सेवा व देखभाल के लिए उसने सेवादार भी रख लिया| परन्तु घोड़ा थोड़े ही दिनों में बीमार हो गया| उसने चारा खाना और पानी पीना छोड़ दिया| एक पाँव जमीन से उठा लिया और लंगड़ा होकर चलने लगा|

एक दिन जहाँगीर ने गुरु जी के हाथ में कपूरों और मोतियों की एक माला देखकर कहा कि इसमें से एक मनका मुझे बक्शो| मैं इसे अपनी माला का मेरु बनाकर आपकी निशानी के तौर पर रखूँगा| गुरु जी ने जहाँगीर की पूरी बात सुनी और कहने लगे पातशाह! इससे भी सुन्दर और कीमती 1080 मनको की माला जो हमारे पिताजी के पास थी वह चंदू के पास है|

सिक्खों ने पांच प्रकार की सिक्खी का उल्लेख सुनकर श्री गुरु गोबिंद सिंह जी से प्रार्थना कि महाराज! हमें पाहुल व अमृत का उल्लेख बताओ| गुरु जी ने फरमाया कि भाई! तंत्र-मन्त्र आदि कार्य कि सिद्धि के लिए प्रसिद्ध है, परन्तु वाहिगुरू-मन्त्र जो चारों वर्णों को एक करने वाला है, इससे सभी सिद्ध हो जाते है|

पंजोखरे से चलकर और स्थान-स्थान पर संगतो को दर्शन की खुशी देते हुए गुरु हरि कृष्ण जी दिल्ली पहुँच गए| गुरु जी के रहने का प्रबंध राजा जयसिंह ने अपने बंगले में कराया| उसने गुरु जी के दिल्ली पहुँचने की खबर बादशाह को भी दे दी|

महिता कालू जी ने वंश की रीति अनुसार 11 साल के होते ही आपको जनेयु पहनाने के लिए दिन निश्चित करके पुरोहित हरदियाल के पास भेज दिया|

एक बार डले गांव के रहने वाले सिक्ख भाई दीपा, नरायण दास व बुला गुरु जी के पास आए| उन्होंने गुरु जी के चरणों में प्रार्थना की कि हमारा जन्म-मरण का दुःख दूर हो जाए|

काबुल के एक श्रद्धालु सिख ने अपनी कमाई में से दसवंध इक्कठा करके गुरु जी के लिए एक लाख रूपए का एक घोड़ा खरीदा जो की उसने ईराक के सौदागर से खरीदा था| जब वह काबुल कंधार की संगत के साथ यह घोड़ा लेकर अटक दरिया से पार हुआ तो शाहजहाँ के एक उमराव ने वह घोड़ा देख लिया|

राजा जयसिंह की रानी ने जब यह सुना कि बाल गुरु जी शक्तिवान हैं तो उसने आपको भोजन खिलाने के लिए महलों में बुलाया| रानी गुरु जी की शक्ति को परखना चाहती थी| इस मकसद से रानी ने सेविकाओं वाले वस्त्र पहन लिए और उनके बीच में जाकर बैठ गई| अन्तर्यामी गुरु जी जब अपनी माता सहित राजा के महल में गए तो सभी सेविकाओं ने आपको माथा टेका और बैठ गई|

एक दिन एक सिख गुरु जी के पास आया और कहने लगा की महाराज! गुरु स्थान नानक मते का सिद्ध लोग घोर अनादर कर रहे है|

एक जिमींदार गुरु तेग बहादर जी की बड़ी श्रद्धा के साथ सेवा करता था| गुरु जी उसकी सेवा पर बहुत खुश थे| उसकी सेवा पर खुश होकर गुरु जी ने वह सारी भेंटा उसको दे दी जो संगत की तरफ से आई थी| गुरु जी ने साथ-साथ यह भी वचन किया कि इस धन से कूआँ लगवाओ और इसके साथ-साथ ही धर्मशाला भी बनवाओ|

एक दिन श्री गुरु नानक देव जी ने मरदाने को एक टके का झूठ व सच्च खरीदने के लिए भेजा| मरदाना बहुत दुकानों पर गया पर उसे कहीं से भी सत्य और झूठ न मिला|

एक दिन अमरदास जी गुरु जी के स्नान के लिए पानी की गागर सिर पर उठाकर प्रातःकाल आ रहे थे कि रास्ते में एक जुलाहे कि खड्डी के खूंटे से आपको चोट लगी जिससे आप खड्डी में गिर गये| गिरने कि आवाज़ सुनकर जुलाहे ने जुलाही से पुछा कि बाहर कौन है?

श्री गुरु अमरदास जी ने अकबर बादशाह के बुलावे पर बाबा बुड्ढा जी व बुद्धिमान सिक्खों के साथ सलाह करके श्री रामदास जी को लाहौर जाने के लिए कहा|

श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के दरबार में सदा एक मेला सा लगा रहता था| एक दिन चार सिख गुरु जी के पास आए| उन्होंने आकर प्रार्थना की कि किसी ने उनकी जेब काट ली है व पैसे नकदी निकाल लिए हैं|

एक दिन भाई पुरीआ और चूहड़ पट्टी से गुरु जी के दर्शन करने आए| उन्होंने गुरु जी के आगे भेंट रखी व माथा टेका| उन्होंने गुरु जी से प्रार्थना की कि महाराज! हम अपने गाँव के चौधरी है और हमें झूठ भी बहुत बोलना पड़ता है| हम इसका त्याग किस प्रकार करें?  

श्री गुरु अर्जन देव जी के दरबार में दो डूम सत्ता और बलवंड कीर्तन करते थे| एक दिन डूमो ने गुरु जी से आर्थिक सहायता माँगी कि उनकी उनकी बहन का विवाह है| गुरु जी कहने लगे सुबह कीर्तन की जो भेंट आएगी वह सारी रख लेना| ईश्वर की कृपा से उस दिन बहुत कम भेंट आई|

श्री गुरु नानक देव जी ऐमनाबाद से लाहौर आ गए| उस समय श्राद्धों के दिन थे| शाहूकार दूनी चन्द बहुत से ब्राह्मणों व सन्तों को भोजन करा रहा था| गुरु जी को भी महान सन्त समझकर भोजन खिलाने अपने घर ले गया|

गुरु जी एक नगर के बाहर वृक्ष के नीचे जा बैठे| संत रुप गुरु जी का आगमन सुनकर वहां का राजा आपके दर्शन करने आया|

गुरु जी के बचन, “ना कोई हिंदू न मुसलमान” को जब काजी ने सुना तो उसने गुरु जी से इसका भाव पूछा| गुरु जी (Shri Guru Nanak Dev Ji) ने कहा इस समय अपने धरम के अनुसार चलने वाला ना कोई सच्चा हिंदू है ना ही कोई अपने दीन मजहब के अनुसार चलने वाला सच्चा मुसलमान है|

डल्ला गांव के कुछ सिक्ख गुरु जी के पास आए| उनमें से उगरसैन, दीपा व रामू गौरी गुरु जी के पास आकर बैठ गए|

गुरु जी को संस्कृत विद्या हासिल करने के लिए पंडित बृज लाल की पाठशाला में भेज दिया गया|

गुरु जी गया पहुंचे| यह शहर गयासुर दैंत्य का बसाया हुआ है, जिसके नाम पर ही इसका नाम गया प्रसिद्ध है| हिन्दुओं के विश्वास अनुसार यहां प्राणियों के पिंड बनाने से उनकी गति हो जाती है|

हरिद्वार से २०वी तीर्थ यात्रा करके पंडित दुर्गा प्रसाद ने जब गुरु अमरदास जी के पाँव में पदम देखकर कहा था कि आपके शीश पर जल्दी ही छत्र झूलेगा, जब उसने यह सुना कि आप गुरुगद्दी पर आसीन हुए है तो अपना मुँह माँगा वरदान लेने के लिए गुरु अमरदास जी के पास आये| उन्होंने गुरु जी को अपना वरदान पूरा करने की मांग की|

भगतू सिक्ख जो कि टिल्ले की पहाड़ी के नीचे बैठा था, उसने गुरु जी से प्रार्थना की यहां पानी की बहुत कमी है|

गुरु जी ने हरिद्वार पहुंचकर देखा कि लोग इश्नान करते हुए नवोदित सूर्य की ओर पानी हाथों से उछाल रहे हैं तो आप ने पश्चिम की ओर मुंह करके दोनों हाथों से पानी उछालना शुरू कर दिया|

दुनीचंद क्षत्री जो कि पट्टी नगर में रहता था उसकी पांच बेटियां थी| सबसे छोटी प्रभु पर भरोसा करने वाली थी| एक दिन दुनीचंद ने अपनी बेटियों से पूछा कि आप किसका दिया हुआ खाती व पहनती हो| रजनी के बिना सबने यही कहा कि पिताजी हम आपका दिया ही खाती व पहनती हैं|

श्री गुरु नानक देव जी समुन्द्र के पश्चिमी तट के साथ-साथ मालाबार, गुजरात, बंबई आदि इलाकों में सत्यनाम का प्रचार करते हुए सिन्ध में उच्च पीरों के पास बहावलपुर आ गए|

एक दिन गुरु हरिगोबिंद जी के पास माई देसा जी जो कि पट्टी की रहने वाली थी| गुरु जी से आकर प्रार्थना करने लगी कि महाराज! मेरे घर कोई संतान नहीं है| आप किरपा करके मुझे पुत्र का वरदान दो| गुरु जी ने अंतर्ध्यान होकर देखा और कहा कि माई तेरे भाग में पुत्र नहीं है| माई निराश होकर बैठ गई| 

श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने वचन किया कि हे सिक्खो! जिस का जीवन धर्म के लिए है और अपना आचरण गुर-मर्यादा के अनुसार रखता है, वही पूरण सिक्ख है|

एक बार कुछ सिक्ख गुरु जी को बड़े प्रेमपूर्वक गाँव में ले गए| वहां पृथी मल्ल आप जी के दर्शन करने के लिए पहुंचे|

एक क्षत्रि प्रेमा जिसे कोहड़ था, उसकी कोई देखभाल करने वाला नहीं था| गुरु जी की महिमा सुनकर गोइंदवाल आ गया|

काशी से गुरु तेग बहादर जी सासाराम शहर की ओर चल पड़े| वहाँ पहुँच कर आपने गुरु घर के एक मसंद सिख फग्गू की चिरकाल से दर्शन करने की भावना को पूरा करने के लिए गए| भाई फग्गू ने एक मकान बनवाया| उसने उसका दरवाज़ा बहुत बड़ा रखवाया| उसके आगे एक खुला आँगन भी रखा हुआ था| 

श्री गुरु नानक देव जी बनारस पहुंचे तो गुरु जी की वेश-भूषा-गेरुए रंग वाला करता, ऊपर सफेद चादर, एक पांव में जूती एक पांव में खौंस, सर पर टोपी, गले में माला, माथे पर केसर का तिलक देखकर लोग इकट्ठे हो गए|

बाऊली का निर्माण कार्य समाप्त हो गया| श्री गुरु अमरदास जी ने 84 पौड़िया गिन कर वचन किया कि जो नर-नारी इन 84 पौड़ियों पर बाऊली में 84 बार स्नान करेगा व 84 बार जपुजी साहिब के चौरासी पाठ करेगा तो उसकी जन्म-मरण की चौरासी कट-जाएगी|

राजा जयसिंह ने जब बादशाह को यह बताया कि गुरु जी ने मेने बंगले में निवास कर लिया है तो दूसरे ही दिन उसने अपने शहिजादे को गुरु जी के पास भेज दिया| शहिजादे ने बादशाह की ओर से गुरु जी को भेंट अर्पण की और माथा टेका| उसने गुरु जी से यह प्रार्थना की कि बादशाह आपके दर्शन करना चाहते हैं| पर गुरु जी आगे से कहने लगे कि हमारा प्रण है कि हम किसी बादशाह के माथे नहीं लगेंगे|

श्री गुरु हरिगोबिंद जी जब ग्वालियर के किले में चालीसा काट रहे थे तो उनको चालीस दिन से भी ऊपर हो गए, तो सिखों को बहुत चिंता हुई| उन्हें यह चिंता सता रही थी कि बादशाह ने गुरु जी को बाहर क्यों नहीं बुलाया| उधर बादशाह को भी भ्रम हो गया| और उसे रात को डर लगना शुरू हो गया| वह रात को उठ उठ कर बैठता|

बाबर ने सैदपुर के इलाके में हमला कर दिया| सैदपुर के पठानों ने इसका डटकर सामना किया| मगर बाबर की फौजों के आगे पठानों की कोई पेश न गई| बाबर ने खूनी होली खेली|

बाला और कुष्णा पंडित लोगों को सुन्दर कथा करके खुश किया करते थे और सबके मन को शांति प्रदान करते थे| एक दिन वे गुरु अर्जन देव जी के दरबार में उपस्थित हो गए और प्रार्थना करने लगे कि महाराज! हमारे मन में शांति नहीं है| आप बताएँ हमें शांति किस प्रकार प्राप्त होगी हमें इसका कोई उपाय बताए?  

श्री गुरु अमरदास जी की सुपुत्री बीबी भानी जी अपने पिता की बहुत सेवा करती थी| प्रात:काल उठकर गर्म पानी करना व फिर पिताजी को स्नान कराना|

श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने ब्राहमणों का चुनाव करने के लिए दूर दूर के क्षेत्रों से जैसे कश्मीर, मथुरा, प्रयाग व काशी आदि दक्षिण पूर्व दिशा से सारे पंडितो को आनंदपुर आने के लिए अपने सिख भेजकर बुलवाया|

एक दिन श्री गुरु नानक देव जी के पास एक ब्राह्मण जिनका नाम पांधा बूला था, हाजिर हुआ| उसने गुरु जी से प्रार्थना की कि महाराज! मुझे ब्राह्मण जानकार मुझ से कोई भी सेवा नहीं कराता|

भाई खानू, मईया और गोबिंद गुरु अमरदास जी के पास आए| इन्होने प्रार्थना की हमें भक्ति का उपदेश दो ताकि हमारा कल्याण हो जाये| गुरु जी ने कहा भक्ति तीन प्रकार की होतो है-नवधा, प्रेमा और परा|

एक भगवान गिर सन्यासी साधु ने गुरु की बहुत महिमा सुनी कि आप ईश्वर अवतार हैं| मन में यह धारणा लेकर गुरु दर्शन के लिए आ गए कि अगर गुरु सच्चा है तो यह मुझे चतुर्भुज रूप में दर्शन देंगे| मैं तब ही इन्हें सच्चा ईश्वर का अवतार मानूंगा| 

भाई आदम जिला फिरोजपुर गाँव बिन्जू का रहने वाला था| वह पीरो-फकीरों की खूब सेवा करता परन्तु उसकी मुराद कही पूरी न हुई| उसके घर में पुत्र पैदा न हुआ| एक दिन उसे गुरु का सिख मिला| आदम ने उसे श्रधा सहित पानी पिलाया और प्रार्थना की कि मेरे घर संतान नहीं है|

एक दिन भाई जग्गा गुरु जी के दर्शन करने आया| उसने प्राथना कि सच्चे पादशाह जी मुझे एक दिन जोगी ने बताया कि कल्याण तभी हो सकता है अगर घर – बाहर, स्त्री – पुत्र आदि का त्याग किया जाये जो कि बन्धन हैं| 

करतारपुर में एक ब्राहमण का इकलौता लड़का मर गया| लड़के के माता-पिता गुरु हरि राय जी के पास आ गए और कहने लगे कि हमारे पुत्र को जीवित कर दो| नहीं तो हम भी आपके द्वार पर प्राण त्याग देंगे| तब गुरु जी ने कहा अगर कोई इस लड़के कि जगह प्राण देगा तो यह जीवित हो जाएगा|

भाई भगतु गुरु घर का सेवक था| जब गुरु हरि राय जी गुरु गद्दी पर बैठे तो कुछ समय बाद भगतु जी ने प्रार्थना की कि महाराज! सेवा के बिना मनुष्य की आयु बेकार है इसलिए मुझे कोई सेवा दो| गुरु जी हँस कर कहने लगे कि अब आप बहुत वृद्ध हो गए हो| अपने मनोरंजन के लिए कोई चरखा लाओ|

एक बार एक सिक्ख जिसका नाम भाई मल्ल था| वह गुरु जी के पास आया| उसने गुरु जी से पूछा, महाराज! मेरा मन भटकन में रहता है|

भाई हिन्दाल गुरु घर में बड़ी श्रधा के साथ आता मांडने की सेवा करता था| अचानक ही गुरूजी लंगर में आए| उस समय भाई हिन्दाल जी आटा मांडने की सेवा कर रहें थे|

श्री गुरु नानक देव जी बीजापुर के घने जंगल कजलीबन में योगियों के आश्रम पहुंचे| वहां योगियों के मुखी भृर्थरी ने आपसे योग धारण करने की बात की|

एक दिन गुरु साहिब जी का दीवान सजा था| गुरु जी स्वयं भी उसमें विराजमान थे| सभी गुरु जी से अपनी शंकाओं का निवारण कर रहे थे|

मक्के में मुसलमानों का एक प्रसिद्ध पूजा स्थान है जिसे काबा कहते है| गुरु जी (Shri Guru Nanak Dev Ji) रात के समय काबे की तरफ विराज गए तब जिओन ने गुस्से में आकर गुरु जी से कहा कि तू कौन काफ़िर है जो खुदा के घर की तरफ पैर पसारकर सोया हुआ है?

गुरु जी जब मथुरा और वृंदावन पहुंचे तो आपने देखा कि लोग राजे रानियों और कृष्ण गोपियों के सांग बनाकर रास लीला करते, नाचते व कूदते है| उनकी यह दशा देखकर गुरु जी ने शब्द का उच्चारण किया|

एक दिन सुल्तान्पुत के निवासी कालू, चाऊ, गोइंद, घीऊ, मूला, धारो, हेमा, छजू, निहाला, रामू, तुलसा, साईं, आकुल, दामोदर, भागमल, भाना, बुधू छीम्बा, बिखा और टोडा भाग मिलकर गुरु अर्जन देव जी के पास आए| उन्होंने आकर प्रार्थना की कि महाराज! हम रोज सवेरे उठकर स्नान करके गुरबानी का पाठ करने के बाद ही अपनी कृत करते हैं|

श्री गुरु नानक देव जी आसाम देश के कामरुप क्षेत्र के गौहाटी शहर से बाहर जा बैठे| मरदाने को भूख लगी, कुछ खाने के लिए शहर में चला गया|

मलक भागो ने ब्रह्म भोज करके सभ खत्रियों, ब्राह्मणों और साधुओं, फकीरों  व नगर वासियों को बुलाया|  उसने यह निमंत्रण गुरु जी (Shri Guru Nanak Dev Ji) को भी दिया| पर गुरु जी (Shri Guru Nanak Dev Ji) ने इस भोज में आने को मना कर दिया| बार -२ बुलाने पर गुरु जी वहाँ पहुँचे|

एक दिन भाई महानंद व बिधी चन्द गुरु जी के पास आए| उस समय गुरु साहिब के दोनों समय कथा कीर्तन और उपदेश के दीवान लगते थे|