HomePosts Tagged "श्री साईं बाबा जी की लीलाएं" (Page 3)

साठे मुम्बई के प्रसिद्ध व्यापरी थे| एक बार उन्हें अपने व्यापार में बहुत हानि उठानी पड़ी, जिससे वे बहुत उदास-निराश हो गये| उनके मन में घर-बार छोड़कर एकांतवास करने के विचार पैदा होने लगे| साठे की ऐसी स्थिति देखकर उनके एक मित्र ने उनसे कहा – “साठे ! तुम शिरडी चले जाओ और वहां पर कुछ दिन साईं बाबा की संगत में रहो| सत्संग में रहकर व्यक्ति निश्चित हो जाता है और साईं बाबा तो वैसी भी साक्षात् ईशावतार हैं| आज तक बाबा के दरबार से कोई भी निराश होकर नहीं लौटा है| इसलिए लोग बड़ी दूर-दूर से उनके दर्शन करने के लिये शिरडी जाते हैं| यदि मेरी बात मानो तो तुम भी एक बार शिरडी जाकर देख लो| यदि बाबा चाहेंगे तो तुम्हारी भी झोली भर देंगे|”

एक तहसीलदार (व्ही.एच.ठाकुर) रेवेन्यू विभाग में कार्यरत थे| बहुत पढ़े-लिखे होकर भी उन्हें सत्संग से बहुत लगन थी| इसलिए अपने विभाग के साथ जहां कहीं भी जाते, यदि वहां किसी संत महात्मा के बारे में सुनते तो उनके दर्शन अवश्य करते|

अनंतराव पाटणकर पूना के रहनेवाले थे| उन्होंने वेद और उपनिषदों का अध्ययन कर लिया था| उनका तत्वज्ञान भी समझ लिया था| लेकिन इतना सब करने के बाद भी उनका मन शांत न था|

एक बार बापू साहब बूटी शिरडी आये हुए थे| तब एक दिन उनसे बाबा साहब डेंगले जो ज्योतिष विद्या के जानकर भी थे, ने बापू साहब बूटी से कहा – “आज का दिन आपके लिए बहुत घातक है| आपके जीवन पर कोई संकट आ सकता है| सावधान रहिये|” इस बात को सुनकर बापू साहब उदास और बेचैन हो गये कि अब क्या होगा?

साईं बाबा के एक भक्त केपर गांव में रहते थे, उनका नाम गोपालराव गुंड था| उन्होंने संतान न होने के कारण तीन-तीन विवाह किये, फिर भी उन्हें संतान सुख प्राप्त न हुआ| अपनी साईं भक्ति के परिणामस्वरूप उन्हें साईं बाबा के आशीर्वाद से एक पुत्र संतान की प्राप्ति हुई| पुत्र संतान पाकर उनकी खुशी का कोई ठिकाना न रहा|

शिरडी में जिस तरह रामजन्म उत्सव मनाया जाता, वैसे ही कृष्ण जन्मोत्सव भी मनाया जाता था| पालना बांधकर कृष्ण जन्मदिन बड़ी धूमधाम से, हँसते गाते, नाचते-भजन-कीर्तन करते हुए मनाया जाता| आस-पास के गांवों से भी लोग इस उत्सव को देखने के लिए आते थे|

बाबा केवल यही चाहते थे कि सबका भला हो| बाबा अपने पास आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को सत्य-मार्ग पर चलने के लिए कहते| अच्छाई करने के लिए सबको प्रेरित करते| जो भी व्यक्ति अच्छाई की राह पर चलता, बाबा उसका हौसला और बढ़ाते|

ठीक उसी समय मस्जिद में घंटी बजने लगी| बाबा के भक्त रोजाना दोपहर को बाबा की पूजा और आरती करते थे| यह घंटी दोपहर की पूजा-आरती की सूचक थी| शामा और हेमाडपंत तेजी से मस्जिद की ओर चल पड़े| बापू साहब जोग पूजन शुरू कर चुके थे| सभी आरती गा रहे थे| शामा हेमाडपंत का हाथ पकड़कर बाबा के दायीं ओर बैठ गये, जबकि हेमाडपंत सामने बैठ गये|

अब तक साईं बाबा का प्रसिद्धि पूना और अहमदनगर तक फैल चुकी थी| दासगणु के मधुर कीर्तन के कारण बाबा का यश कोंकण तक व्याप्त हो चुका था| लोगों को उनका कीर्तन करना बहुत अच्छा लगता था और उनके कीर्तन का प्रभाव लोगों के हृदयों पर गहरे तक पड़ता था|