HomePosts Tagged "श्री साईं बाबा जी की लीलाएं"

दामोदर को सांप के काटने और साईं बाबा द्वारा बिना किसी मंत्र-तंत्र अथवा दवा-दारू के उसके शरीर से जहर का बूंद-बूंद करके टपक जाना, सारे गांव में इसी की ही सब जगह पर चर्चा हो रही थी|

बाबा को द्वारिकामाई मस्जिद में आए अभी दूसरा ही दिन था कि अचानक मस्जिद के दूसरे छोर पर शोर मच गया – “काट लिया! काट लिया! काले नाग ने काट लिया|”

नांदेड में रहनेवाले रतनजी शापुरजी वाडिया एक फारसी सज्जन थे| उनका बहुत बड़ा व्यवसाय था| किसी भी चीज की कोई कमी नहीं थी| प्रकृति से वो बहुत धार्मिक थे| अपने दान-धर्म की वजह से वे बहुत प्रसिद्ध थे| ईश्वर की कृपा से उनके पास सब कुछ था| यदि उनके जीवन में किसी चीज की कमी थी तो वह एक संतान की| संतान के लिए तरसते थे| वह संतान पाने के लिए सदैव प्रभु से प्रार्थना करते थे|

साईं बाबा कभी-कभी अपने भक्तों के साथ हँसी-मजाक भी किया करते थे, परन्तु उनकी इस बात से न केवल भक्तों का मनोरंजन ही होता था, बल्कि वह भावपूर्ण और शिक्षाप्रद भी होता था| एक ऐसी ही भावपूर्ण, शिक्षाप्रद व मनोरंजक कथा है –

भीमा जी पाटिल पूना जिले के गांव जुन्नर के रहनेवाले थे| वह धनवान होने के साथ उदार और दरियादिल भी थे| सन् 1909 में उन्हें बलगम के साथ क्षयरोग (टी.बी.) की बीमारी हो गयी| जिस कारण उन्हें बिस्तर पर ही रहना पड़ा| घरवालों ने इलाज कराने में किसी तरह की कोई कोर-कसर न छोड़ी| लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ| वह हर ओर से पूरी तरह से निराश हो गये और भगवान् से अपने लिए मौत मांगने लगे|

एक बार बापू साहब बूटी को अम्लपित्त का रोग हो गया| उन्होंने बहुत इलाज करवाया परन्तु कोई लाभ नहीं हुआ| रोग की वजह से वह इतने कमजोर हो गये कि अब वे मस्जिद जाकर बाबा के दर्शन कर पाने में खुद को असमर्थ पाने लगे| यह बात बाबा को भी पता चल गयी|

आलंदी गांव (पूजा) के रहनेवाले एक स्वामी जी कर्णपीड़ा से बहुत दु:खी थे| उनके कान में इतना दर्द होता था कि वह रात को सो भी नहीं पाते थे| कान में सूजन बनी रहती थी| अनेकों इलाज करवाये पर कोई लाभ नहीं हुआ| डॉक्टरों ने ऑपरेशन करवाने को कहा|

बालागनपत दर्जी शिरडी में रहते थे| वह बाबा के परम भक्त थे| एक बार उन्हें जीर्ण ज्वर हो गया| बुखार की वजह से वह सूखकर कांटा हो गये| बहुत इलाज कराये, पर ज्वर पूरी तरह से ठीक नहीं हुआ| आखिर में थक-हारकर साईं बाबा की शरण में पहुंचे| वहां पहुंचकर बाबा से पूछा – “बाबा ! मेरा ऐसा कौन-सा पाप कर्म है जो सब तरह की कोशिश करने के बाद भी बुखार मेरा पीछा नहीं छोड़ता?”

एक समय दासगणु महाराज हरिकथा कीर्तन के लिए शिरडी आये थे| उनका कीर्तन होना भक्तों को बहुत आनंद देता था| सफेद धोती, कमीज, ऊपरी जरी का गमछा और सिर पर शानदार पगड़ी पहने और ऊपर से मधुर आवाज दासगणु का यह अंदाज श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देता था| उनका कीर्तन सुनने के लिए दूर-दूर से श्रोताओं की भारी भीड़ एकत्रित हुआ करती थी|

शामा साईं बाबा के परमभक्त थे| साईं बाबा अक्सर कहा करते थे कि शामा अैर मेरा जन्मों-जन्म का नाता है| एक बार की बात है कि शाम के समय शामा को हाथ की अंगुली में एक जहरीले सांप ने डस लिया| सांप का जहर धीरे-धीरे अपना असर दिखाने लगा, तो दर्द के मारे शामा चीखने-चिल्लाने लगा| अब मृत्यु दूर नहीं, इस विचार के मन में आते ही घबराहट बढ़ गयी|