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दूसरे दिन कार्तिक वदी ९ संवत १७१८ विक्रमी को गुरु जी ने अपने आसन पर चौकड़ी मार ली| अपने श्रद्धानंद स्वरूप में वृति जोड़कर शरीर को त्याग दिया व सच क्खंड जा विराजे| आप जी के पांच तत्व के शरीर को चन्दन कि चिता में तैयार करके गुरु हरिगोबिंद जी के द्वारा निर्मित पतालपुरी के स्थान के पास अग्निभेंट कर दिया गया|

गुरु हरिगोबिंद जी (Shri Guru Hargobind Ji) ने अपना अंतिम समय नजदीक पाकर श्री हरि राय जी (Shri Guru Harrai Ji) को गद्दी देने का विचार किया| वे श्री हरि राय जी से कखने लगे कि तुम गुरु घर कि रीति के अनुसार पिछली रात जागकर शौच स्नान करके आत्मज्ञान को धारण करके भक्ति मार्ग को ग्रहण करना|

एक दिन गुरु हरि राय जी कुछ सिखो को साथ लेकर बाबा गुरु दित्ता जी के समाने वाले स्थान के दर्शन करने के लिए पहाड़ी पर गए| वहाँ गुरु जी काफी देर खड़े रहे और देखते रहे| जब बहुत समय ऐसे ही बीत गया तो सिखो ने गुरु जी से पूछा महाराज! आप इधर क्या देख रहे हो|

भाई भगतू का पुत्र गौरा जो की बठिंडे का राजा था गुरु हरि राय जी के आने की खबर सुनकर उनके पास पहुँचा उसने एक अच्छा घोड़ा और पांच सौ रुपये भेंट करकर गुरु जी को माथा टेका| गुरु जी ने गौरे से पूछा जिस लड़की से भाई भगतू ने अपनी मृत्यु से पहले वचन के द्वारा ही शादी की थी उसका क्या हाल है|

एक दिन काला अपने यतीम भतीजो लोहिया और संदली को साथ लेकर गुरु हरि राय जी के पास लाया| पहले उसने गुरु जी को माथा टेका फिर अपने भतीजो को ऐसा करने के लिए कहा| परन्तु वहाँ खड़े खड़े ही बच्चों के पेट बजने लगे| गुरु जी ने कहा कालेआ! यह क्या कहतें हैं|

करतारपुर में एक ब्राहमण का इकलौता लड़का मर गया| लड़के के माता-पिता गुरु हरि राय जी के पास आ गए और कहने लगे कि हमारे पुत्र को जीवित कर दो| नहीं तो हम भी आपके द्वार पर प्राण त्याग देंगे| तब गुरु जी ने कहा अगर कोई इस लड़के कि जगह प्राण देगा तो यह जीवित हो जाएगा|

शाहजहाँ के बेटे का नाम दारा शिकोह था| शाहजहाँ अपने बड़े पुत्र को ताज़ देना चाहता था| परन्तु इसका तीसरा लड़का औरंगजेब अपने भाई से इर्ष्या करता था जिसके कारण औरंगजेब ने रसोइए की ओर से शेर की मूंछ का बल अथवा कोई जहरीली चीज़ खिला दी जिससे दारा शिकोह बीमार हो गया| बादशाह ने उसका बहुत इलाज़ करवाया परन्तु दारा शिकोह ठीक ना हुआ| 

एक बजुर्ग माई जो कि निर्धन थी| उसके मन में यह भाव था कि गुरु जी उसके हाथ का तैयार किया हुआ भोजन खाये| जिस दिन गुरु जी उसके हाथ का बना भोजन खायेगें वह किसमत वाली हो जायेगी| उसने मेहनत मजदूरी करके कुछ पैसे जोड़ लिए और गुरु जी के भोजन के लिए रसद भी तैयार करके रख ली| 

एक भगवान गिर सन्यासी साधु ने गुरु की बहुत महिमा सुनी कि आप ईश्वर अवतार हैं| मन में यह धारणा लेकर गुरु दर्शन के लिए आ गए कि अगर गुरु सच्चा है तो यह मुझे चतुर्भुज रूप में दर्शन देंगे| मैं तब ही इन्हें सच्चा ईश्वर का अवतार मानूंगा|