HomePosts Tagged "बीमारीयों के लक्षण व उपचार" (Page 6)

इस रोग में आंखों की किसी एक पलक पर या कोने में एक फुन्सी निकल आती है| यह बंद गांठ-सी होती है| इसे छूने पर कड़ापन मालूम पड़ता है|

पेट में मन्दाग्नि के कारण एक रोग उत्पन्न हो जाता है जो ‘गैस बनने’ के नाम से प्रसिद्ध है| यह रोग कोष्ठ के मार्ग से बनकर रोगी को परेशान करता है| मुख से लेकर गुदा तक का मार्ग कोष्ठ माना जाता है|

कुछ संक्रामक रोगों के कारण शरीर पर फोड़े-फुंसियां निकल आती हैं| प्रदूषित वातावरण भी फोड़े-फुंसियों को उत्पन्न करने का कारण बनता है| फोड़े-फुंसियों के निकलने पर उनमें खुजली-जलन होती है तथा रोगी बेचैनी महसूस करता है|

पेट की खराबी, प्रदूषित भोजन तथा अम्लीय पदार्थों का अधिक सेवन नहीं करना चाहिए| इससे गुर्दों से शोथ हो जाता है| इसी बात को चिकित्सक यूं कहते हैं कि गुर्दे में जब क्षारीय तत्त्व बढ़ जाते हैं तो उसमें सूजन आ जाती है| फलस्वरूप वहां दर्द होने लगता है|

प्राय: छोटे-बड़े लोगों की आंखें किन्हीं कारणवश दुःखने लगती हैं| यदि शुरुआती दौर में ही इन पर ध्यान दिया जाए तो घातक परिणाम नहीं होता| इसके अलावा नियमित रूप से आंखों को दिन में कई बार धोने अथवा उन पर पानी के छींटे मारने चाहिए| इससे भी आंखों का रोग होने की संभावना नहीं रहती|

मुंह के भीतर छाले पड़ने को ‘मुखपाक’ भी कहते हैं| यह एक ऐसा रोग है जिसके कारण रोगी को भोजन करने, बोलने तथा गाने आदि में अपार कष्ट होता है|

स्वस्थ वीर्य हिमानुश्य का पुरुषार्थ है| स्त्री-भोग का आनंद स्तम्भन शक्ति में निहित है| बहुत अधिक मैथुन करने, असमय मैथुन करने, खट्टे, कड़वे, रूखे, कसैले, खारे एवं चटपटे पदार्थ खाने, मानसिक तनाव रखने तथा अप्राकृतिक साधनों से वीर्य त्यागने पर ही व्यक्ति में नपुंसकता उत्पन्न होती है|

तिल्ली में वृद्धि होने से पेट के विकार, खून में कमी तथा धातुक्षय की शिकायत शुरू हो जाती है| यह रोग भी मनुष्य को बेचैनी एवं कष्ट प्रदान करता है| शुरू में इस रोग का उपचार करना आसान होता है, परंतु बाद में कुछ परेशानियों का सामना करना पड़ता है|

खून की खराबी के कारण खुजली हो जाती है| यह रोग अधिक खतरनाक नहीं है| लेकिन यदि असावधानी बरती जाती है तो यह रोग जटिल बन जाता है| इसलिए रोगी को खाने-पीने के मामले में विशेष सावधानी बरतनी चाहिए|