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यह सर्व गुण संपन्न है| पुराना गुड़ पाचक होता है| स्वास्थ्यवर्धक है; भूख को खोलने वाला है| वायु नाशक, पित्त, वीर्यवर्धक एवं रक्त शोधक है| सोंठ के साथ गुड़ वायु-संबधी समग्र विकारों को अतिशीघ्र दूर करता है| हृदय की दुर्बलता के लिए यह एक रामबाण औषधि है|

यह अत्यन्त तृप्तिदायक, शीतल एवं शहद जितना मीठा होता है| यह बहुत अधिक शक्तिवर्धक और वीर्यवर्धक होता है तथा हृदय के लिए परम हितकारी है| इसका सेवन क्षयरोग में लाभकारी है| रक्तवर्धक होने के साथ-साथ इसमें सभी पौष्टिक तत्त्व विद्यमान रहते हैं| जो शरीर के विकास के लिए परमापयोगी हैं| ये शुक्राणु एवं डिम्बवर्धक हैं तथा मांसपेशियों की शिथिलता को दूर करने में उपयोगी हैं| कामशक्ति व यौनशक्ति को बढ़ाने में अद्वितीय हैं| इनके नित्य सेवन से शरीर हृष्ट-पुष्ट बनता है| चार से अधिक छुआरे एक बार में नहीं खाने चाहिए, वरना ये गर्मी करते हैं| दूध में भिगोकर छुआरा खाने से इसके पौष्टिक गुण बढ़ जाते हैं|

दूब या दुर्वा एक घास है जो जमीन पर पसरती है। आयुर्वेद के अनुसार दूब का स्वाद कसैला-मीठा होता है। विभिन्न प्रकार के पित्‍त एवं कब्‍ज विकारों को दूर करने के लिए दूब का प्रयोग किया जाता है। इसके आध्यात्मिक महत्वानुसार प्रत्येक पूजा में दूब को अनिवार्य रूप से प्रयोग में लाया जाता है

यह पचने में हल्की और रुक्षताकारक होती है| इसका प्रभाव शीतल होने से यह पित्तनाशक मानी गयी है| इससे शरीर तथा पेट की जलन शांत होती है| छिलके युक्त मूंग की दाल नेत्रों के लिए बहुत ही हितकर होती है| इसे साबुत, छिलके वाली तथा छिलका रहित प्रयोग किया जाता है| सभी प्रकार के ज्वरों में साबुत मूंग या मूंग की दाल का प्रयोग आहार के रूप में किया जाता है|

एक विलायती करौंदा भी होता है, जो भारतीय बगीचों में पाया जाता है। इसका फल थोड़ा बड़ा होता है और खाने में खट्टे स्वाद वाला ये फल कई तरह के रोगों से लड़ने की भी शक्ति रखता है। इसकी ऊंचाई 6 से 7 फीट तक होती है। पत्तों के पास कांटे होते है जो मजबूत होते है। 

हर्र के नाम से सभी परिचित हैं| इसे हरड़ भी कहते हैं| इसमें इतने गुण हैं कि हमारे पूर्वजों और वैद्यों ने इसके अनेक नाम रख दिए हैं, जैसे – विजया, रोहिणी, जीवन्ती, कल्याणी, पूतना, हरीतिकी आदि|

घर में मसालदान में अजवायन का महत्त्वपूर्ण स्थान है| इसका प्रयोग साग-सब्जी, परांठे, काढ़ा आदि में होता रहता है| इसके गुणों के कारण विद्वानों ने इसे कल्याणकारी माना है| अजवायन रोगियों का तो कल्याण करती ही है – स्वस्थ व्यक्तिओं के लिए भी यह परम हितकारी है|

स्त्रियों के मिजाजों की भांति मूली के भी अपने स्वाद भरे मिजाज हैं| बहुत-सी मूली मीठी होती है, बहुत-सी फीकी और बहुत-सी तेज चिरमिरी, मानों दांतों तले तेज मिर्च आ गई हो| इसकी तासीर ठंडी होती है| फिर भी पेट के लिए यह बहुत लाभदायक है| इसके सेवन से भोजन में रुचि बढ़ती है| पेट में गैस (वायु) को तो यह दूर करती ही है, अग्निमांद्य तथा कब्ज को दूर करने में भी समक्ष है|

यह मधुर, स्निग्ध, शीतल, शुक्रजनक एवं वीर्यवर्धक है| रक्त-पित्त एवं पित्त-विकार में अत्यंत लाभकारी है| यह हृदय को बल प्रदान करती है| सूखे मेवों में इसका स्थान भी बहुत महत्वपूर्ण है|

सिघाड़े को ‘जलफल’ और ‘त्रिकोणफल’ भी कहा जाता है| यह तालाब के जल के गर्भ से उत्पन्न होता है| यह मधुर, मृदु एवं सरस होता है| रोग के कीटाणुओं को यह जड़ से नष्ट कर देता है| यह पौष्टिक, शीतल, स्वादिष्ट, रुचिकर, वीर्यवर्धक और त्रिदोषनाशक है तथा स्त्रियों के लिए तो बहुत अधिक लाभकारी है|