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सुश्रुत, वागभट्ट आदि प्राचीन आचार्यों ने औषधि विज्ञान में चूने का महत्वपूर्ण स्थान रखा है| शरीर की हड्डियों को मजबूत करने के लिए कैलशियम नामक तत्त्व को बहुत उपयोगी माना जाता है और वह कैलशियम चूने में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है| चूना जंतु-नाशक है, चूना में क्षार अधिक मात्रा में पाया जाता है| चूने में पाया जाने वाला कैलशियम सर्व प्रकार के प्रदाहिक सूजन में लाभ करता है| इसे चूने के पानी के रूप में प्रयोग किया जाता है| चूने के पानी के रूप में प्रयोग किया जाता है| चूने का पानी आम्ल-नाशक होता है|

साग-सब्जी, दाल, नमकीन हलवा, लड्डू आदि में नित्य हल्दी का प्रयोग किया जाता है| लेकिन यह मसाले के अलावा एक औषधि भी है जो बच्चे से लेकर वृद्ध तक के लिए परम गुणकारी है| इसके सेवन से शरीर में पैदा होने वाली छोटी-मोटी व्याधियां अपने आप दूर होती रहती हैं|

हमारे देश में तुलसी का पौधा घर-घर में मिलता है| तुलसी का अर्थ है – तु’ से भौतिक, ‘ल’ से दैविक और ‘सी’ से आध्यात्मिक तापों का संहार करने वाली| इसका पौधा लगभग 3-4 फुट ऊंचा होता है|

फिटकिरी एक ऐसी औषधि है जिसके बारे में हर घर की महिलाएं बहुत कुछ जानती हैं| यह त्वचा रोगों को दूर करने, शरीर के भीतरी अंगों को सुरक्षा प्रदान करने, कीड़ों को मारने, दर्द को कम करने और सूजन एवं बादी को शान्त करने की बेजोड़ दवा है| इसके प्रमुख औषधीय उपयोग अगले पृष्ठ पर दिए जा रहे हैं –

गूलर को उदुम्बर, उम्बर, अंजेर आदम और किमुटी भी कहते हैं| गूलर की विशेषता यह है कि इसके फूल दिखाई नहीं देते| इसकी शाखाओं पर केवल फल दिखाई देते हैं|

सलाद के रूप में सम्पूर्ण विश्व में खीरा का विशेष महत्त्व है। खीरा को सलाद के अतिरिक्त उपवास के समय फलाहार के रूप में प्रयोग किया जाता है। शरीर की भीतरी शुद्धि हो या बाहरी ठंडक, खीरा हर तरह से लाजवाब होता है। सलाद के रूप में सम्पूर्ण विश्व में खीरा का विशेष महत्त्व है। खीरा को सलाद के अतिरिक्त उपवास के समय फलाहार के रूप में प्रयोग किया जाता है।

यह शीतल प्रकृति की पत्तेदार होती है| पाचन-क्रिया को मजबूत करने व रुचि बढ़ाने में यह सहायता प्रदान करती है| यह शरीर के रोगात्मक विषों को नष्ट करने में समक्ष है| मुख्यत: इसको शाक के रूप में प्रयोग किया जाता है| पेट के रोग तथा गंजेपन की शिकायत भी इससे दूर हो जाती है| यह गठिया, ब्लडप्रेशर और हृदय रोगियों को भी लाभ पहुंचती है|

संभवतया सीताफल उतना ही विख्यात है, जितना कि सीता का नाम| वानरों का यह प्रिय फल है, इसका साग पूड़ियों के साथ अत्यंत स्वादिष्ट लगता है| आधुनिक साँस बनाने में भी इसका पयोग किया जाता है| यह तृप्तिजनक है, बलवर्धक है| रस-मधुर है| हृदय को हितकारी है| वात-कफ का कारक है, किन्तु पित्त का नाशक है|

खजूर को भी शीतकालीन फल ही माना गया है| यह गहरे लाल रंग का गूदेदार होता है| इसके अंदर से गिरी निकलती है| यह अत्यंत तृप्तिदायक, शीतल, मीठा और भारी होता है| इसकी तासीर ठंडी होती है, इसलिए पित्त के अनेक रोगों में यह लाभदायक सिद्ध होता हैं| यह शक्तिवर्धक और वीर्यवर्धक होता है तथा हृदय के लिए परम हितकारी है|

बर्फ़ जल की ठोस अवस्था को कहते हैं। सामन्य दाब पर ० डिग्री सेल्सियस पर जल जमने लगता है, जल की इसी जमी हुई अवस्था को बर्फ़ कहते हैं।