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आज के वर्तमान युग में धन और वैभव के बिना मनुष्य का जीवन अधूरा माना जाता है| यही कारण है कि कलयुग में माता लक्ष्मी जी को सबसे ज्यादा पूजा जाता है| इसी कारण इन्हें धन और समृद्धि की साक्षात् देवी माना जाता है| देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए कुछ आसान मन्त्र इस से प्रकार हैं|

बुध ग्रह सूर्य के सबसे करीब ग्रह है| बुध देवता जी की आरती एंवं स्तुति का अपना ही एक महत्व है| ऐसा माना जाता है की बुध देवता अपने भगतों पर ज्ञान और धन की वर्षा करते हैं| बुधवार के दिन की गई एक प्रार्थना सभी बाधाओं से निजात दिलवाती है, जिससे कई गुना लाभ मिलता है| मुख्यतः रूप से संतान प्राप्ति तथा भूमि के लाभ मे इनकी खासकर पूजा की जाती है|

शुक्रवार के दिन मां संतोषी का व्रत-पूजन किया जाता है. संतोषी माता को हिंदू धर्म में संतोष, सुख, शांति और वैभव की माता के रुप में पूजा जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता संतोषी भगवान श्रीगणेश की पुत्री हैं. माता संतोषी का व्रत पूजन करने से धन, विवाह संतानादि भौतिक सुखों में वृद्धि होती है. यह व्रत शुक्ल पक्ष के प्रथम शुक्रवार से शुरू किया जाता है. सुख, सौभाग्य की कामना से माता संतोषी के 16 शुक्रवार तक व्रत रखे जाने के विधान है.

कबीर हिंदी साहित्य के महिमामण्डित व्यक्तित्व हैं। कबीर के जन्म के संबंध में अनेक किंवदन्तियाँ हैं। कबीर को शांतिमय जीवन प्रिय था और वे अहिंसा, सत्य, सदाचार आदि गुणों के प्रशंसक थे। अपनी सरलता, साधु स्वभाव तथा संत प्रवृत्ति के कारण आज विदेशों में भी उनका समादर हो रहा है। कबीर आडम्बरों के विरोधी थे। मूर्त्ति पूजा को लक्ष्य करती उनकी एक साखी है –

आरती का अर्थ है पूरी श्रद्धा के साथ परमात्मा की भक्ति में डूब जाना। भगवान को प्रसन्न करना। इसमें परमात्मा में लीन होकर भक्त अपने देव की सारी बलाए स्वयं पर ले लेता है और भगवान को स्वतन्त्र होने का अहसास कराता है। 

श्री गुरुनानक देव जी के बढ़े बेटे और उदासी संप्रदाय के संस्थापक थे| इन्होंने बहुत कम उम्र मे भी योग तकनीक मे महारत हांसिल कर ली और अपने पिता बाबा नानक के लिए समर्पित रहे| इन्होंने ही उदासी के आदेश की स्थापना की|

आरती का अर्थ है पूरी श्रद्धा के साथ परमात्मा की भक्ति में डूब जाना। भगवान को प्रसन्न करना। इसमें परमात्मा में लीन होकर भक्त अपने देव की सारी बलाए स्वयं पर ले लेता है और भगवान को स्वतन्त्र होने का अहसास कराता है। 

नैनीताल में, नैनी झील के उत्त्तरी किनारे पर नैना देवी मंदिर स्थित है। 1880 में भूस्‍खलन से यह मंदिर नष्‍ट हो गया था। बाद में इसे दुबारा बनाया गया। यहां सती के शक्ति रूप की पूजा की जाती है। मंदिर में दो नेत्र हैं जो नैना देवी को दर्शाते हैं। नैनी झील के बारें में माना जाता है कि जब शिव सती की मृत देह को लेकर कैलाश पर्वत जा रहे थे, तब जहां-जहां उनके शरीर के अंग गिरे वहां-वहां शक्तिपीठों की स्‍थापना हुई। नैनी झील के स्‍थान पर देवी सती के नेत्र गिरे थे। इसीसे प्रेरित होकर इस मंदिर की स्‍थापना की गई है।