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आरती संग्रह (64)

वंदना निराकार भगवान की आरती इस प्रकार है|

शिर्डी के साईं बाबा न हिन्दू हैं, न मुसलमान, वे अपने भगतों के दुःख दर्द दूर करने मे पूर्ण रुपेन सक्षम माने जाते हैं| अपने जीवन काल मे इन्होंने बहुत से चमत्कार दिखाए| साईं जी के ११ वचनों के अनुसार आज भी वे अपने भक्तों की सेवा के लिए तुरंत ही उपलब्ध हो जाते हैं| साईं बाबा जी के चमत्कार विचित्र माने जाते हैं| भक्तजन बाबा की आरती द्वारा उन्हें स्मरण करते हैं।

खाटू श्याम जी को शीश का दानी के नाम से भी जाना जाता है| इनके इस महान बलिदान को देखकर भगवन श्री कृष्ण ने वीर बर्बरीक को यह वरदान दिया कि यह संसार कलयुग में तुम्हारे मेरे नाम से श्याम, से घर घर में पूजेगा और तुम सब की कामना पूर्ण करोगे| आज श्याम बाबा के देश विदेश में हजारों कि शंख्या में मंदिर हैं| खाटू श्याम जी को शीश के दानी खाटू नरेश श्याम सरकार खाटू नाथ मोर्विनंदन लख दातार श्री खाटू वाले के नाम से भी जानते हैं|

गंगा मैया सबसे अधिकतम गहराई वाली नदी तथा पवित्र मानी गई है| इसकी उपासना माँ और देवी के रूप मे की जाती है| न केवल भारत वर्ष, अपितु विशव भर मे अपने सोंदार्ये और महत्व के कारण विश्व भर मे जानी  जाती है| इस नदी के जल में बैक्टीरियोफेज नामक विषाणु होते हैं, जो जीवाणुओं व अन्य हानिकारक सूक्ष्मजीवों को जीवित नहीं रहने देते हैं। गंगा की इस असीमित शुद्धीकरण क्षमता और सामाजिक श्रद्धा के बावजूद भी इसमे प्रदुषण रोका नहीं जा पा  रहा है|

देवी अन्नपूर्णा हिन्दू धर्म की अन्न की देवी हैं, जो धन, वैभव और सुख शांति को प्रदान करती हैं| इन्हे अन्न की पूर्ति करने वाली देवी माना जाता है | मान्यता है की देवी अन्पुर्न्ना भक्तों की भूख शांत करती है| इनकी आराधना करने वाले भक्तों के घर मे कभी अनाज की कमी नहीं होती है|

पौराणिक इतिहास से ग्यात होता है की महाभारत के युद्ध में चक्रव्यूह में वीर अभीमन्यु वीर गति को प्राप्त हुए थे | उस समय उत्तरा जी को भगवान श्री कृष्णा जी ने वरदान दिया था की कलयुग में तू “नारायाणी” के नाम से श्री सती दादी के रूप में विख्यात होगी और जन जन का कल्याण करेगी, सारे दुनिया में तू पूजीत होगी | उसी वरदान के स्वरूवप श्री सती दादी जी आज से लगभग 715 वर्ष पूर्वा मंगलवार मंगसिर वदि नवमीं सन्न 1352 ईस्वीं 06.12.1295 को सती हुई थी |

हिन्दू मान्यता के अनुसार पारवती जी ही देवी भगवती हैं| पार्वती जी को बहुत दयालु, कृपालु और करूणा मई मन जाता है| इनकी आराधना करने पर भक्तो के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं| तथा घर मई सुख शांति का वास होता है| देवी पारवती जी जैसा की सर्व विदित ही है, की शंकर भगवान् जी की अर्धांगिनी है| इनकी आरती उतार कर इन्हे प्रसन्न किया जा सकता है|

शीतला माता जी के व्रत का महा महत्व मन गया है| धार्मिक मान्येताओं के अनुसार जजों इनकी पूजा व् आरती करता है वह दैहिक और दैविक ताप से मुक्त हो जाता है| इसी व्रत से पुत्र प्राप्ति भी होती है तथा सोभाग्य प्राप्त होता है| पुत्री की इच्छा रखने वाली महिलाओं के लिए यह व्रत उत्तम कहा गया है।

भगवान् शंकर के अवतारों मे भैरव जी का अपना ही एक विशिष्ट स्थान है| भ – से विशव का भरण, र – से रमेश, व् – व् से वमन , अर्थात सृष्टि की उत्पत्ति, पालन और सहांर करने वाले शिव ही भैरव हैं| भैरव यंत्र की बहुत विशेषता मानी गई है, भैरव साधना अकाल मौत से बचाती है, तथा भूत प्रेत, काले जादू से भी हमारी रक्षा करता है|

श्री भागवत पूरण के दशम स्कंद के उत्तरार्ध के ५८ मे अध्याय के १७ से २३ श्लोक तक यमुना जी ने जहा श्री कृष्ण प्राप्ति को तप किया वह जगह यमुना किनारे पर स्धित है जो कभी भी प्रकाशित और प्रचारित नही हुई वो जहाँ श्री यमुना जी ने तप किया वह जगह वर्तमान मे यमुना किनारे मथुरा विश्राम घाट  से कुछ दूरी पर स्तिथ हैं| जो श्री यमुना तपोभूमि के नाम से स्थापित है| इसकी आरती इस प्रकार है|

संतोषी माता को हिन्दू धरम मे संतोष, सुख, शांति और वैभव की माता के रूप मे पूजा जाता है| ऐसा माना जाता है की माता संतोषी भगवान् श्री गणेश की पुत्री हैं| संतोषी नाम संतोष से बना है| संतोष का हमारे जीवन मे बहुत महत्व है| अगर जीवन मे संतोष न हो तो इन्सान मानसिक और शारीरिक तोर पर बेहद कमजोर हो जाता है| संतोषी मां हमें संतोष दिला हमारे जीवन में खुशियों का प्रवाह करती हैं.

पूजा के अन्त में आरती की जाती है| पूजन में जो त्रुटि रह जाती है, आरती से उसकी पूर्ति होती है| पूजन मन्त्रहीन और क्रियाहीन होने पर भी आरती कर लेने से उसमें सारी पूर्णता आ जाती है| आरती करने का ही नहीं, आरती देखने का भी बड़ा पुण्य होता है| जो धूप और आरती को देखता है और दोनों हाथों से आरती लेता है, वह समस्त पीदियों का उद्धार करता है और भगवान् विष्णु के परमपत को प्राप्त होता है|

सत्यम शिवम और सुन्दरम जो सत्य है वह ब्रह्म है जो शिव है वह परम शुभ और पवित्र आतम तत्व है| शिव से ही धर्म अर्थ काम और मोक्ष है| सभी जगत शिव की ही शरण में हैं, जो शिव के प्रति शरणागत नहीं है वह प्राणी दुःख के गहरे गर्त में डूबता जाता है ऐसा पुराण कहते हैं| जाने-अनजाने शिव का अपमान करने वाले को प्रकृति कभी क्षमा नहीं करती है| शिव की भक्ति हेतु शिव का ध्यान-पूजन किया जाता है| शिवलिंग के विल्वपत्र चढ़ाकर शिवलिंग के समीम मंत्र जाप या ध्यान करने से मोक्ष का मार्ग पुष्ट होता है|

हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी दुर्गा जी को सबसे शक्तिशाली देवी माना गया है| देवी दुर्गा , परमेश्वर ब्रह्मा (निर्माता) , विष्णु ( रक्षक ), और शिव ( विनाशक ) के संयुक्त ऊर्जा से उभरी है, राक्षस महिषासुर से युद्ध करने के लिए , कथा के अनुसार राक्षस महिषासुर को वरदान दिया गया था की वह और इंसान और भगवान द्वारा नहीं मारा जा सकता। यहां तक कि ब्रह्मा (निर्माता) , विष्णु ( रक्षक ), और शिव ( विनाशक ) ने भी उसे रोकने में नाकाम रहे ,इसलिए एक स्त्री ऊर्जा की उपस्थिति नरसंहार करने के लिए की गयी ,जिसने तीनो लोको में तहलका मचा दिया था-अर्थ , स्वर्ग और नीचे की दुनिया। देवी दुर्गा को सभी देवताओं द्वारा विभिन्न हथियार उपहार में दिए गए थे। जिसमें से भाला और त्रिशूल सबसे आम तौर पर उसके चित्रों में दर्शाया गया है ।वह सुदर्शन चक्र, तलवार , धनुष और तीर और अन्य हथियार पकड़े देखि गयी है। शाली देवी माना जाता है| 

शिव को देवों के देव कहते हैं, इन्हें महादेव, भोलेनाथ, शंकर, महेश, रुद्र, नीलकंठ के नाम से भी जाना जाता है। तंत्र साधना में इन्हे भैरव के नाम से भी जाना जाता है | हिन्दू धर्म के प्रमुख देवताओं में से हैं। वेद में इनका नाम रुद्र है। यह व्यक्ति की चेतना के अन्तर्यामी हैं। और उनकी पूजा शिवलिंग तथा मूर्ति दोनों रूपों में की जाती है।

काली जी का जन्म राक्षसों के विनाश के लिए हुआ था| कलि माता जी को माता जगदम्बे, अदि शक्ति का रूप माना जाता है और इनकी आराधना से सभी दुःख दूर हो जाते है| काली माता जी को बल और शक्ति की देवी माना जाता है|

हिन्दुओं के शास्त्रों में पवित्र वेद व गीता विशेष हैं, उनके साथ-2 अठारह पुराणों को भी समान दृष्टी से देखा जाता है। श्रीमद् भागवत सुधासागर, रामायण, महाभारत भी विशेष प्रमाणित शास्त्रों में से हैं। विशेष विचारणीय विषय यह है कि जिन पवित्र शास्त्रों को हिन्दुओं के शास्त्र कहा जाता है, जैसे पवित्र चारों वेद व पवित्र श्रीमद् भगवत गीता जी आदि, वास्तव में ये सद् शास्त्र केवल पवित्र हिन्दु धर्म के ही नहीं हैं

शिवरात्रि के दिन, भगवान् शिव का सुहाना सुसजित एवं सुंदर चित्र देखने को मिलता है, जिसे देखने के लिए भगतों की भीड़ उमड़ पढ़ती है| इन दिनों भागात्वत्सल्ये भगवान् महा कालेश्वर का विशेष श्रृंगार किया जाता है अथवा उन्हे विविध प्रकार के फूलों से सजाया जाता है| अनेकानेक प्राचीन वांग्मय महाकाल की व्यापक महिमा से आपूरित हैं क्योंकि वे कालखंड, काल सीमा, काल-विभाजन आदि के प्रथम उपदेशक व अधिष्ठाता हैं। स्कन्दपुराण के अवंती खंड में, शिव पुराण (ज्ञान संहिता अध्याय 38), वराह पुराण, रुद्रयामल तंत्र, शिव महापुराण की विद्येश्वर संहिता के तेइसवें अध्याय तथा रुद्रसंहिता के चौदहवें अध्याय में भगवान महाकाल की अर्चना, महिमा व विधान आदि का विस्तृत वर्णन किया गया है।

सालासर बालाजी या सालासर धाम भगवान् हनुमान जी के भक्तो के लिए धार्मिक महत्व की एक जगह है| यह चुरू जिले मे राजस्थान सालासर के शहर मे स्थित है| सालासर बाला जी का मंदिर विश्वास और चमत्कारों का एक शक्ति स्थल है| बालाजी की मूर्ति यहाँ भगवान् हनुमान के अन्य सभी मूर्तियों से अलग हैं| जब शाम चार बजे बाला जी की आरती होती है तो उपरी भुत प्रेतों की छाया वाले व्यक्ति झूम उठते हैं, उनके कार्य आम इन्सान जैसे ना होकर अपितु डरावने होते हैं| इसी कार्य के लिए लाखों लोग यहाँ एकत्र होते हैं|

भगवान राम हिंदू धर्म में सबसे लोकप्रिय देवताओं में से है | भगवान राम ने अयोध्या के राजा दशरथ और महारानी कौशल्या के ज्येष्ठ पुत्र के रूप में अयोध्या शहर में जन्म लिया | भगवान राम को आदर्श महिला और सीता माता के प्रतीक के रूप में पूजा जाता है |

तुलसी को तुलसी माता के नाम से जाना जाता है| ऐसा माना जाता है की घर मे तुलसी का पोधा लगाने से पर्यावरण शुद्ध होता है अथवा सभी रोगों से रक्षा होती है| भगवान् विष्णु जी को तुलसी अति प्रिये थी| तुलसी माता की पूजा से सुख सम्पति का वास होता है तथा तुम्हारा हरी से अत्यंत प्यार होता है|

आरती का अर्थ है पूरी श्रद्धा के साथ परमात्मा की भक्ति में डूब जाना। भगवान को प्रसन्न करना। इसमें परमात्मा में लीन होकर भक्त अपने देव की सारी बलाए स्वयं पर ले लेता है और भगवान को स्वतन्त्र होने का अहसास कराता है।

श्याम बाबा जी का वर्णन महाभारत काल मे किया गया है| ऐसा माना जाता है कि श्याम बाबा जी की सच्चे मन से अराधना करने से सभी कार्यों मे सफलता मिलती है तथा सर्व मनो कामनाएं पूर्ण होती हैं| इनकी उपासना को बहुत पवित्र और स्वच्छ माना गया है| श्याम जी की आरती का बहुत महत्व है|

हनुमान जी एक ऐसे देवता हैं| थोड़ी सी प्रार्थना और पूजा से शीर्घ प्रसन्न हो जाते हैं| शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो जो इन्हें ना जानता हो हनुमान जी भगवान राम के अनन्य भक्त थे| शनिवार और मंगलवार का दिन इनके पूजन के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है| अगर आप अपनी परेशानियों से निजात पाना चाहते हैं तो आप निम्न मंत्र और उपाय अजमाएं| शीघ्र ही आपके सारे कष्ट दूर होकर आपको सुख की अनुभति होगी|

पूजन मन्त्रहीन और क्रियाहीन होने पर भी नीराजन (आरती) कर लेने से उसमें सारी पूर्णता आ जाती है। आरती में पहले मूलमन्त्र जिस देवता का जिस मन्त्र से पूजन किया गया हो, उस मन्त्र के द्वारा तीन बार पुष्पांजलि देनी चाहिये और ढोल, नगारे, शंख, घड़ियाल आदि महावाद्यों की ध्वनि तथा जय-जयकार के शब्द के साथ शुद्ध पात्र में घृत से या कपूर से विषम संख्या की अनेक बत्तियां जलाकर आरती करनी चाहिए।

संतोषी माता हिन्दूओं की एक अहम देवी मानी जाती हैं। मान्यता है कि संतोषी माता की उपासना से जातकों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। संतोषी माता को प्रसन्न करने के लिए निम्न आरती का पाठ किया जाता है।

जब मनुष्य चौतरफा संकटों से घिर जाता है, उनसे निकलने का रास्ता तलाशने में वह विफल हो जाता है तब हनुमान जी की उपासना से बहुत लाभ मिलता है। विशेष रूप से उस समय संकट मोचक हनुमान अष्टक का पाठ बहुत उपयोगी व सहायक सिद्ध होता है।

संत रविदास का नाम शिरोमणि भगतों मे अंकित है| बचपन से ही समाज की बुराइयों को दूर करने के लिए यह सदा तत्पर रहे| इनके जीवन की छोटी छोटी घटनाओ से इनके जीवन का पता चलता है| समाज मे फैली छुआ-छूत, ऊँच-नीच दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई| बचपन से ही रविदास का झुकाव संत मत की तरफ रहा। वे सन्त कबीर के गुरूभाई थे। ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’ यह उनकी पंक्तियाँ मनुष्य को बहुत कुछ सीखने का अवसर प्रदान करती है। ‘रविदास के पद’, ‘नारद भक्ति सूत्र’ और ‘रविदास की बानी’ उनके प्रमुख संग्रहों में से हैं। 

आत्म शुधि और आत्म समर्पण के लिए सत्यनारायण कथा सबसे आसान तरीका है| भगवान् सत्येनारायण जी सभी मनोकामना पूर्ण कर दुखों का नाश करते हैं| सत्यनारायण कथा हर प्रकार से हमे पवित्र कर वासना,क्रोध, लोभ, मोह,और अहंकार से हमे बचाती  है|

ऐसा माना जाता है कि जब भगवान शंकर बैल के रूप में अंतध्र्यान हुए, तो उनके धड से ऊपर का हिस्सा काठमाण्डू में प्रकट हुआ। अब वहां पशुपतिनाथ का मंदिर है। शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथमें, नाभि मदमदेश्वरमें और जटा कल्पेश्वरमें प्रकट हुए। इसलिए इन चार स्थानों सहित श्री केदारनाथ को पंचकेदार कहा जाता है। यहां शिवजी के भव्य मंदिर बने हुए हैं।

माता गायत्री शक्ति, ज्ञान, पवित्रता तथा सदाचार का प्रतीक मानी जाती है। मान्यता है कि गायत्री मां की आराधना करने से जीवन में सूख-समृद्धि, दया-भाव, आदर-भाव आदि की विभूति होती हैं। माता गायत्री की पूजा में निम्न आरती का भी विशेष प्रयोग किया जाता है।

मर्यादा पुरुषोतम श्री राम जी के नाम को ही मन्त्र मन गया है| राम से बड़ा, राम का नाम| राम नाम का जाप करने मात्र से मनुष्य के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं|  श्री राम चन्द्र जी को स्मरण करने के लिए आरती का भी पाठ किया जाता है|

आरती का अर्थ है पूरी श्रद्धा के साथ परमात्मा की भक्ति में डूब जाना। भगवान को प्रसन्न करना। इसमें परमात्मा में लीन होकर भक्त अपने देव की सारी बलाए स्वयं पर ले लेता है और भगवान को स्वतन्त्र होने का अहसास कराता है।

कृष्ण और राधा जी का प्रेम कोए साधारण प्रेम नहीं , अपितु एक अनोखा प्रेम माना गया है| यह प्रेम रहस्य कोई प्रभु का भगत ही समझ सकता है| इतना अटूट प्यार और दुलार शायद ही इतिहास मे देखने को मिले| जितने भी गुरु पीर पैगम्बर हुए, उनमे श्री कृष्ण जी को १६ गुण संपन्न मन गया है| इस के अलावा, इनकी रास लीला भी अपरम्पार है| राधा जी का नाम ,क्रिशन जी के नाम से पहले अत है, जो की अटूट प्यार की निशानी है|

हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार, श्री जगदम्बा जी को सबसे शक्तिशाली देवी माना गया है| श्री जगदम्बा जी, परमेश्वर ब्रह्मा (निर्माता) , विष्णु ( रक्षक ), और शिव ( विनाशक ) के संयुक्त ऊर्जा से उभरी है, राक्षस महिषासुर से युद्ध करने के लिए , कथा के अनुसार राक्षस महिषासुर को वरदान दिया गया था की वह और इंसान और भगवान द्वारा नहीं मारा जा सकता। यहां तक कि ब्रह्मा (निर्माता) , विष्णु ( रक्षक ), और शिव ( विनाशक ) ने भी उसे रोकने में नाकाम रहे ,इसलिए एक स्त्री ऊर्जा की उपस्थिति नरसंहार करने के लिए की गयी ,जिसने तीनो लोको में तहलका मचा दिया था-अर्थ , स्वर्ग और नीचे की दुनिया। श्री जगदम्बा जी को सभी देवताओं द्वारा विभिन्न हथियार उपहार में दिए गए थे। जिसमें से भाला और त्रिशूल सबसे आम तौर पर उसके चित्रों में दर्शाया गया है । वह सुदर्शन चक्र, तलवार , धनुष और तीर और अन्य हथियार पकड़े देखि गयी है। शाली देवी माना जाता है| 

कुंजबिहारी की आरती समस्त प्रसिद्ध आरतियों में से एक है. यह भगवान का पूजन करते समय यथा श्रीकृष्ण के जन्म जन्माष्टमी के अवसर पर कुंजबिहारी की आरती की स्तुति की जाती है. आरती अक्सर मंदिरों और घरों में गाई जाती है. कुंजबिहारी भगवान कृष्ण के हजारों नामों में से एक नाम है तथा कुंज का अभिप्राय वृन्दावन की हरियाली घासों से युक्त एक स्थल से है|

हिंदू धर्म के अनुसार श्री कृष्ण जी को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। श्री कृष्ण को पूर्णावतार भी कहा जाता है क्योंकि उनके मृत्यु लोक के सभी चरणों को भोगा है। मान्यता है कि भक्ति-भाव से भगवान कृष्ण की पूजा करने से सफलता, सुख और शांति की प्राप्ति होती है। कृष्ण जी को मक्खन बहुत पसंद होता है। श्री कृष्ण वंदना के लिए लोग “हरे कृष्णा हरे कृष्णा” का जाप करते हैं। साथ ही कृष्ण जी की आरती को भी बेहद महत्त्वपूर्ण माना जाता है।

बद्रीनाथ मंदिर भगवान् विष्णु जी के रूप बद्रीनाथ को समर्पित है| हिन्दुओ के चार धाम मे से बद्रीनाथ को एक धाम मन गया है| इस मंदिर मे नर नारायण विग्रह की पूजा होती है | जो की अचल ज्ञान ज्योति का प्रतीक है| हर हिन्दू की यह कामना होती है की वो एक बार बद्रीनाथ की यात्रा जरुर करे| यहाँ पर शीत के कारन स्नान करना अति कठिन होता है|

सतना जिले की मैहर तहसील के पास त्रिकूट पर्वत पर स्थित माता के इस मंदिर को मैहर देवी का मंदिर कहा जाता है. मैहर का मतलब है मां का हार. मैहर नगरी से 5 किलोमीटर दूर त्रिकूट पर्वत पर माता शारदा देवी का वास है. पूरे भारत में सतना का मैहर मंदिर माता शारदा का अकेला मंदिर है. इसी पर्वत की चोटी पर माता के साथ ही श्री काल भैरवी, भगवान, हनुमान जी, देवी काली, दुर्गा, श्री गौरी शंकर, शेष नाग, फूलमति माता, ब्रह्म देव और जलापा देवी की भी पूजा की जाती है. कहा जाता है कि अल्हा और उदल जिन्होंने पृथ्वीराज चौहान के साथ युद्ध किया था, वह भी शारदा माता के बड़े भक्त हुआ करते थे. इन दोनों ने ही सबसे पहले जंगलों के बीच शारदा देवी के इस मंदिर की खोज की थी. इसके बाद आल्हा ने इस मंदिर में 12 सालों तक तपस्या कर देवी को प्रसन्न किया था. माता ने उन्हें अमरत्व का आशीर्वाद दिया था. आल्हा माता को शारदा माई कह कर पुकारा करता था|

आप उन्हें बापू कहो या महात्मा दुनिया उन्हें इसी नाम से जानती हैं, अहिंसा और सत्याग्रह के संघर्ष से उन्होंने भारत को अंग्रेजो के स्वतंत्रता दिलाई, उनका ये काम पूरी दुनिया के लिए मिसाल बन गया, वो हमेशा कहते थे बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो, बुरा मत कहो, और उनका मानना था की सच्चाई कभी नहीं हारती, इस महान इन्सान को भारत में राष्ट्रपिता घोषित कर दिया, उनका पूरा नाम ‘मोहनदास करमचंद गांधी‘ था|

हिन्दू धर्म में श्री सत्यनारायण जी को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। मान्यता है कि भक्तिपूर्वक सत्यनारायण जी की कथा और आरती करने वाले जातक के सभी कार्य सिद्ध होते हैं।

माता चिन्तपुरनी हिमाचल मे स्थित प्रमुख धार्मिक स्थलों मे से एक है|

शनि व्रत रखने का बहुत महत्व माना गया है| कुंडली में शनि की महादशा अथवा साढ़े साती या ढैय्या में शनि जी के अशुभ प्रभावों से बचने के लिए शनि व्रत का महत्व माना गया है| शनि जी के इस मंत्र – ‘ऊँ शं शनिश्चराय नम:” को कम से कम 108 बार जाप करना चाहिए| शनि व्रत में शनि देव की आरती के साथ साथ दान भी जरूरी है| उड़द, तेल, तिल, नीलम रत्न, काली गाय, भैंस, काला कम्बल या कपड़ा, लोहा या इससे बनी वस्तुएं और दक्षिणा किसी ब्राह्मण को दान करना चाहिए।

गणेश जी को पार्वती जी का दुलारा कहा जाता है, गणेश जी को गजानंद के नाम से भी जाना जाता है यही कारण है कि समस्त भक्तजन इनकी दुःख हरता के नाम से आरती करते हैं| ऐसा माना जाता है कि गणेश जी की आरती गाने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं| 

शनि देव के पिता, सुर्येदेव अत्यन्त तीव्र प्रकाश और आभा के सवरूप माने जाते हैं, इसके अलावा भगवान् सुर्येदेव ही एकमात्र ऐसे देव हैं, जो की साक्षात दिखाई पढ़ते हैं| प्रतिदिन उठ कर इनकी आराधना सबसे पहले की जाती है, अथवा इन्हे जल चढ़ाना बहुत शुभ कारी मना गया है| सूर्य देव के प्रातः दर्शन कर जल चढ़ाने से सफलता, शांति और शक्ति की प्राप्ति होती है। सूर्यदेव जी की प्रसन्न करने के लिए रोज प्रातः उनकी आरती करनी चाहिए।  

तिरुमला स्थित भगवान वेकटेश्वर के मंदिर की आरती भी आध्यात्मिक होती है। यह तिरुपति बालाजी के मंदिर के नाम से विश्व में विख्यात है। भगवान वेंकटेश्वर को बालाजी अथवा गोविन्दा के नाम से भी जानते हैं।

भय प्रगट कृपाला दीन दयाला कौशिल्या हितकारी |
हरषित महतारी मुनि-मन हारी अदभुत रूप निहारी ||

गुरूवार या वीरवार को भगवान बृहस्पति की पूजा का विधान है. बृहस्पति देवता को बुद्धि और शिक्षा का देवता माना जाता है. गुरूवार को बृहस्पति देव की पूजा करने से धन, विद्या, पुत्र तथा मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है. परिवार में सुख तथा शांति रहती है. गुरूवार का व्रत जल्दी विवाह करने के लिये भी किया जाता है|

हिंदू धर्म में हनुमान जी को भगवान शिव का अवतार माना जाता है। भगवान श्री राम के परम भक्त माने जाने वाले हनुमान जी का स्मरण करने से सभी डर दूर हो जाते हैं। हनुमान जी की पूजा-अर्चना में हनुमान चालीसा, मंत्र और आरती का पाठ किया जाता है।

माता सरस्वती जी को ज्ञान और बुद्धि की माता माना जाता है| मनुष्य को कोई भी ज्ञान इनकी पूजा के बिना संभव नहीं है| देवी सरस्वती वेदों की जननी है| कोई भी बिना ज्ञान के मुक्ति नहीं पा सकता। लोग पूजा के बाद देवी सरस्वती जी की आरती सम्पूर्ण ज्ञान और बुद्धि के आशीर्वाद की प्राप्ति के लिये करते है।

प्रेतराज सरकार को दुष्ट आत्माओं को दंड देने वाले देवता के रूप मे पूजा जाता है| अत्यंत भक्ति भाव से उनकी आरती , कीर्तन एवं भजन किये जाते हैं| प्रेतराज सरकार की बाला बाला जी के सहायक देवता के रूप मे आराधना की जाती है| खासतोर पर चावलों का भोग लगवाया जाता है| यहाँ पर बूंदी के लड्डूओं का भोग भी लगाया जाता है|

यह उपवास सप्ताह के प्रथम दिवस इतवार व्रत कथा को रखा जाता है। रविवार सूर्य देवता की पूजा का वार है। जीवन में सुख-समृद्धि, धन-संपत्ति और शत्रुओं से सुरक्षा के लिए रविवार का व्रत सर्वश्रेष्ठ है। रविवार का व्रत करने व कथा सुनने से मनुष्य की सभी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं। मान-सम्मान, धन-यश तथा उत्तम स्वास्थ्य मिलता है। कुष्ठ रोग से मुक्ति के लिए भी यह व्रत किया जाता है।

दुर्गा माता जी को आदि शक्ति के नाम से भी जाना जाता है| हिंदू धर्म में माता दुर्गा जी को सर्वोपरि माना गया है| ऐसा माना जाता है कि दुर्गा जी भौतिक संसार में सभी सुखों की दात्री हैं| उनकी भक्ति करने तथा आरती गाने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं| माता दुर्गा की आरती का अत्यंत विशेष महत्व है|

जब भगवान विष्णु योगध्यान मुद्रा में तपस्या में लीन थे तो बहुत अधिक हिमपात होने लगा। भगवान विष्णु हिम में पूरी तरह डूब चुके थे। उनकी इस दशा को देख कर माता लक्ष्मी का हृदय द्रवित हो उठा और उन्होंने स्वयं भगवान विष्णु के समीप खड़े हो कर एक बेर (बदरी) के वृक्ष का रूप ले लिया और समस्त हिम को अपने ऊपर सहने लगीं। माता लक्ष्मीजी भगवान विष्णु को धूप, वर्षा और हिम से बचाने की कठोर तपस्या में जुट गयीं । कई वर्षों बाद जब भगवान विष्णु ने अपना तप पूर्ण किया तो देखा कि लक्ष्मीजी हिम से ढकी पड़ी हैं। तो उन्होंने माता लक्ष्मी के तप को देख कर कहा कि हे देवी! तुमने भी मेरे ही बराबर तप किया है सो आज से इस धाम पर मुझे तुम्हारे ही साथ पूजा जायेगा और क्योंकि तुमने मेरी रक्षा बदरी वृक्ष के रूप में की है सो आज से मुझे बदरी के नाथ-बदरीनाथ के नाम से जाना जायेगा। इस तरह से भगवान विष्णु का नाम बदरीनाथ पड़ा।

आज के वर्तमान युग में धन और वैभव के बिना मनुष्य का जीवन अधूरा माना जाता है| यही कारण है कि कलयुग में माता लक्ष्मी जी को सबसे ज्यादा पूजा जाता है| इसी कारण इन्हें धन और समृद्धि की साक्षात् देवी माना जाता है| देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए कुछ आसान मन्त्र इस से प्रकार हैं|

बुध ग्रह सूर्य के सबसे करीब ग्रह है| बुध देवता जी की आरती एंवं स्तुति का अपना ही एक महत्व है| ऐसा माना जाता है की बुध देवता अपने भगतों पर ज्ञान और धन की वर्षा करते हैं| बुधवार के दिन की गई एक प्रार्थना सभी बाधाओं से निजात दिलवाती है, जिससे कई गुना लाभ मिलता है| मुख्यतः रूप से संतान प्राप्ति तथा भूमि के लाभ मे इनकी खासकर पूजा की जाती है|

धूप दीप घुत साजि आरती |
वारने जाउ कमलापति || १ ||

शुक्रवार के दिन मां संतोषी का व्रत-पूजन किया जाता है. संतोषी माता को हिंदू धर्म में संतोष, सुख, शांति और वैभव की माता के रुप में पूजा जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता संतोषी भगवान श्रीगणेश की पुत्री हैं. माता संतोषी का व्रत पूजन करने से धन, विवाह संतानादि भौतिक सुखों में वृद्धि होती है. यह व्रत शुक्ल पक्ष के प्रथम शुक्रवार से शुरू किया जाता है. सुख, सौभाग्य की कामना से माता संतोषी के 16 शुक्रवार तक व्रत रखे जाने के विधान है.

कबीर हिंदी साहित्य के महिमामण्डित व्यक्तित्व हैं। कबीर के जन्म के संबंध में अनेक किंवदन्तियाँ हैं। कबीर को शांतिमय जीवन प्रिय था और वे अहिंसा, सत्य, सदाचार आदि गुणों के प्रशंसक थे। अपनी सरलता, साधु स्वभाव तथा संत प्रवृत्ति के कारण आज विदेशों में भी उनका समादर हो रहा है। कबीर आडम्बरों के विरोधी थे। मूर्त्ति पूजा को लक्ष्य करती उनकी एक साखी है –

आरती का अर्थ है पूरी श्रद्धा के साथ परमात्मा की भक्ति में डूब जाना। भगवान को प्रसन्न करना। इसमें परमात्मा में लीन होकर भक्त अपने देव की सारी बलाए स्वयं पर ले लेता है और भगवान को स्वतन्त्र होने का अहसास कराता है। 

श्री गुरुनानक देव जी के बढ़े बेटे और उदासी संप्रदाय के संस्थापक थे| इन्होंने बहुत कम उम्र मे भी योग तकनीक मे महारत हांसिल कर ली और अपने पिता बाबा नानक के लिए समर्पित रहे| इन्होंने ही उदासी के आदेश की स्थापना की|

आरती का अर्थ है पूरी श्रद्धा के साथ परमात्मा की भक्ति में डूब जाना। भगवान को प्रसन्न करना। इसमें परमात्मा में लीन होकर भक्त अपने देव की सारी बलाए स्वयं पर ले लेता है और भगवान को स्वतन्त्र होने का अहसास कराता है। 

नैनीताल में, नैनी झील के उत्त्तरी किनारे पर नैना देवी मंदिर स्थित है। 1880 में भूस्‍खलन से यह मंदिर नष्‍ट हो गया था। बाद में इसे दुबारा बनाया गया। यहां सती के शक्ति रूप की पूजा की जाती है। मंदिर में दो नेत्र हैं जो नैना देवी को दर्शाते हैं। नैनी झील के बारें में माना जाता है कि जब शिव सती की मृत देह को लेकर कैलाश पर्वत जा रहे थे, तब जहां-जहां उनके शरीर के अंग गिरे वहां-वहां शक्तिपीठों की स्‍थापना हुई। नैनी झील के स्‍थान पर देवी सती के नेत्र गिरे थे। इसीसे प्रेरित होकर इस मंदिर की स्‍थापना की गई है।