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घरेलू नुस्ख़े

प्रकृति ने मनुष्य पर एक असीम कृपा की है अर्थात् उसने मनुष्य के मस्तिष्क को संतुलिन रखने के लिए एक अपर मस्तिष्क की रचना की, जो मनुष्य मस्तिष्क की क्षतिपूर्ति करे, उसे सशक्त बना सके! अखरोट की गिरी को देखने के बाद पता चलेगा कि आपने मनुष्य का मस्तिष्क ही हाथ में ले लिया है| दोनों की आकृति में कोई अंतर नहीं है| अखरोट में ऐसे तत्त्व भरे पड़े हैं, जो मनुष्य के मस्तिष्क को संतुलित एवं सक्षम बनाए रखने में अद्वितीय हैं|

अंगूर एक बलवर्घक एवं सौन्दर्यवर्घक फल है। अंगूर फल मां के दूघ के समान पोषक है। फलों में अंगूर सर्वोत्तम माना जाता है। अंगूर में पर्याप्त मात्रा में कैलोरी, फाइबर और विटामिन सी, ई पाया जाता है| अंगूर के लाजवाब स्वाद से तो हम सभी परिचित हैं लेकिन कम ही लोगों को पता होता है कि ये सेहत का खजाना भी है|

जठराग्नि के मन्द पड़ जाने को अग्निमांद्य कहते हैं| इस रोग में आमाशय (मेदा) तथा आंतों के पचाने की शक्ति कम हो जाती है जिसके कारण खाया-पिया भोजन पिण्ड की तरह पेट में रखा रहता है|

नुस्खा – भुना हुआ सफेद जीरा 100 ग्राम, सोंठ पिसी हुई 50 ग्राम, सेंधा नमक 150 ग्राम, काला नमक 50 ग्राम, कालीमिर्च 50 ग्राम, नीबू का सत 50 ग्राम और पीपरमेंट 2 ग्राम – सभी चीजों को कूट-पीसकर कपड़छन कर लें| फिर इसे शीशी में भरकर रख लें|

हरेक प्रकार के अन्न हो पचाने में अजवाइन को महारथ हासिल है| अजवाइन में चिरायते का कटु पौष्टिक, हींग का वायुनाशक और कालीमिर्च का अग्निदिपन-ये समस्त गुण विद्यमान हैं| इन्हीं गुणों के कारण अजवाइन वायु-कफ, उदर पीड़ा, अफारा एवं कृमि को नष्ट करने में समक्ष है| यह शरीर की वेदना को मिटाती है, कामोद्दीपक है| आमाशय को सक्रीय बनाती है| इससे पक्षाघात एवं कम्पन वायु में लाभ पहुंचता है| इसके काढ़े से आंखें धोने से ज्योति बढ़ती है|

घर में मसालदान में अजवायन का महत्त्वपूर्ण स्थान है| इसका प्रयोग साग-सब्जी, परांठे, काढ़ा आदि में होता रहता है| इसके गुणों के कारण विद्वानों ने इसे कल्याणकारी माना है| अजवायन रोगियों का तो कल्याण करती ही है – स्वस्थ व्यक्तिओं के लिए भी यह परम हितकारी है|

अंजीर एक ऐसा फल है जो न सिर्फ आपके वज़न को घटाने में मदद करता है बल्कि दिल को भी स्वस्थ रखने में मदद करता है। अंजीर एक ऐसा फल है जो न सिर्फ आपके वज़न को घटाने में मदद करता है बल्कि दिल को भी स्वस्थ रखने में मदद करता है।

भोजन का ठीक प्रकार से न पचना अजीर्ण या अपच कहलाता है| यह एक ऐसी दशा है जिसके कारण छोटे-मोटे कई रोग मनुष्य को घेर लेते हैं| यदि यह व्याधि काफी दिनों तक बराबर बनी रहती है तो शरीर में खून बनना बंद हो जाता है|

भोजन न पचने (अग्निमांद्य) की वजह से द्रव्य धातु से मिलकर पाखाना (मल) वायु सहित गुदा से बाहर निकलता है, इसे अतिसार या दस्त कहते हैं| यह छ: प्रकार का होता है – वातिक, पैत्तिक, श्लेष्मज, त्रिदोषज, शोकज तथा आमज|

आर्द्रक अर्थात् अदरक का अर्थ है – नमी की रक्षा करने वाली गुणकारी प्राकृतिक जड़ी| यही अदरक सूखने के बाद सोंठ बन जाती है| इसमें जितना जल होता है, उतनी ही उष्णता भी होती है|

कभी-कभी किन्हीं कारणवश महिलाओं को अधिक मासिक स्त्राव होता है| ऐसी स्थिति में स्त्री को काफी कष्ट तथा कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है| यदि शुरूआती दौर में ही इस रोग का उपचार हो जाए तो घातक परिणाम होने की संभावना नहीं रहती|

अनार खट्टा भी होता है और मीठा भी| खट्टे अनार के छिलके का अर्क चूसने से खांसी चली जाती है जबकि मीठे अनार को खाने से खून बढ़ता है| इसका छिलका दस्त, ऐंठन, संग्रहणी, कांच निकलना, बवासीर आदि रोगों को दूर करता है|

अनिद्रा एक सामान्य रोग है| यह चिंता, शोक, विषाद, निराशा आदि के कारण उत्पन्न होता है| यदि नकारात्मक भावनाओं से स्वयं को दूर रखा जाए तो इस रोग से छुटकारा पाया जा सकता है|

अनानास का फल बहुत स्वादिष्ट होता है | इसके कच्चे फल का स्वाद खट्टा तथा पके फल का स्वाद मीठा होता है । इसके फल में थाइमिन,राइबोफ्लेविन,सुक्रोस,ग्लूकोस,कैफीक अम्ल,सिट्रिक अम्ल,कार्बोहाईड्रेट तथा प्रोटीन पाया जाता है| गर्मी के मौसम में जूस पीने के अपने फायदे हैं। अगर आप भी जूस पीना पसंद करते हैं, तो इस बार पाइनेपल यानि अनानास का जूस लीजिए। अनानास का जूस पीने के यह कीमती फायदे जानकर आप इसे पिए बगैर नहीं रह सकेंगे। 

अमरूद हमारे देश का एक प्रमुख फल है| इसके अंदर सौकड़ों की संख्या में छोटे-छोटे बीज होते हैं| अमरूद मीठा और स्वादिष्ट फल होने के साथ-साथ कई औषधीय गुणों से भरा हुआ है। सर्दियों में अमरूद खाने के फायदे ही फायदे हैं। दंत रोगों के लिए अमरूद रामबाण साबित होता है। अमरूद के पत्तों को चबाने से दांतों के कीड़ा और दांतों से सम्बंधित रोग भी दूर हो जाते हैं। इसके अलावा भी ये कई औषधीय गुणो के लिए जाना जाता है।

पेट में अम्ल का बढ़ जाना कोई रोग नहीं माना जाता, लेकिन इसके परिणाम अवश्य भयानक सिद्ध होते हैं| इसकी वजह से बहुत-सी व्याधियां उत्पन्न हो जाती हैं|

औषधि के रूप में इसका भी प्रयोग किया जाता है| खांसी व हृदय रोग में यह लाभ पहुंचाती है| स्वभाव से यह भारी है, किन्तु सेवन करने पर स्वादिष्ट लगती है| अरबी की सब्जी बनाकर खाएं| इसकी सब्जी में गर्म मसाला, दालचीनी और लौंग डालें| जिनके गैस बनती हो, गठिया और खांसी हो, उनके लिए अरबी हानिकारक है|

यह वायु को बढ़ाने के कारण शरीर में रूक्षता पैदा करती हैं, पचने में हल्की होती है| इसके सेवन से मल बंधकर आता है, तथा पित्त-दोषों में भी लाभकारी है| रक्त-विकार में भी उपयोगी है|

अल्सर का शाब्दिक अर्थ है – घाव| यह शरीर के भीतर कहीं भी हो सकता है; जैसे – मुंह, आमाशय, आंतों आदि में| परन्तु अल्सर शब्द का प्रयोग प्राय: आंतों में घाव या फोड़े के लिए किया जाता है| यह एक घातक रोग है, लेकिन उचित आहार से अल्सर एक-दो सप्ताह में ठीक हो सकता है|

आक को मदार और अकौआ भी कहते हैं| इसका पेड़ छोटा और छ्त्तेदार होता है| इसके पत्ते बरगद के पत्तों की तरह होते हैं| इसका फूल सफेद, छोटा और छ्त्तेदार होता है| इसके फलों में कपास होती है|

किन्हीं कारणवश जब आंखों में कोई पदार्थ पड़ जाता है तो वे लाल हो जाती है| ऐसे में महसूस होता है, मानो आंख जल रही हो| आंखें लाल हो जाने पर गरम पदार्थों एवं मिर्च-मसालों का प्रयोग बंद कर देना चाहिए|

प्राय: छोटे-बड़े लोगों की आंखें किन्हीं कारणवश दुःखने लगती हैं| यदि शुरुआती दौर में ही इन पर ध्यान दिया जाए तो घातक परिणाम नहीं होता| इसके अलावा नियमित रूप से आंखों को दिन में कई बार धोने अथवा उन पर पानी के छींटे मारने चाहिए| इससे भी आंखों का रोग होने की संभावना नहीं रहती|

आंखों में विविध रोगों को दूर करने के लिए निम्नांकित नुस्खे बहुत लाभकारी सिद्ध हुए हैं|

आम फलों का राजा यूं ही नहीं कहलाता है। ये भारत का राष्ट्रीय फल है। आम के जितने भी फायदे गिनाए जाए कम है। यहां पर आम के कुछ महत्वपूर्ण लाभ के बारे में बताने जा रहे हैं।

आलुओं को सभी सब्जियों में अग्रणी माना जाता है| यदि किसी भी पकवान में आलू न हो तो सब कुछ फीका-फीका ही प्रतीत होता है| आलू का प्रयोग बारहों महीने और तीसों दिन किया जाता है| सब्जी के रूप में, चाट-पकौड़ी के रूप में या फिर चिप्स और पापड़ के रूप में; सभी में आलू प्रयुक्त होता है| विश्व भर में इसका प्रयोग किया जाता है, किन्तु यह वायु को बढ़ाने वाला है| इससे मांस व चर्बी की वृद्धि होती है|

स्वाद में खट्टा-मीठा आलूबुखारा गर्मियों में आने वाला मौसमी फल है. इसमें बॉडी के लिए जरूरी पोषक तत्व जैसे मिनरल्स और विटामिन भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं| इसके फल को भी अलूचा या प्लम कहते हैं। फल, लीची के बराबर या कुछ बड़ा होता है और छिलका नरम तथा साधरणत: गाढ़े बैंगनी रंग का होता है। गूदा पीला और खटमिट्ठे स्वाद का होता है।

आंवले को धात्रीफल भी कहते हैं| यह बहुत ही पौष्टिक और गुणकारी होता है| इसमें हर्र के सारे गुण मौजूद रहते हैं| इसके स्वाद में पांचों रसों का समावेश होता है| ये रस वात, पित्त और कफ को शान्त करने वाले होते हैं|

आवाज बैठ जाने के कारण व्यक्ति को बहुत परेशानी का सामना करना पड़ता है क्योंकि गले से शब्द नहीं निकल पाते| व्यक्ति समझता है कि उसका गला रुंध रहा है|

इसकी आम्ल प्रकृति है| आयुर्वेदिक औषधि के अनुपात में इमली को सर्वत: प्रथम वर्जित किया गया है| सामान्य स्थिति में यदि इसका प्रयोग कर लिया जाता है, तो यह अनेक उपद्रव उत्पन्न कर, व्यक्ति को प्राण-हरण की चरमसीमा तक पहुंचा देती है| यह अत्यंत खट्टी, भारी, गर्म, रुचिकारक, मलावरोधक, अग्निदीपक, वातनाशक, रक्तदूषक, कफ-वित्तकारक एवं आंत्र-संकोचक है| पकी हुई इमली मधुर, शीतल, दाह, व्रण, अर्श (बवासीर), लू, कृमि एवं अतिसार नाशक होती है| इसे निम्न रोगों में प्रयोग किया जाता है –

ईसबगोल की भूसी में थोड़ा-सा लुवाब होता है| यह पेट के सभी रोगों में काम आती है| इसका लुवाब अंतड़ियों में पहुंचकर उनकी क्रिया को तीव्र कर देता है|

उरद या उड़द एक दलहन होता है। उड़द की दाल एक अत्यंत बलवर्द्धक, पौष्टिक व सभी दालों में पोषक होती है। जिन लोगों की पाचन शक्ति प्रबल होती है, वे यदि इसका सेवन करें। उड़द का प्रयोग तमाम व्‍यंजन बनाने के काम आता है जैसे, डोसा, पापड़, वड़ा, लड्डू और दाल आदि।

यह सब तेलों में सबसे अधिक उपयोगी है| कब्ज को दूर करने में इसका प्रयोग किया जाता है| वायु, जोड़ों का दर्द, हृदय रोग, आमाशय के विकार, सूजन तथा रक्त विकार में भी यह प्रयुक्त होता है| यह केस्टरऑयल के नाम से भी जाना जाता है|

कच्ची ककड़ी में आयोडीन पाया जाता है। ककड़ी बेल पर लगने वाला फल है। गर्मी में पैदा होने वाली ककड़ी स्वास्थ्यवर्ध्दक तथा वर्षा व शरद ऋतु की ककड़ी रोगकारक मानी जाती है। 

यह गोंद का ही प्रतिरूप है| प्रत्येक मौसम में इसका प्रयोग किया जा सकता है| किन्तु ग्रीष्मकाल में विशेष लाभप्रद है| प्यास आदि को दूर करने में यह अद्वितीय है| स्त्री-पुरुषों के गुप्त रोगों में भी विशेष लाभकारी है|

कपूर उड़नशील वानस्पतिक द्रव्य है। यह सफेद रंग का मोम की तरह का पदार्थ है। कपूर का इस्तेमाल खास तौर से हवन पूजन और कई ब्यूटी उत्पादों में खुशबू के साथ ही ठंडाई के लिए किया जाता है। कपूर को संस्कृत में कर्पूर, फारसी में काफ़ूर और अंग्रेजी में कैंफ़र कहते हैं।

कफ-पित्त ज्वर भी धीरे-धीरे चढ़ता है और अंतत: उग्न रूप धारण कर लेता है| यह ज्वर दिन के तीसरे प्रहर तथा रात के अंतिम प्रहर में हल्का पड़ जाता है| इसमें रोगी की नाड़ी धीमी चलती है| मल मटमैले रंग का आता है|

कब्ज छोटे-बड़े सभी लोगों को हो जाता है| इसमें खाया हुआ भोजन शौच के साथ बाहर नहीं निकलता| वह आंतों में सूखने लगता है| मतलब यह कि आंतों में शुष्कता बढ़ने के कारण वायु मल को नीचे की तरफ सरकाने में असमर्थ हो जाती है| यही कब्ज की व्याधि कहलाती है|

नुस्खा 
सोंठ, सौंफ, सनाय, छोटी हरड़ और सेंधा नमक – सभी चीजें समान मात्रा में कूट-पीसकर महीन चूर्ण बना लें|

कमर का दर्द प्राय: गलत रहन-सहन से होता है| कमर को असंतुलित अवस्था में रखना ही इस दर्द का कारण बनता है| अत: इस रोग की दवा के साथ-साथ कमर को संतुलित एवं सीधी दिशा में रखना हितकर होता है|

करेले के बारे में एक कहावत है, ‘करेला, वो भी नीम चढ़ा|’ अर्थात् करेला अत्यंत कड़वा होता है| इसकी तासीर ठंडी होती है, तथा पचने में यह हल्का होता है| यह आयु को बढ़ाता है और पाचन-क्रिया प्रदीप्त करके शौच साफ लाता है|

एक विलायती करौंदा भी होता है, जो भारतीय बगीचों में पाया जाता है। इसका फल थोड़ा बड़ा होता है और खाने में खट्टे स्वाद वाला ये फल कई तरह के रोगों से लड़ने की भी शक्ति रखता है। इसकी ऊंचाई 6 से 7 फीट तक होती है। पत्तों के पास कांटे होते है जो मजबूत होते है। 

पौष्टिक एवं विटामिन प्रधान खाद्य-पदार्थों में काजू सर्वश्रेष्ठ है| यह स्निग्ध है, मधुर है, ग्राही है व धातु परिवर्तक है, मूत्रल है; हृदय एवं नाड़ी-दौर्बल्यनाशक है तथा स्मृति को उजागर करता है| प्रात: खाली पेट काजू खाकर, ऊपर से शहद का प्रयोग अतिशीघ्र स्मृति-विकास करता है| इसके प्रयोग से छूत का रोग सहज ही दूर हो जाता है| इसे मुनक्का के साथ खाने से कोष्ठबद्धता दूर होती है|

कान में दर्द प्राय: बच्चों तथा प्रौढ़ों को हो जाता है| इस रोग में रोगी को बहुत तकलीफ होती है| कान में सूई छेदने की तरह रह-रहकर पीड़ा होती है|

कालीमिर्च चरपरी, तीक्ष्ण, रूखी, कुछ गरम, पाक में मधुर, हल्की, शोषक और अग्निवर्द्धक होती है| यह कफ-वात नाशक लेकिन पित्तजनक है| इसके सेवन से श्वास, पेट दर्द, कृमि, हृदय रोग, प्रमेह, बवासीर तथा सिर के रोग नष्ट होते हैं|

कीड़े-मकोड़े के काटने पर दंशित स्थान को छूना अथवा नाखून आदि से खुजलाना नहीं चाहिए| इससे विषक्रमण बढ़ जाने की संभावना होती है| इसका उपचार यथाशीघ्र करने का प्रयास करना चाहिए|

केला बहुत पौष्टिक फल है, लेकिन इसे खाली पेट नहीं खाना चाहिए| क्योंकि यह मल को बांध देता है और कब्ज की शिकायत हो जाती है| इसलिए केला सदैव भोजन के बाद कम से कम तीन की संख्या में खाना चाहिए|

यह गोल आकार का और थोड़े कसैले स्वाद का फल है| इसका छिलका तरबूज के छिलके की भांति थोड़ा सख्त होता है, तथा भीतर खरबूजे की भांति गूदा भरा होता है|

खाने पीने से होने वाला पेट दर्द, अफीम खाने से हुई तेज अपच, भोजन न पचना, पेट-दर्द होना, ऐसी स्थिति में कॉफी पीने से स्फूर्ति आती है| अनिद्रा से उत्पन्न थकान भी कॉफी पीने से दूर होती है| कॉफी पीने से मस्ती प्रतीत होती है|

खजूर को भी शीतकालीन फल ही माना गया है| यह गहरे लाल रंग का गूदेदार होता है| इसके अंदर से गिरी निकलती है| यह अत्यंत तृप्तिदायक, शीतल, मीठा और भारी होता है| इसकी तासीर ठंडी होती है, इसलिए पित्त के अनेक रोगों में यह लाभदायक सिद्ध होता हैं| यह शक्तिवर्धक और वीर्यवर्धक होता है तथा हृदय के लिए परम हितकारी है|

ख़रबूज़ा एक फल है। यह पकने पर हरे से पीले रंग के हो जाते है, हलांकि यह कई रंगों मे उपलब्ध है। मूल रूप से इसके फल लम्बी लताओं में लगते हैं। गर्मियों के मौसम में शरीर को ठंड़ा रखना बहुत ही जरूरी हो जाता है। हमारा शरीर ठंड़ा रहे इसलिए हम तरह-तरह के तरीकों को अपनाते हैं। खरबूजे की कई किस्में बहुत स्वादिष्ट और पौष्टिक होती है। 

खस या खसखस एक सुगंधित पौधा है। खसखस का इस्तेमाल सब्जी की ग्रेवी और सर्दी के दिनों में स्वादिष्ट हलवा बनाने के लिए किया जाता है। आइए जानें खसखस के स्वास्थ्य लाभ में से कुछ लाभों के बारे में|

खांसी अपने आप में कोई रोग नहीं नहीं वरन् यह दूसरे रोगों का लक्षण मात्र है| खांसी पांच प्रकार की होती है – तीन प्रकार की खांसी वात, पित्त और कफ के बिगड़ने से, चौथी कीड़ों में उत्पन्न होने से और पांचवीं टी.बी. रोग से|

खिरनी स्वाद में मीठी होती है, किन्तु इसकी तासीर ठंडी होती है| यह अत्यंत वीर्यवर्धक, शक्तिवर्धक, चिकनी, शीतल और भारी होती है, तथा प्यास, मूर्च्छा, मद, तीनो दोषों तथा रक्त-पित्त नाशक होती है|

सलाद के रूप में सम्पूर्ण विश्व में खीरा का विशेष महत्त्व है। खीरा को सलाद के अतिरिक्त उपवास के समय फलाहार के रूप में प्रयोग किया जाता है। शरीर की भीतरी शुद्धि हो या बाहरी ठंडक, खीरा हर तरह से लाजवाब होता है। सलाद के रूप में सम्पूर्ण विश्व में खीरा का विशेष महत्त्व है। खीरा को सलाद के अतिरिक्त उपवास के समय फलाहार के रूप में प्रयोग किया जाता है।

खून की खराबी के कारण खुजली हो जाती है| यह रोग अधिक खतरनाक नहीं है| लेकिन यदि असावधानी बरती जाती है तो यह रोग जटिल बन जाता है| इसलिए रोगी को खाने-पीने के मामले में विशेष सावधानी बरतनी चाहिए|

खून की खराबी अर्थात् रक्त विकार एक घातक रोग है| यदि समय रहते इसका उपचार न किया जाए तो कष्टदायी चर्म रोग घेर लेते हैं| इनसे व्यक्ति के मन में हीन भावना उत्पन्न हो जाती है|

गठिया एक विचित्र और कष्टप्रद रोग है| यह अधिकतर प्रौढ़ावस्था और बुढ़ापे में ही होती है| परन्तु कभी-कभी छोटी उम्र में भी यह बहुत से मनुष्यों को हो जाती है|

गरदन का दर्द लोगों को प्राय: हो जाता है| ऐसे में गरदन को इधर-उधर घुमाने में काफी दर्द होता है| कभी-कभी लापरवाही के कारण गरदन में सूजन भी आ जाती है| गरदन में दर्द और सूजन होने पर तुरंत उपचार करना चाहिए तथा किसी योग्य वैद्य या चिकित्सक से सलाह लेनी चाहिए|

पुरुष द्वारा समागम के पश्चात् स्त्री को गर्भ न ठहरना बांझपन कहलाता है| वस्तुत: स्त्री पूर्णता तभी प्राप्त करती है, जब वह मां बनती है| जो स्त्री विवाहोपरांत मातृत्व-सुख से वंचित रहती है, वह समाज में तिरस्कृत नजरों से देखी जाती है| परंतु ऐसा नहीं है की वह मां न बन सके| यदि उचित उपचार किया जाए तो बांझ स्त्री भी मां बन सकती है|

गले में सूजन कोई बीमारी नहीं है| लेकिन जब किन्हीं दूसरी व्याधियों के कारण गला सूज जाता है या लाल पड़ जाता है तो इसे रोग की श्रेणी में माना जाता है|

ग्वार, लेग्युमिनेसी कुल की, खरीफ ऋतु में उगाई जाने वाली एकवर्षीय फसल है। पशुओं को ग्वार खिलाने से उनमें ताकत आती है तथा दूधारू पशुओं कि दूध देने की क्षमता में बढोतरी होती है। ग्वार फली से स्वादिष्ट तरकारी बनाई जाती है। ग्वार फली को आलू के साथ प्याज में छोंक लगाकर खाने पर यह बहुत स्वाद लगती है तथा अन्य सब्जियों के साथ मिलाकर भी बनाया जाता है जैसे दाल में, सूप बनाने में पुलाव इत्यादि में।

गाजर सारे भारत में पैदा होती है| यह खाद्य तथा औषधीय गुणों की दृष्टि से बहुत उपयोगी है| कच्ची खाने से लेकर साग-सब्जी, अचार, मुरब्बा, हलवा, औषधि आदि बहुत से रूपों में गाजर का उपयोग होता है|

यह सर्व गुण संपन्न है| पुराना गुड़ पाचक होता है| स्वास्थ्यवर्धक है; भूख को खोलने वाला है| वायु नाशक, पित्त, वीर्यवर्धक एवं रक्त शोधक है| सोंठ के साथ गुड़ वायु-संबधी समग्र विकारों को अतिशीघ्र दूर करता है| हृदय की दुर्बलता के लिए यह एक रामबाण औषधि है|

पेशाब के साथ निकलने वाले भिन्न-भिन्न प्रकार के क्षारीय तत्त्व जब किन्हीं कारणवश नहीं निकल पाते और मूत्राशय, गुर्दे अथवा मूत्र नलिका में एकत्र होकर कंकड़ का रूप ले लेते हैं, तो इसे पथरी कहा जाता है|

पेट की खराबी, प्रदूषित भोजन तथा अम्लीय पदार्थों का अधिक सेवन नहीं करना चाहिए| इससे गुर्दों से शोथ हो जाता है| इसी बात को चिकित्सक यूं कहते हैं कि गुर्दे में जब क्षारीय तत्त्व बढ़ जाते हैं तो उसमें सूजन आ जाती है| फलस्वरूप वहां दर्द होने लगता है|

इस रोग में आंखों की किसी एक पलक पर या कोने में एक फुन्सी निकल आती है| यह बंद गांठ-सी होती है| इसे छूने पर कड़ापन मालूम पड़ता है|

गूलर को उदुम्बर, उम्बर, अंजेर आदम और किमुटी भी कहते हैं| गूलर की विशेषता यह है कि इसके फूल दिखाई नहीं देते| इसकी शाखाओं पर केवल फल दिखाई देते हैं|

यह हमारे दैनिक आहार के प्रयोग में आने वाला सबसे पहला और अत्यंत आवश्यक धान्य है| इसमें शरीर का शोधन करने और उसे स्वस्थ रखने की अद्भुत शक्ति है| गेहूं के छोटे-छोटे पौधों में एक प्रकार का रस होता है, जो असाध्य और कैंसर जैसे भयंकर रोगों को भी दूर कर सकता है| भगंदर, बवासीर, मधुमेह, गठियावाय, पीलिया, ज्वर, दमा और खांसी जैसे रोग भी इस रस से दूर किए जा सकते हैं|

घृत कुमारी या अलो वेरा/एलोवेरा, जिसे क्वारगंदल, या ग्वारपाठा के नाम से भी जाना जाता है, एक औषधीय पौधे के रूप में विख्यात है। ग्वारपाठा पेट की बीमारियों के लिये और जोड़ों के दर्द के लिये बहुत फायदेमन्द है| एलोवेरा की लगभग 200 जातियां होती हैं। इनमें से सिर्फ पहली 5 ही मानव शरीर के लिए उपयोगी होती हैं। तो आज इसके गुणों के बारे में बात करते हैं।

ग्वारपाठे का ‘गूदा’ दवा बनाने के काम आता है| यह सफेद होता है| इसके गूदे में सचमुच हजारों औषधीय गुण भरे हैं| यह कफ-पित्त विकार को दूर करता है| भोजन पचाकर भूख बढ़ाता है| इसका अर्क कान में डालने से कान का दर्द दूर हो जाता है| इसके औषधीय गुणों की जानकारी निम्नवत् है –

गरमी के दिनों में पसीना मरने या त्वचा में सूख जाने के कारण शरीर पर छोटे-छोटे दाने निकल आते हैं| इन्हीं को घमौरियां या अंधौरी कहते हैं| यह धूप में अधिक देर तक काम करने के कारण निकलती हैं|

स्त्री या पुरुष घुटनों पर हाथ रखकर उठता है तो समझ लेना चाहिए कि वह वृद्ध हो चला है और उसके घुटनों में दर्द बनने लगा है| ऐसी अवस्था में घुटनों के दर्द से बचने के लिए उचित उपचार तथा आहार-विहार का पालन करना चाहिए|

चक्कर आने को हम रोग मान बैठे हैं, किन्तु यह रोग न होकर मस्तिष्क की व्याधि है| जब कभी दिमाग में खून की मात्रा पूर्ण रूप से नहीं पहुंचती तो दिमाग की नसें शिथिल पड़ जाती हैं| यही शिथिलता चक्कर लाती है|

मूंगफली और चना का एक योग है| यह देश भर में सर्वत्र खाने के काम में लिया जाता है| बच्चों का यह मुख्य खाद्य है| यह प्यास को बुझाता है| सौन्दर्यवर्धक व बलवर्धक है| रक्त को भी यह साफ करता है, तथा जुकाम को दूर कर गले को सुरीला बनाता है| पेट के कृमियों को नष्ट करता है| यह एक ऐसा अनाज है जो अकेला ही भोजन के सारे खाद्य पदार्थों की पूर्ति कर देता है| विभिन्न प्रकार के रोगों में भी यह लाभकारी है|

चमेली का फूल झाड़ी या बेल जाति से संबंधित है, इसकी लगभग 200 प्रजाति पाई जती हैं। इसके फूलों से तेल और इत्र का निर्माण भी किया जाता है। चमेली के पत्ते हरे और फूल सफेद रंग के होते हैं, परंतु कहीं-कहीं पीले रंग के फूलों वाली चमेली की बेलें भी पाई जाती हैं। 

संसार का शायद ही कोई ऐसा प्राणी रहा हो जिसने कभी चाय न पी हो| यानी चाय का स्वाद न चखा हो| अमीर-गरीब, मालिक-मजदूर सभी चाय का प्रयोग करते हैं| चाय ज्यों ही गले से उतर कर हृदय के साथ संपर्क स्थापित करती है, उसी क्षण शरीर में स्फूर्ति का संचार हो उठता है, तथा स्नायु में एक प्रकार की चेतना-शक्ति व्याप्त हो जाती है| चाय के साथ, रासायनिक विश्लेषण का वर्णन निम्न है – 

धान के बीज को चावल कहते हैं। चावल बहुत फायदेमंद चीज है बशर्ते की आप उसे अगर खेतों से सीधे खरीद लें मतलब राईस मिल में जाने से पहले ही खरीद ले क्योंकि राईस मिल में चावल को पॉलिश करने के चक्कर में चावल के बहुत से गुणों का नाश हो जाता है !

नुस्खा – पीपरामूल, जवाखार, सज्जीखार, चित्रकमूल, नमक, त्रिकुट, भुनी हींग, अजमोद तथा चक-सभी का चूर्ण 20-20 ग्राम लेकर अनार के रस में घोटकर मटर के दाने के बराबर गोलियां बना लें|

यह मधुर, स्निग्ध, शीतल, शुक्रजनक एवं वीर्यवर्धक है| रक्त-पित्त एवं पित्त-विकार में अत्यंत लाभकारी है| यह हृदय को बल प्रदान करती है| सूखे मेवों में इसका स्थान भी बहुत महत्वपूर्ण है|

यह फल कफ को बढ़ाता है, साथ ही यह शरीर में पित्त की अधिकता या ऊष्मा को कम करने में भी सहायक होता है| सुपाच्य है और रुग्णावस्था में पथ्य के रूप में भी इसका सेवन किया जा सकता है| इसे इसके नरम छिलके के साथ ही प्रयोग किया जाता है, छीलकर भी खाया जाता है| इसका स्वाद बहुत ही मिठास से भरा होता है| यह अत्यन्त शक्तिवर्धक एवं मांस और चर्बीवर्धक है|

यह मस्तिष्क को ताजगी प्रदान करता है, रक्त बढ़ाता है, जोड़ों के दर्द को दूर करता है तथा स्त्रियों के स्तनों में दूध की मात्रा को बढ़ाता है| चुकंदर बलगम निकालकर श्वांस-नली को साफ रखता है|

सुश्रुत, वागभट्ट आदि प्राचीन आचार्यों ने औषधि विज्ञान में चूने का महत्वपूर्ण स्थान रखा है| शरीर की हड्डियों को मजबूत करने के लिए कैलशियम नामक तत्त्व को बहुत उपयोगी माना जाता है और वह कैलशियम चूने में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है| चूना जंतु-नाशक है, चूना में क्षार अधिक मात्रा में पाया जाता है| चूने में पाया जाने वाला कैलशियम सर्व प्रकार के प्रदाहिक सूजन में लाभ करता है| इसे चूने के पानी के रूप में प्रयोग किया जाता है| चूने के पानी के रूप में प्रयोग किया जाता है| चूने का पानी आम्ल-नाशक होता है|

चोट लगने और खून बहने पर इस बात की तत्काल व्यवस्था करनी चाहिए कि खून अधिक मात्रा में न बहने पाए| इसके लिए तुरंत खून रोकने का उपाय करना चाहिए| साथ ही विषक्रमण न होने पाए, इसका भी ध्यान रखना चाहिए|

यह शीतल प्रकृति की पत्तेदार होती है| पाचन-क्रिया को मजबूत करने व रुचि बढ़ाने में यह सहायता प्रदान करती है| यह शरीर के रोगात्मक विषों को नष्ट करने में समक्ष है| मुख्यत: इसको शाक के रूप में प्रयोग किया जाता है| पेट के रोग तथा गंजेपन की शिकायत भी इससे दूर हो जाती है| यह गठिया, ब्लडप्रेशर और हृदय रोगियों को भी लाभ पहुंचती है|

स्वास्थ्य के लिए इसे अमृत तुल्य माना गया है| जो लोग नियमित रूप से भोजनोपरान्त छाछ लेते हैं, वो कष्ट के चक्रव्यूह से सदैव मुक्त रहते हैं| आयुर्वेदिक चिकित्सा में कहा गया है कि भोजन के अन्त में छाछ, रात्रि के अन्त में जल और रात्रि के मध्य में दूध पीने वाला व्यक्ति सदा स्वस्थ रहता है| इसमें एक अलौकिक शक्ति विद्यमान है| कहा गया है कि धरती पर मनुष्य के लिए छाछ यानी मट्ठा एक अमृत समान है|

यह अत्यन्त तृप्तिदायक, शीतल एवं शहद जितना मीठा होता है| यह बहुत अधिक शक्तिवर्धक और वीर्यवर्धक होता है तथा हृदय के लिए परम हितकारी है| इसका सेवन क्षयरोग में लाभकारी है| रक्तवर्धक होने के साथ-साथ इसमें सभी पौष्टिक तत्त्व विद्यमान रहते हैं| जो शरीर के विकास के लिए परमापयोगी हैं| ये शुक्राणु एवं डिम्बवर्धक हैं तथा मांसपेशियों की शिथिलता को दूर करने में उपयोगी हैं| कामशक्ति व यौनशक्ति को बढ़ाने में अद्वितीय हैं| इनके नित्य सेवन से शरीर हृष्ट-पुष्ट बनता है| चार से अधिक छुआरे एक बार में नहीं खाने चाहिए, वरना ये गर्मी करते हैं| दूध में भिगोकर छुआरा खाने से इसके पौष्टिक गुण बढ़ जाते हैं|

इनका रस और विपाक कटु होता है| शीतवीर्य, मधुर, रुचिकर एवं सुगंधित है| इसी कारण यह मन को प्रफुल्लित कर देती है तथा वायु को विलीन कर, छाती, कंठ एवं आमाशय के द्रव को सुखाती है| मस्तिष्क, हृदय एवं उदर को बलशाली बनाती है| मुंह की दुर्गन्ध, मूत्र की रुकावट व पेट के अफारे को दूर करती है| आमाशय के दोषों को दूर करती है और डकारें लाकर भूख पैदा करती है| प्राय: सभी औषधि निर्माण कार्यों में यह प्रभावशाली है|

पेट में दर्द होने पर बच्चा अत्यंत व्याकुल हो जाता है| वह बार-बार रोता और चिल्लाता है| कभी-कभी कुछ बच्चों के पेट गैस से फूल जाते हैं|

आग या किसी गरम वस्तु से जल जाने पर उस स्थान की त्वचा नष्ट हो जाती है, जिससे विषक्रमण (सेप्टिक) होने का भय रहता है| इसलिए रोगी को बाहर की दूषित वायु से जले हुए भाग की सुरक्षाकरना भी बहुत जरूरी है|

जामुन कई प्रकार के होते हैं| लेकिन लोगों को फरैंदा और मीठा जामुन अधिक पसंद आता है| जंगली जामुन खट्टा और छोटा होता है| जामुन का फल भारी, कसैला, मलरोधक, बादी, रूखा तथा कफ-पित्त नाशक होता है|

जायफल को औषधियों की पिटारी कहा जाता है| इसमें अफीम की तरह तत्त्व होता है| इसका स्वाद कसैला होता है| इसको गुड़ के साथ खाने पर ऐंठन, मरोड़, पेट दर्द आदि से छुटकारा मिलता है|

जिगर की सूजन प्राय: गलत खान-पान के कारण होती है| यह जिगर के कोशों में काफी कमी और निष्क्रियता आने से उत्पन्न हो जाती है| यदि इस रोग का शुरू में ही उपचार न कराया जाए तो शरीर में अनेक विकार उभर सकते हैं|

शरीर के सभी महत्त्वपूर्ण कार्यों में प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से जिगर की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है| भोजन के पाचन के बाद आहार रस सबसे पहले जिगर में पहुंचता है| वहां उसमें अनेक जैव तथा रासायनिक परिवर्तन होते हैं|

इसकी प्रकृति गर्म व शीतल है तथा इसका स्वाद कसैलापन लिए होता है| यह पाचाकाग्नि को प्रदीप्त करता है| शरीर के अनेक विकारों को दूर करने के लिए एक औषधि के रूप में भी इसका उपयोग किया जाता है|

जीरे के बिना मसालों का कोई महत्त्व नहीं है| जीरे की खुशबू और स्वाद दोनों मनभावन हैं| इस दृष्टि से जीरा पाचक, शीतल, मधुर, वात-पित्त नाशक, गरमी को शान्त करने वाला, दाह को मिटाने वाला तथा पुत्रदायक है|

जौ पृथ्वी पर सबसे प्राचीन काल से कृषि किये जाने वाले अनाजों में से एक है। जौ में विटामिन बी-कॉम्प्लेक्स, आयरन, कैल्शियम, मैग्नीशियम, मैगनीज, सेलेनियम, जिंक, कॉपर, प्रोटीन, अमीनो एसिड, डायट्री फाइबर्स और कई तरह के एंटी-ऑक्सीडेंट पाए जाते हैं। जौ घुलनशील और अघुलनशील फाइबर का स्रोत होता है। इस गुण के कारण आपको देर तक पेट भरा हुआ महसूस होता है। आज हम आपको इसके औषधीय प्रयोग बता रहे हैं।

ज्वार एक प्रमुख फसल है। ज्वार ठंडा होता है जिसके कारण हम इसे गर्मियों के दिनों में अधिक प्रयोग में लाते हैं और इससे हमारा शरीर स्वास्थ्य रहता है। ज्वार खाने के फायदे जानकर आप भी ज्वार के दानो को खाना पसंद करने लगेंगे. तो जानते हैं ज्वार खाने से सेहत को क्या लाभ होते हैं।

शरीर तथा चेहरे पर झुर्रियां वृद्धावस्था में ही आती हैं| लेकिन जब यह झुर्रियां यौवनावस्था में पड़ने लगती हैं तो किसी रोग विशेष के आगमन अथवा प्रभाव तथा दुष्कर्मों की ओर इंगित करती हैं|

टमाटर को जिस रूप में भी प्रयोग किया जाए, स्वादिष्ट ही लगता है| यह कच्चा रहने पर हरा और पका होने पर लाल सुर्ख हो जाता है| इसके उपयोग से पाचन-क्रिया प्रदीप्त हो जाती है| रक्त का निर्माण करने में तथा जिगर को मजबूत बनाने में यह हितकर है| शरीर के अनेक रोगों में इसका उपयोग किया जाता है|

गले के प्रवेश द्वार के दोनों ओर मांस की एक-एक गांठ होती है| यह बिलकुल लसीका ग्रंथि की तरह होती है| इसी को टांसिल कहते हैं| इस रोग के कारण खाने-पीने में बड़ी तकलीफ होती है| यहां तक की थूक को निगलने में भी कष्ट होता है|