मायावी जलाशय
द्रौपदी और चारों पांडव भाइयों की खुशी का ठिकाना न रहा, जब अर्जुन पांच वर्ष पश्चात उनसे आ मिले|
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युधिष्ठिर ने कहा, “बारह वर्ष शीघ्र ही समाप्त होने वाले हैं| स्मरण रहे, जिन लोगों ने हमें अब तक नहीं देखा और पहचाना है, उनका कोई महत्व नहीं| परन्तु तेरहवें वर्ष में सबको बहुत सतर्क रहना है जिससे हमें कोई पहचान न सके| पहचान लिए जाने पर पुनः बारह वर्ष का निर्वासन होगा| अतः हमें छिपकर रहने का कोई स्थान ढूंढ़ना पड़ेगा|”
भीम ने कहा, “हम राजा विराट के राज्य में चलते हैं| मै भोजन में विशेष रूचि रखता हूं इसलिए राजा के रसोईघर में मुख्य रसोइए के पद पर रहूँगा| मै अपना नाम वल्लव रखूँगा|”
अर्जुन बोले, “मैंने देवनागरी में संगीत और नृत्य की शिक्षा प्राप्त की है अतः मै दरबारी की नृत्यांगना को नृत्य की शिक्षा दूँगा| नारी की वेशभूषा धारण करके मै वृहन्नला के नाम से अपना परिचय दूँगा|”
नकुल ने कहा, “मै राजा के घोड़ो की देखभाल करूंगा, और अपना नाम ग्रंथिक रखूँगा|” सहदेव बोले, “मै राजा के मवेशियों की देखरेख करूँगा और तंत्रिपाल के नाम से जाना जाऊँगा|”
युधिष्ठिर ने कहा, “ठीक है| मै राजा के सलाहकर के रूप में रहूँगा| मै कह सकता हूँ कि मेरा नाम कंक है और मैं सम्राट युधिष्ठिर का मित्र था|”
“और द्रौपदी? हम द्रौपदी को कैसे छुपायेंगे?”
द्रौपदी ने साहस से, हँसते हुए कहा, “मैं सैरेन्ध्री के नाम से रानी सुदेष्णा की दासी के रूप में कार्य करुँगी| उनके केश सजाने-सँवारने के साथ वस्त्राभूषण की देख-रेख करूंगी| मै उनकी सहचरी दासी के रूप में रहूँगी|”
वे सब सोच ही रहे थे कि तभी एक सुन्दर हिरन झाडियों के ऊपर से छलाँग मारता हुआ सामने से निकला| उन्होंने बहुत दूर तक उसका पीछा किया, पर अकस्मात पेड़ो के बीच गायब हो गया| थके-हारे, प्यासे भाइयों ने झुँझलाते हुए युधिष्ठिर से कहा, “यदि हमने कौरवों का वध कर दिया होता तो आज हम इस दशा में नहीं होते|” युधिष्ठिर ने उनको शांत करने की कोशिश की और नकुल से कहा, “तुम वृक्ष पर चढ़ कर देखो, क्या पास में कोई जलाशय है?”
नकुल ने वृक्ष पर चढ़कर देखा और कहा, “हां, दूर एक जलाशय है| मैं वहां जाकर जल ले आता हूँ|” नकुल वृक्ष से उतरकर ताल की ओर गए| अंजलि में पानी भरने के लिए जैसे ही वे झुके, आकाश से किसी ने पुकारा, “रुक जाओ| मेरे प्रश्नों के उत्तर देने के बाद ही तुम जल ग्रहण कर सकते हो|”
उन्होंने चारों ओर देखा, वहां कोई नहीं था| नकुल ने प्यास बुझाने के लिए पानी पिया और पहले घूंट के साथ उनकी मृत्यु हो गई| पांडव भाई उसके आने की राह देखते रहे| नकुल के न लौटने पर युधिष्ठिर ने सहदेव, अर्जुन और भीम को बारी-बारी भेजा| उन सबके साथ ही वही घटना घटित हुई| जब भीम भी न लौटा तो युधिष्ठिर चिंतित होकर भाइयों की खोज में निकल पड़े|
जलाशय के पास उनके चारों भाई मृत पड़े थे| युधिष्ठिर की आँखों में अश्रु छलक पड़े और वे घुटनों के बल गिरकर शोक मनाने लगे| तभी प्यासे से व्याकुल हो, जल ग्रहण करने के लिए जैसे ही जलाशय की ओर झुके, एक ध्वनि ने उन्हें चौंका दिया, “सावधान युधिष्ठिर| इस जल को मत ग्रहण करो| यह जलाशय मेरा है| मैंने तुम्हारे भाइयों को भी सावधान किया था, परन्तु उन्होंने मेरी बात नहीं सुनी|”
युधिष्ठिर को आस-पास कोई दिखाई नहीं दिया, इसलिए उन्होंने पोछा, “तुम कौन हो?” आवाज आई, “मै यक्ष हूँ| मेरे प्रश्नों का उत्तर देने के पश्चात ही तुम जलाशय से जल ग्रहण कर सकते हो|”
युधिष्ठिर ने कहा, “आप प्रश्न करें, मैं उत्तर देने का प्रयत्न करूँगा|”
“सूर्य प्रतिदिन कैसे चमकता है?”
युधिष्ठिर ने उत्तर दिया, “ब्रह्मा की शक्ति के द्वारा|”
“कठिनाई या खतरे के समय मनुष्य की रक्षा कौन करता है?”
“धैर्य और साहस|”
आवाज ने पुनः पूछा, “क्या शिक्षा से मनुष्य विद्वान होता है?
“मात्र शिक्षा से मनुष्य विद्वान नहीं होता बल्कि महान लोगो से सम्पर्क रखकर और वार्तालाप करके ही वह विद्वान बनता है,” युधिष्ठिर ने कहा|
“यात्री का मित्र कौन है?”
“विद्या या विद्वता ही यात्री की मित्र है,” युधिष्ठिर बोले|
पुनः प्रश्न हुआ, “वह क्या चीज है जिसे त्यागने के पश्चात सभी उस मनुष्य से स्नेह करते हैं?”
युधिष्ठिर ने उत्तर दिया, “अहंकार या गर्व|”
“वह कौन-सी चीज है जिसे त्यागने के पश्चात मनुष्य सुख का अनुभव करता है?”
युधिष्ठिर ने उत्तर दिया, “क्रोध| यदि मनुष्य क्रोध त्याग दे तो वह कभी दुखी नहीं होता|”
ध्वनि ने प्रशन किया, “और वह क्या चीज है जिसे छोड़ देने पर मनुष्य धनी हो जाता है?”
“इच्छा| यदि मनुष्य इच्छाओं का परित्याग कर दे तो उसे किसी भी चीज की आवश्यकता नहीं होती|”
ध्वनि ने कहा, “राजन, आपने मेरे सब प्रश्नों के उत्तर दिया है इसलिए मै आपके एक भाई का जीवन दान दे सकता हूँ| कहिए आपको किसका जीवन चाहिए?”
युधिष्ठिर ने उत्तर दिया, “नकुल|”
“नकुल क्यों? क्या आप अर्जुन और भीम से स्नेह नहीं करते है?”
युधिष्ठिर ने स्पष्ट किया, “मै सबसे समान भाव से स्नेह करता हूँ| पर मेरे पिता राजा पांडु की दो रानियाँ थी, रानी कुंती और रानी माद्री| यदि रानी कुंती का एक पुत्र जीवित है तो रानी माद्री का भी एक पुत्र जीवित होना चाहिए|”
यक्ष ने कहा, :तुम निश्चय ही बहुत उदार हो| सदा वही सोचते हो जो सत्य, निष्पक्ष, निस्स्वार्थ और उचित है|” और एकाएक मृत्यु के देवता यम स्वयं उनके सम्मुख प्रकट होकर बोले, “मै वही मृग हूँ जिसका तुमने पीछा किया था| मै ही वह यक्ष हूं जिसने तुमसे प्रश्न किये थे| मै तुमसे बहुत प्रसन्न हूँ इसलिए तुम्हारे अनुजों को जीवनदान देता हूँ|”
इस तरह चारो भाइयों को जीवनदान मिला पांडव मत्स्य देश के लिए रवाना हो गए|