गद्दारी

गद्दारी

प्लासी के युद्ध-क्षेत्र में एक ओर बंगाल-बिहार के सूबेदार नवाब सिराजुद्दौला की फौज खड़ी थी| उसके मुकाबले अंग्रेजों के सेनाध्यक्ष क्लाइव की सेना थी|

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नवाब की फौज 25 हज़ार से कम नहीं थी और दूसरी ओर विदेशी सेना में केवल दस हज़ार सैनिक थे, जिनमें कुछ चुने हुए अंग्रेज अफ़सर और वेतनभोगी भारतीय फौजी थे|

दोनों सेनाओं के बीच फासला बहुत कम था, यानी दो फलांग से भी कम| दो-तीन घंटे की भीषण लड़ाई में ही सब खेल खत्म हो गया| मीर बदन और सिराजुद्दौला बहादुरी से लड़े; दोनों मारे गए| बहुत थोड़ी सेना कटी, पर बाकी फौज या तो भाग गई या मीर जाफ़र के नेतृत्व में युद्ध के मैदान में खड़ी-खड़ी तमाशा देखती रही| एक ओर 25 हज़ार फौज थी और दूसरी ओर केवल दस हज़ार| दोनों और सिपाहियों की गिनती मिलाकर भी केवल 35 हज़ार थी| क्लाइव जीत गया| कुल बंगाल-बिहार पर अंग्रेजों का कब्जा हो गया| 35 हज़ार में से कुछ हज़ार लोगों की गद्दारी से 35 करोड़ के भाग्य का निर्माण हो गया| अगर क्लाइव हार जाता तो अंग्रेजो के हाथ में हिंदुस्तान न जाता|

इस तरह सारे देश के भाग्य का निर्माण चंद घंटों में एक मैदान में चंद लोगों ने कर दिया और हमारे देश की जनता सोती रही| हमारे भारतीय फौजी विदेशियों के भाड़े के टट्टू बन गए| इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हर मनुष्य को अपने देश के प्रति वफादारी से रहना चाहिए|