देवव्रत

सात वर्ष बीत गए| एक दिन राजा शांतनु नदी के तट पर घुमने निकले| उन्होंने देखा एक सुन्दर बालक छोटे से धनुष से नदी में तीर चला रहा है| शांतनु सोचने लगे, “यह बालक जल से इस भांति खेल रहा है जैसे छोटे बच्चे अपनी माता के साथ खेलते हैं|” वे बालक को स्नेह से देख रहे थे, तभी गंगा उनके सामने प्रकट हुईं|

“देवव्रत” सुनने के लिए Play Button क्लिक करें | Listen Audio

उन्होंने कहा, “राजन, क्या आपको इस नन्हे बालक के विषय में कुछ याद है? यह वही बालक है जिसे मै अपने साथ ले गई थी| इसका नाम देवव्रत है| यह युद्ध कला में पारंगत है| इसने गुरु वशिष्ठ से संपूर्ण वेद और धर्म-ग्रंथो का ज्ञान प्राप्त किया है| ऋषि शुक्र से अन्य विद्याओं में निपुणता प्राप्त की है| शासन की बागडोर संभालना यह अच्छी तरह जानता है| यह बालक धनुर्विद्या में भी निपुण है उअर एक महान शूरवीर सिद्ध होगा|”

राजा शांतनु उस सुन्दर बालक की ओर देखते रहे| उन्होंने सोचा, “तभी मेरे मन में इस बालक के प्रति स्नेह उत्पन्न हुआ है| यही मेरा उत्तराधिकारी बनेगा| यही मेरी मृयु के पश्चात राज करेगा|”

गंगा ने बालक को आशीर्वाद दिया और देवव्रत को उसके पिता राजा शांतनु को सौंपकर चली गईं|

बालक देवव्रत राजा शांतनु की प्रजा में बहुत लोकप्रिय हुआ| वह सुन्दर, उदार, विचारशील और चतुर था| शांतनु की प्रजा सदैव यह कामना करती थी कि राजकुमार दीर्घायु हो|

कई वर्षों बाद एक दिन राजा शांतनु शिकार पर गए और वहां उन्होंने एक सुन्दर, सजीली युवती को देखा| वह युवती मछुआरों के राजा की बेटी थी| उसका नाम सत्यवती| शांतनु ने मन ही मन विचार किया, “मै इस सुन्दर कन्या से विवाह करना चाहूँगा|” उन्होंने मछुआरे से उसकी पुत्री का हाथ माँगा, परन्तु उसने राजा का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया| उसने उत्तर दिया, “सत्यवती की संतान आपके राज्य पर कभी शासन नहीं कर सकेगी, क्योंकि आपका पहले ही एक पुत्र है-देवव्रत|”

“यह सत्य है,” शांतनु बोले और बोझिल मन से वापस आ गए|

देवव्रत ने देखा कि उसके पिता बहुत दुखी रहते हैं| वे मन ही मन में प्रश्न करते रहे, “मेरे पिताश्री के दुखी और चिंताग्रस्त होने का क्या कारण हो सकता है?” जब उन्हें इसका कारण विदित हुआ तब वे सोचने लगे, “यदि मेरे पिताश्री सत्यवती से विवाह करना चाहते है तो अवश्य करें|” मै उनके पश्चात राजा नहीं बनूँगा| सत्यवती की संतान राज कर सकती है|” देवव्रत माछीराजा के पास गए और उन्हें अपने निश्चय के बारे में बताया कि वे राजगद्दी पर अपना स्वामित्व नहीं रखेंगे| माछीराज ने पुनः प्रश्न किया, “राजकुमार, मान लीजिए आपका पुत्र इससे सहमत नहीं हुआ और मेरी बेटी की होने वाली संतान (नाती) से हस्तिनापुर की राजगद्दी के लिए संघर्ष करने लगा तो?”

देवव्रत ने उत्तर दिया, “नहीं, यह कभी नहीं होगा?” माछीराज ने पुनः प्रश्न किया, “आप यह निश्चय से कैसे कह सकते हैं?” देवव्रत ने गर्जना करते कहा, “माछीराज मै प्रतिज्ञा करता हूं कि कभी विवाह नहीं करूंगा| मैं सभी के सम्मुख यह शपथ लेता हूँ कि जब तक मै जीवित रहूंगा, विवाह नहीं करूंगा|”

देवव्रत की शपथ की गर्जना के साथ ही स्वर्ग से देवता उन पर मन फूलों की वर्षा करने लगे| पृथ्वी और आकाश में मंद, मधुर स्वर उच्चरित होने लगा, “भीष्म, भीष्म|” और उस दिन से राजकुमार देवव्रत, भीष्म के नाम से विख्यात हुए| राजा शांतनु ने प्रसन्न होकर भीष्म से कहा, “भगवान तुम्हारी रक्षा करें| मै भी तुम्हें आशीर्वाद देता हूं कि तुम जब तक चाहो जीवित रह सकते हो, और जब तुम चाहोगे तभी मृत्यु को प्राप्त होगे|”

राजा शांतनु ने सत्यवती से विवाह किया और अनेक वर्षों तक शासन किया| सत्यवती के दो पुत्र हुए, चित्रांगद और विचित्रवीर्य राजा शांतनु की मृत्यु के बाद चित्रागंद भी शीघ्र स्वर्ग सिधार गया| भीष्म ने विचित्रवीर्य को राजगद्दी पर बिठाया और स्वयं प्रतिनिधि के रूप में देश का शासन चलाते रहे| विचित्रवीर्य जब बड़ा हुआ तब भीष्म ने उसके लिए एक योग्य वधू की खोज प्रारम्भ की|

इसी समय काशी नरेश ने अपनी पुत्रियों के स्वयंवर का आयोजन किया| उन दिनों स्वयंवर एक महत्वपूर्ण समाहरोह हुआ करता था| इसमें वे सभी राजा-महाराजा और राजकुमारी भाग लेते थे जो राजकुमारी से विवाह की इच्छा रखते थे| राजकुमारी स्वयं अपने पति का चयन कर, वरमाला डालती थी| कुछ अवसरों पर प्रतियोगिताओं का आयोजन भी किया जाता था और विजेता राजकुमारी को वधू के रूप में स्वीकार करता था|

काशी नरेश की कन्याएँ अंबा, अंबिका और अम्बालिका अतिशय सुन्दर थी| अनेक राजा, राजकुमार स्वयंवर में भाग लेकर राजकुमारियों को जीतने की कोशिश में आये थे| भीष्म बहुत शक्तिशाली थे, साथ ही वे धनुर्विद्या में निपुण थे| शीघ्र ही उन्होंने उपस्थित सभी राजकुमारों को परास्त कर दिया और तीनों राजकुमारियों को अपने साथ हस्तिनापुर ले आए| अंबा ने पहले ही मन में निश्चय कर लिया था कि वह शाल्व नामक राजा से विवाह करेगी, परन्तु भीष्म शाल्व को भी परास्त कर चुके थे|

हस्तिनापुर पहुँचने पर अंबा ने विचित्रवीर्य के साथ विवाह करने से इनकार कर दिया और कहा, “मै पहले से ही शाल्वराज को अपना मन अर्पित कर चुकी हूं|” अंबा की बात सुनकर भीष्म की ने उसे शाल्व के पास पहुंचा दिया| शाल्व अब अंबा से विवाह नहीं करना चाहते थे क्योंकि वे अन्य राजकुमारों के समक्ष भीष्म द्वारा परास्त हो चुके थे|  इस पर अंबा ने भीष्म से विवाह का प्रस्ताव रखा, परन्तु भीष्म कभी विवाह न करने की शपथ ले चुके थे| उन्हें अंबा की दशा पर दुःख हुआ पर वे अपनी प्रतिज्ञा नहीं तोड़ सकते थे| उन्होंने पुनः विचित्रवीर्य से विवाह का प्रस्ताव रखा परन्तु विचित्रवीर्य ने यह कहते हुए विवाह इनकार कर दिया कि जो राजकुमारी किसी और व्यक्ति से प्रेम करती है उससे वे कैसे विवाह कर सकते हैं|

इस समस्या को सुलझाने के लिए भीष्म स्वयं अंबा को लेकर शाल्वराज के पास गए और विवाह का प्रस्ताव रखा| पर शाल्व नहीं माने| राजकुमारी अंबा के मन को बहुत ठेस पहुंची| अत्यधिक अपमानित होकर उसने प्रतिज्ञा की कि भीष्म से अपने अपमान का बदला अवश्य लेगी| वह वन में चली गईं और एकांतवास में तपस्या करने लगी| उसकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसे दर्शन दिये और यह वरदान दिया कि अगले जन्म में वह भीष्म का वध करेगी|

मरणोपरांत अंबा ने पांचाल की राजकुमारी के रूप में जन्म लिया| उसने घोर तपस्या की जिसके फल स्वरूप उसे पुरुष का रूप मिला और वह योद्धा शिखंडी के नाम से जानी गई| कई वर्षों के बाद कुरुक्षेत्र के युद्ध में अर्जुन ने सारथी शिखंडी की ओट लेकर भीष्म से युद्ध किया और उन पर विजय प्राप्त की|

डाल ने प