Homeश्रीमद्भगवद्गीता के प्रमुख पात्र

श्रीमद्भगवद्गीता के प्रमुख पात्र (17)

अक्रूरजीका जन्म यदुवंशमें हुआ था| ये भगवान् श्रीकृष्णके परम भक्त थे| कुटुम्बके नाते ये वसुदेवजीके भाई लगते थे| इसलिये भगवान् श्रीकृष्ण इन्हें चाचा कहते थे| कंसके अत्याचारोंसे पीड़ित होकर बहुत-से यदुवंशी इधर-उधर भाग गये थे, किंतु कंस इनपर विशेष विश्वास करता था| इसलिये ये किसी प्रकार उसके दरबारमें पड़े हुए थे|

पूर्वकालमें वसुश्रेष्ठ द्रोण और उनकी पत्नी धरादेवीने भगवान् की प्रसन्नताके लिये कठोर आराधना की| ब्रह्माजीसे उन्हें भगवान् को पुत्ररूपमें प्राप्त करनेका वर मिला था| ब्रह्माजीके उसी वरदानसे द्रोण और धराका नन्द और यशोदाके रूपमें जन्म हुआ| दोनों पति-पत्नी हुए और भगवान् श्रीकृष्ण-बलरामने पुत्र बनकर उन्हें वात्सल्यसुखका सौभाग्य दिया| 

परम भाग्यवती गोपियोंके सौभाग्यका वर्णन करना मन, वाणी और बुद्धिकी सीमासे परे हैं| जिस प्रकार भगवान् का लीला-शरीर और उनकी लीलाएँ प्राकृत नहीं हैं, उसी प्रकार गोपीप्रेम भी प्रकृतिकी सीमासे परे है|

भगवान् की प्रेम-लीलाकी सहयोगिनी कुछ गोपिकाएँ तो नित्यसिद्धा हैं| बहुत-सी गोपिकाएँ अपनी महान् साधनाके फलस्वरूप भगवान् की वाञ्छित सेवा करनेके लिये गोपीरूपमें अवतीर्ण हुई थीं| उनकी लालसा इतनी अनन्य थी, उनकी लगन इतनी सच्ची थी कि प्रेमरसमय भगवान् ने उन्हें सुख पहुँचानेके लिये माखनचोरी, चीरहरण और रासलीलाकी दिव्य लीलाएँ कीं| इन गोपियोंमें कुछ पूर्वजन्मकी देवकन्याएँ थीं, कुछ श्रुतियाँ थीं और कुछ तपस्वी ऋषि थे| 

प्रद्युम्नजी कामदेवके अवतार माने जाते हैं| ये भगवान् श्रीकृष्णकी प्रमुख पत्नी रुक्मिणीजीके पुत्र थे| इनका जीवन-चरित्र अत्यन्त विचित्र है|

जब कंसने देवकी-वसुदेवके छ: पुत्रोंको मार डाला, तब देवकीके गर्भमें भगवान् बलराम पधारे| योगमायाने उन्हें आकर्षित करके नन्दबाबाके यहाँ निवास कर रही श्रीरोहिणीजीके गर्भमें पहुँचा दिया| इसीलिये उनका एक नाम संकर्षण पड़ा| बलवानोंमें श्रेष्ठ होनेके कारण उन्हें बलभद्र भी कहा जाता है|

भाद्रपद कृष्णपक्ष-अष्टमीकी अर्धरात्रिमें परम भागवत वसुदेव और माता देवकीके माध्यमसे कंसके कारागारमें चन्द्रोदयके साथ ही भगवान् श्रीकृष्णका प्राकट्य हुआ था|

प्राचीन कलमें तुग्ङभद्रा नदीके तटपर स्थित एक ग्राममें आत्मदेव नामक एक विद्वान् और धनवान् ब्राह्मण रहता था| उसकी स्त्रीका नाम धुन्धुली था|

मथुरामें एक सुखिया नामकी मालिन थी| वह व्रजमें नित्य फल बेचनेके लिये आया करती थी| भगवान् श्रीकृष्णकी मनोहर मूर्ति उनके मन-मन्दिरमें सदा बसी रहती थी और वह भावोंके पुष्प चढ़ाकर अहर्निश उनकी पूजा करती थी|

वृन्दावनके संनिकट कुछ याज्ञिक ब्राह्मण यज्ञ कर रहे थे| भगवान् श्रीकृष्णने अपने सखाओंको उनके पाससे भोजनके लिये कुछ अन्न माँगनेके लिये भेजा| याज्ञिकोंने उन्हें अन्न देना अस्वीकार कर दिया|

अभिमन्युकी पत्नी उत्तरा गर्भवती थी| उसके उदरमें पाण्डवोंका एकमात्र वंशधर पल रहा था| अश्वत्थामाने उस गर्भस्थ बालकका विनाश करनेके लिये ब्रह्मास्त्रका प्रयोग किया|

सूर्यवंशमें महाराज मान्धाता नामके एक परम प्रतापी राजा हुए थे| महराज मुचुकुन्द उन्हींके पुत्र थे| ये सम्पूर्ण पृथ्वीके एकच्छ्त्र सम्राट् थे| बल और पराक्रममें इनकी बराबरी करनेवाला उस समय संसारमें कोई नहीं था| देवता भी इनकी सहायता प्राप्त करनेके लिये लालायित रहा करते थे|

महाराज उग्रसेनके एक भाई थे, उनका नाम देवक था| देवकीजी उन्हींकी कन्या थीं| ये कंससे छोटी थीं, अत: वह इनसे अत्यधिक स्नेह करता था| देवकजीने इनका विवाह वसुदेवजीके साथ अत्यन्त धूम-धामसे सम्पन्न किया|

माता यशोदाके सौभाग्यकी तुलना किसीसे भी नहीं हो सकती; क्योंकि भगवान् श्रीकृष्णने स्वयं उनका पुत्र बनकर उनके पवित्र स्तनोंका पान किया तथा उन्हें वात्सल्यसुखका अनुपम सौभाग्य प्रदान किया|

व्रजभूमि प्रेमका दिव्य धाम है| वहाँ निवास करनेवाले सभी लोग अपने पूर्वजन्ममें अनेक प्रकारके जप-तप, भजन-ध्यान करके परमात्माके समीप रहनेका अधिकार प्राप्त कर चुके थे|

उद्धवजी वृष्णवंशियोंमें एक प्रधान पुरुष थे| ये साक्षात् बृहस्पतिजीके शिष्य और परम बुद्धिमान् थे| मथुरा आनेपर भगवान् श्रीकृष्णने इन्हें अपनी मन्त्री और अन्तरङ्ग सखा बना लिया|

भगवान् श्रीकृष्ण जब अवन्तीमें महर्षि सान्दीपनिके यहाँ शिक्षा प्राप्त करनेके लिये गये, तब सुदामाजी भी वहीं पढ़ते थे| वहाँ भगवान् श्रीकृष्णसे सुदामाजीकी गहरी मित्रता हो गयी|

परम भागवत वसुदेवजी यदुवंशके परम प्रतापी वीर शूरसेनके पुत्र थे| इनका विवाह देवककी सात कन्याओंसे हुआ था| रोहिणी भी इन्हींकी पत्नी थीं| देवकीजी देवककी सबसे छोटी कन्या थीं|