Homeभक्त तुलसीदास जी दोहावली

भक्त तुलसीदास जी दोहावली (10)

हम हमार आचार बड़ भूरि भार धरि सीस|
हठि सठ परबस परत जिमि कीर कोस कृमि कीस||

कहिबे कहं रसना रची सुनिबे कहं किये कान|
धरिबे कहं चित हित सहित परमारथहि सुजान||

करम खरी कर मोह थल अंक चराचर जाल|
हनत गुनत गनि गुनि हनत जगत ज्योतिषी काल||

राम बाम दिसि जानकी लखन दाहिनी ओर|
ध्यान सकल कल्यानमय सुरतरु तुलसी तोर||

बारक सुमिरत तोहि होहि तिन्हहि सम्मुख सुखद|
क्यों न संभारहि मोहि दया सिंधु दसरत्थ के||

प्रेम सरीर प्रपंच रुज उपजी अधिक उपाधि|
तुलसी भली सुबैदई बेगि बांधिऐ ब्याधि||

चित्रकूट सब दिन बसत प्रभु सिय लखन समेत|
राम नाम जप जापकहि तुलसी अभिमत देत|| 

रसना सांपिनी बदन बिल जे न जपहिं हरिनाम|
तुलसी प्रेम न राम सों ताहि बिधाता बाम|

ग्यान कहै अग्यान बिनु तम बिनु कहै प्रकास|
निरगुन कहै जो सुगन बिनु सो गुरु तुलसीदास||

तुलसी देखत अनुभवत सुनत न समुझत नीच|
चपरि चपेटे देत नित केस गहें कर मीच||