Homeभक्त व संतसंत तुलसीदास जी (Sant Tulsidas Ji)

संत तुलसीदास जी (Sant Tulsidas Ji)

भूमिका:

श्रीमद भागवत के बाद दूसरे स्थान पर भारतीय जन मानस को सबसे अधिक प्रभावित करने वाला ग्रंथ रामचरितमानस ही रहा है| ये दोनों ग्रंथ ही सर्वाधिक लोकप्रिय रहे हैं| 

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राम भक्ति शाखा के शिरोमणि तुलसी दास जी रामचरितमानस ग्रंथ के रचियता कहे जाते हैं| जिसके तन और मन में राम हों वही ऐसे भक्ति रस से परिपूर्ण ग्रंथ रचना कर सकता है| तुलसीदास जी ऐसे ही व्यक्ति थे| गुरु ने बचपन में ही उनका नाम “रामबोला” रख दिया था|

परिचय:

तुलसीदास जी का जन्म संवत 1554 श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी के दिन उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के राजपुर गाँव में हुआ| इनके पिता का नाम आत्माराम दुबे तथा माता का नाम तुलसी था| आप की शारीरिक देह पांच वर्ष के बालक जैसी थी| सामान्यता प्रत्येक बच्चा रोते हुए जन्म लेता है परन्तु इस विलक्षण बालक ने रोने की बजाए “राम” शब्द का उच्चारण किया था| कहा जाता है कि जन्म के समय इनके मुख में पूरे बत्तीस दांत थे|

इस विचित्र बालक की विलक्षणता को लेकर माता-पिता को अनिष्ट की आशंका हुई| उन्होंने तब अपने बालक को अपनी सेविका चुनिया को सोंप दिया| वह उसे अपने ससुराल ले गई| जब तुलसीदास जी साढे पांच वर्ष के हुए तो चुनिया इस संसार को छोड़ के चली गई| तब इस बालक पर अनंतानंद जी के शिष्य नरहरि आनन्द की दृष्टि पड़ी| वह तुलसीदास जी को अपने साथ अयोध्या ले गए| उन्होंने ही उनका नाम रामबोला रखा| तुलसीदास का विवाह रत्नावली जी से हुआ|

प्रभु भक्ति की प्रेरणा:

तुलसीदास जी अपनी पत्नी से बहुत प्रेम करते थे| वह अपनी पत्नी का विछोड़ा एक दिन के लिए भी सहन नहीं कर सकते थे| एक बार उनकी पत्नी उनको बताए बिना मायके आ गई| तुलसीदास जी उसी रात छिपकर ससुराल पहुँच गए| इससे उनकी पत्नी को बहुत शर्म महसूस हुई|

वह तुलसीदास जी से कहने लगी, “मेरा शरीर तो हाड-मास का पुतला है| जितना तुम इस शरीर से प्रेम करते हो यदि उससे आधा भी भगवान श्री राम जी से करोगे तो इस संसार के माया जाल से मुक्त हो जाओगे| तुम्हारा नाम अमर हो जाएगा|”

तुलसीदास के मन पर इस बात का गहरा प्रभाव पड़ा| वह उसी क्षण वहाँ से निकाल पड़े और अपना सब कुछ छोडकर भारत के तीर्थ स्थलों के दर्शन को चल दिए| कहते हैं कि हनुमान जी की कृपा से उन्हें भगवान राम जी के दर्शन हुए और उसके बाद उन्होंने अपना सारा जीवन राम जी की महिमा में लगा दिया|

साहित्यक देन:

तुलसीदास जी का काव्य लेखन केवल रामचरितमानस तक ही सीमित न रहा| इन्होने कवितावली, दोहावली, गीतावली व विनय पत्रिका जैसी रचनाएँ भी लिखी हैं| तुलसीदास जी ने बारह पुस्तकें लिखी जिसमे रामचरितमानस सबसे अधिक प्रसिद्ध है| इन्ही को बाल्मीकि का अवतार माना जाता है जिन्होंने संस्कृत में रामायण लिखी थी|

इनका लेखन अवधी व ब्रज भाषा दोनों में मिलता है| जन मानस को अधिक प्रभावित करने वाला ग्रंथ रामचरितमानस की रचना लोक भाषा में हुई| उस काल में प्रचलित दोहा, चौपाई, कविता व सवैया और पद लेखन की गीति शैली को भी अपनाया गया|

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