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उपदेश की महिमा – कबीर दास जी के दोहे अर्थ सहित

उपदेश की महिमा

उपदेश की महिमा: संत कबीर दास जी के दोहे व व्याख्या

1 दोहा (भक्त कबीर दास जी)
काल काल तत्काल है,
बुरा न करिये कोय |
अन्बोवे लुनता नहीं,
बोवे तुनता होय ||

व्याख्या: काल का विकराल गाल तुमको तत्काल ही निगलना चाहता है, इसीलिए किसी प्रकार भी बुराई न करो | जो नहीं बोया गया है, वह काटने को नहीं मिलता, बोया ही कटा जाता है |

2 दोहा (भक्त कबीर दास जी)
या दुनिया में आय के,
छाड़ि दे तू ऐंठ |

लेना होय सो लेइ ले,
उठी जात है पैंठ ||

व्याख्या: इस संसार में आकर तुम सब प्रकार के अभिमान को छोड़ दो, जो खरीदना हो खरीद लो, बाजार उठा जाता है |

3 दोहा (भक्त कबीर दास जी)
खाय पकाय लुटाय के,
करि ले अपना काम |

चलती बिरिया रे नरा,
संग न चले छदाम ||

व्याख्या: पका – खा और लुटाकर, अपना कल्याण कर ले | ऐ मनुष्य ! संसार से कूच करते समय, तेरे साथ एक छदाम भी नहीं जायेगा |

4 दोहा (भक्त कबीर दास जी)
सह ही में सत बाटई,
रोटी में ते टूक |

कहै कबीर ता दास को,
कबहुँ न आवै चूक ||

व्याख्या: जो सत्तू में से सत्तू और रोटी में से टुकड़ा बाँट देता है, वह भक्त अपने धर्म से कभी नहीं चूकता |

5 दोहा (भक्त कबीर दास जी)
देह खेह होय जागती,
कौन कहेगा देह |

निश्चय कर उपकार ही,
जीवन का फन येह ||

व्याख्या: मरने के बाद तुमसे कौन देने को कहेगा ! अतः निश्चयपूर्वक परोपकार करो, येही जीवन का फल है |

6 दोहा (भक्त कबीर दास जी)
धर्म किये धन ना घटे,
नदी ना घट्टै नीर |

अपनी आँखों देखिले,
यों कथि कहहिं कबीर ||

व्याख्या: धर्म (परोपकार, दान, सेवा) करने से धन नहीं घटता, देखो नदी सदैव रहती है, परन्तु उसका जल घटता नहीं | धर्म करके स्वय देख लो |

7 दोहा (भक्त कबीर दास जी)
या दुनिया दो रोज की,
मत कर यासो हेत |

गुरु चरनन चित लाइये,
जो पूरन सुख हेत ||

व्याख्या: इस संसार का झमेला दो दिन का है अतः इससे मोह – संबध न जोड़ो | सतगुरु के चरणों में मन लगाओ, जो पूर्ण सुख देने वाला है |

8 दोहा (भक्त कबीर दास जी)
ऐसी बानी बोलिये,
मन का आपा खोय |

औरन को शीतल करै,
आपौ शीतल होय ||

व्याख्या: मन के अहंकार को मिटाकर, ऐसे और नम्र वचन बोलो, जिससे दूसरे लोग सुखी हों और खुद को भी शान्ति मिले |

9 दोहा (भक्त कबीर दास जी)
कहते को कहि जान दे,
गुरु की सीख तू लेय |

साकट जन औ श्वान को,
फिरि जवाब न देय ||

व्याख्या: उल्टी – पुल्टी बात बोलने वाले लो बोलते जाने दो तू गुरु की ही शिक्षा धारण कर | साकट (दुष्टों) तथा कुत्तों को उलटकर उत्तर न दो |

10 दोहा (भक्त कबीर दास जी)
इष्ट मिले अरु मन मिले,
मिले सकल रस रीति |

कहैं कबीर तहँ जाइये,
यह सन्तन की प्रीति ||

व्याख्या: उपस्य, उपासना – पद्धति, सम्पूर्ण रीति – रिवाज़ और मन जहाँ पर मिलें, वहीं पर जाना सन्तो को प्रियेकर होना चहिये |

11 दोहा (भक्त कबीर दास जी)
बहते को मत बहन दो,
कर गहि ऐचहु ठौर |

कहो सुन्यो मानौ नहीं,
शब्द कहो दुइ और ||

व्याख्या: बहते हुए को मत बहने दो, हाथ पकड़कर उसको मानवता की भूमिका पर निकाल लो | यदि वह कहा – सुना ना माने, तो भी निर्णय के दो वचन और सुना दो |