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इलमों बस करीं – काफी भक्त बुल्ले शाह जी

इलमों बस करीं

इलमों बस करीं ओ यार
इक्को अलफ़ तेरे दरकार| टेक|

इलम न आवे विच शुमार,
जांदी उमर, नहीं इतबार,
इक्को अलफ़ तेरे दरकार,
इलमों सब करीं ओ यार|

पढ़-पढ़ लिख-लिख लावें ढेर,
ढेर किताबां चार चुफ़ेर,
गिरदे चानण, विच्च हनेर,
पुच्छो राह ते ख़बर न सार|

पढ़-पढ़ निफ़ल नमाज़ गुज़ारें.
उचियां बांगां चांघां मारे,
मिम्बर ते चढ़ वाज़ पुकारें,
कीता तैनूं इलम ख़वार|

इलमों प्ये ने कज़िये होर,
अक्खां वाले अन्हें कोर,
फड़दे साध ते छड्डण चोर,
दोहीं जहानीं होण ख़वार|

पढ़-पढ़ शेख़-मशेख़ कहावें,
उलटे मसले घरों बणावें,
बेइलमां नूं लुट-लुट खावें,
सच्चे-झूठे करें क़रार|

पढ़-पढ़ मुल्लां होए क़ाज़ी,
अल्ला इलमों बाझों राज़ी,
होवे हिरस दिनों दिन ताज़ी,
तैनूं कीता हिरस ख़वार|

पढ़-पढ़ मसले पिआं सुणावें,
ख़ाणा शक-शुबहे दा खावें,
दस्सें होर तो होर कमावें,
अन्दर खोट बाहर सुच्यार|

जद मैं सबक़ इश्क़ दा पढ़िआ,
दरिया बेख़ बेहदत दा वड़िआ,
घुम्मण-घेरां दे विच अड़िआ,
शाह इनायत लाया पार|

पोथी-साधना बन्द करो

इस काफ़ी में धर्मग्रन्थों के अनन्त पठन-पाठनों की निस्सारता बताते हुए अन्तर्मुखी प्रेम का प्रतिपादन करते हुए कहते हैं कि यह सारी पोथियां पढ़ना बन्द करो, मित्र! तुम्हें तो एक अलिफ़ अक्षर (अल्लाह) की ही ज़रूरत है|

पुस्तकीय ज्ञान की तो कोई सीमा नहीं, आयु प्रतिदिन बीत रही है| कुछ भरोसा नहीं कब आयु समाप्त हो जाए| प्रभु को पाने हेतु तुम्हें तो सिर्फ़ एक अलिफ़ की ही ज़रूरत है| अत: यह सारी पोथी-साधना छोड़ दो|

तुम ढेरों पढ़-लिख गए, तुम्हारों चारों ओर पुस्तकों का ढेर ही ढेर है| इसलिए इर्द-गिर्द तो प्रकाश है, लेकिन भीतर अन्धकार भरा पड़ा है| सच्ची राह पूछो तो उसका तुम्हें कुछ अता-पता नहीं मिलता|

पुस्तकीय ज्ञान से प्रभावित हो तुम नफ़िल1 करते हो, नमाज़ भी अदा करते हो और ऊंची आवाज़ में बांगें भी देते हो, मिम्बर2 पर चढ़कर वाज़3 भी करते हो| मतलब है कि पुस्तकीय ज्ञान ने तुम्हें परेशान कर रखा है|

पुस्तकीय ज्ञान से और भी विवाद पैदा होते हैं, आंख वालों को कोरमकोर अन्धा मान लिया जाता है| भले आदमी धर लिये जाते हैं और चोर छूट जाते हैं| और लोक-परलोक में लोग दुख पाते हैं|

यह सच है कि पढ़-पढ़कर आप शेख1 कहलाने लगे हो, लेकिन अपनी ओर से प्रतिकूल समस्याएं ही पैदा करते हो| अपने ज्ञान के बल पर अनपढ़ लोगों को लूट-लूटकर खाते हो और लोगों से झूठे-सच्चे वादे करते रहते हो|

पढ़-पढ़कर लोग मुल्ला और क़ाज़ी बन जाते हैं, किन्तु भगवान तो विद्याहीनों पर भी प्रसन्न हो जाता है, पढ़े-लिखों की हवस प्रतिदिन बढ़ती ही जाती है| सच पूछो तो तुम्हें भी तुम्हारी हवस परेशान कर रही है|

पढ़-पढ़ तुम विवादपूर्ण बातें सुना रहे हो| जो खाना तुम खा रहे हो वह सन्देह और संशय का खाना है, तुम्हारी कथनी कुछ है और करनी कुछ और| सच में तो तुम्हारे अन्दर खोट है, लेकिन बाहर से तुम स्वच्छ प्रतीत होते हो|

जब मैंने इश्क़ के मार्ग को अपनाया तो अद्वैत की नदी नज़र आई और उसी में छलांग लगा दी| मैं मूर्ख भीषण भंवर में फंस गया| किन्तु मेरे मुर्शिद शाह इनायत ने मुझे पार लगा दिया|