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इक्को रंग कपाई दा – काफी भक्त बुल्ले शाह जी

इक्को रंग कपाई दा

सब इक्को रंग कपाई दा,
इक आपे रूप वटाई दा| टेक|

अरूड़ी ते जो गदों चरावैं,
सो भी वांगी गाईं दा|

सभ नगरां विच आपे वस्से,
ओहो मेहर गराईं दा|

हर जी आपे हर जा खेले,
सदिआ चाईं चाईं दा|

बाग़ बहारां तां तूं वेखें,
थीवें चाक अराईं दा|

इश्क़-मुश्क़ दी सार की जाणे,
कुत्ता सूर सराईं दा|

बुल्ल्हा तिस नूं वेख हमेशा,
इह है दर्शन साईं दा|

एक ही रंग है कपास का

सब कपास का एक ही रंग है| अलग-अलग रंगों का कपड़ा कपास से ही बनता है| इस प्रकार एक कपास ही (भिन्न-भिन्न) रूप बदलती रहती है| अर्थात सबकी आत्मा एक ही है| गन्दगी के ढेर पर गधे चरानेवाला उस गौ चराने वाले से भिन्न नहीं है| सभी नगरों में रहने वाला वह परमात्मा स्वयं ही है और गांवों पर कृपा करने वाला भी वही है| हर जीव में, हर स्थान पर, वही तो खेल रहा है| वह बुलाया गया तो ख़ुश होकर चला आया है| यदि तुम बाग़-बहार देखना चाहते हो अर्थात प्रसन्न जीवन व्यतीत करना चाहते हो तो अराईं (मुर्शिद शाह इनायत क़ादिरी ) के सेवक (मुरीद) बन जाओ|

सराय का कुत्ता या सुअर (अर्थात जो परमात्मा को पाने का साधन नहीं करता) इश्क़ का रहस्य क्या जाने?

बुल्लेशाह का कहना है कि हर जीव में सदा उसको देखो| उस परमात्मा (स्वामी) के दर्शन करने का यही मार्ग है|