Homeभगवान हनुमान जी की कथाएँहनुमान की कांख में सूर्य (भगवान हनुमान जी की कथाएँ) – शिक्षाप्रद कथा

हनुमान की कांख में सूर्य (भगवान हनुमान जी की कथाएँ) – शिक्षाप्रद कथा

हनुमान की कांख में सूर्य (भगवान हनुमान जी की कथाएँ) - शिक्षाप्रद कथा

लक्ष्मण के शेल द्वारा घायल होने के पश्चात सभी देवताओं को बुलाया गया| शिव, ब्रह्मा, यम, कुबेर, वायुदेव आदि सभी वहां पहुंच गए| सूर्य तथा चंद्रमा भी वहां आ पहुंचे| तब रावण ने कहा – “लक्ष्मण अब युद्ध में गिरकर मुर्च्छित हो गया है| मैंने उसे मयदानव द्वारा निर्मित शेल से अचेत कर दिया है| हे सूर्य! तुम मेरे वचन सुनो| अभी शीघ्रता से चले जाओ तथा उदयगिरि से निकल पड़ो|तुम्हारे उदय होने से लक्ष्मण की मृत्यु हो जाएगी| तब राम भी अपनी जीवन लीला समाप्त कर देंगे| अतः तुम शीघ्रता से जाओ और उदय हो जाओ| चंद्रमा अभी यही रहेगा| सूर्य के उदय होने से लक्ष्मण की मृत्यु अवश्यंभावी है|”

यह सुनकर सूर्य ने कहा – “हे लंकेश्वर! आप मेरी प्रार्थना सुनिए| अभी तो रात्रि का दूसरा पहर है| अभी मैं कैसे उदय हो सकता हूं?”

रावण ने कहा – “यदि इस समय रात्रि में तुम उदय हो जाओगे तो तुम्हें क्या हानि होने वाली है? ऐसा लगता है कि तुम मेरा अनिष्ट करना चाहते हो|”

रावण की बात सुनकर सूर्यदेव भयभीत मन से वहां से चले गए| सूर्यदेव का रथ सात अश्व चला रहे थे| वे रावण के भवन से उदय होने के लिए चले गए|

जब सूर्यदेव पूर्व दिशा से उदय होने वाले थे, तब हनुमान जी उन्हें देखकर आतंकित हो गए| वे एकदम उदयगिरी की ओर भागे तथा सूर्यदेव के समक्ष खड़े हो गए| उनके रथ का चलना बंद हो गया| जब हनुमान जी पूर्व दिशा में सूर्यदेव के रथ के सामने खड़े हो गए तो सारथि ने रथ को पश्चिम की ओर मोड़ दिया| उसने घोड़ों को लगातार चाबुक मारना आरंभ कर दिया| रथ पश्चिम दिशा की ओर बढ़ने लगा| यह देखकर हनुमान जी क्रोधित हो उठे और एक छलांग लगाकर उन्होंने घोड़ों को पकड़ लिया तथा रथ को कुम्हार के चाक के समान घुमाना आरंभ कर दिया| सारथि ने चिल्लाना आरंभ कर दिया और हनुमान जी से रुकने के लिए कहा, क्योंकि सूर्यदेव के क्रोधित होने पर तीनों लोक नष्ट हो जाएंगे|

करुणानिधान सूर्यदेव ने सारथि से पूछा – “रथ के पास कौन है?”

सारथि ने उत्तर दिया – “एक वानर रथ को घुमा रहा है|”

सूर्यदेव ने कहा – “रथ को आकाश में ले जाओ| मैं इस वानर को जलाकर फेंक दूंगा|”

यह सुनकर हनुमान जी खड़े हो गए तथा बड़ी विनम्रता से बोले – “हे देव! आप कौन हैं? क्या आप मायामय हैं? आप मुझे अपना परिचय देने की कृपा करें|”

सूर्यदेव ने कहा – “मैं सूर्यदेव हूं| मेरा मार्ग छोड़ दो| मैं उदयगिरि से उदय होने जा रहा हूं| हम सभी देवता रावण के द्वारपाल का कार्य करते हैं| लंका में एक करोड़ ऋषिगण, ब्रह्मा सहित रावण के भवनों वेदपाठ करते हैं| आज के युद्ध में लक्ष्मण रावण की शेल से घायल हो गया है| वह युद्धभूमि में मुर्च्छित पड़ा है| रात्रि के अंत में उसकी अवश्य ही मृत्यु हो जाएगी| अतः रावण ने मुझे असमय ही उदयगिरि से उदय होने के लिए कहा है| हम रावण का आतंक अधिक देर तक सहन नहीं कर सकते| अतः मैं उदय होने जा रहा हूं, जबकि अभी रात्रि का समय है| मेरे उदय होने से लक्ष्मण की जीवन लीला समाप्त हो जाएगी| पवनपुत्र हनुमान जी औषधि लाने गए हैं| उनके आने से पूर्व ही रावण लक्ष्मण का अंत करना चाहता है|”

यह सुनकर हनुमान जी ने कहा – “हे देव! सुनिए| मैं ही पवनपुत्र हनुमान हूं| मैं इस पर्वत से कुछ औषधि लेने आया हूं| मेरी आप से यह प्रार्थना है कि आप तब तक उदयगिरि न जाएं, जब तक लक्ष्मण जीवित न हो जाएं|”

सूर्यदेव ने कहा – “आपकी बात कौन सुनेगा? मैं रावण की आज्ञा का उल्लंघन नहीं कर सकता|”

हनुमान जी ने कहा – “आप सभी देवताओं के मुख्य हैं| दयालु हृदय होकर लक्ष्मण के प्राणों की रक्षा कीजिए| यदि आप अभी भी रावण की आज्ञा का पालन करने के लिए कटिबद्ध हैं तो मैं आपको रथ सहित समुद्र में डुबो दूंगा|”

सूर्यदेव ने हंसकर कहा – “अरे हनुमान! सुनो, सभी देवता श्रीराम की भलाई चाहते हैं| क्या मैं उदयगिरि स्वेच्छा से उदय हो रहा हूं? देवता रावण से बच नहीं सकते| वे सभी उससे भयभीत हैं| इसीलिए मैं विवश होकर रात को ही उदय होने के लिए आया हूं| यदि मैं रावण की आज्ञा का उल्लंघन करूंगा तो वह अवश्य ही मुझे भयानक दंड देगा| यदि मैं राम की आज्ञा से लौट भी जाता हूं तो क्या मैं रावण के दंड से बच पाऊंगा?”

हनुमान जी ने कहा – “इसका एक उपाय है| आप मेरे निकट आ जाओ| मैं आपके कान में कुछ कहूंगा| आपका नाम भानु है तथा मेरा नाम हनु है| हम दोनों के नाम एक जैसे हैं| रावण आपमें कोई भी दोष नहीं देख पाएगा| राम का कार्य भी सिद्ध हो जाएगा| जो उपाय मेरे पास है, उससे दोनों पक्षों का कार्य हो जाएगा|” यह कहकर हनुमान जी ने सूर्यदेव का आलिंगन करके उन्हें पकड़ लिया और उन्हें बगल में दबा लिया|

फिर द्रोण पर्वत से औषधि लेकर हनुमान जी सूर्यदेव को कांख में दबाए हुए शीघ्रता से समुद्र को पार करके लंका में राम के शिविर में पहुंचे| श्रीराम उनको औषधि के साथ आया देखकर बहुत प्रसन्न हुए| सभी वानर तथा भालू उन्हें घेरे हुए थे| हनुमान जी उनके पास पहुंचे तथा श्रीराम को हाथ जोड़कर प्रणाम किया| हनुमान जी की कांख से सूर्य की किरणें निकलते देखकर राम ने उनसे पूछा – “हे हनुमान! क्या यह आश्चर्य नहीं है कि सूर्य की किरणें तुम्हारी कांख से निकल रही हैं?”

हनुमान जी ने कहा – “हे देव! सुनिए, मैं औषधि लेने गया था| रात के अंधकार में मैं सर्वत्र घूम रहा था| औषधि की खोज करते हुए मैं पूर्व दिशा की ओर गया तो मैंने वहां आधी रात को सूर्य को देखा, जो उसी समय उदय होने जा रहा था| मैंने उससे पूछा कि आपके वंशज राम तथा लक्ष्मण इस समय संकट में हैं| जब तक लक्ष्मण जीवित न हो जाएं, तब तक आप उदय न हों| सूर्यदेव ने मेरी बात नहीं सुनी| अतः मैंने उन्हें पकड़कर अपनी कांख में दबा लिया तथा औषधि लेकर यहां चला आया|”

हनुमान जी की बात सुनकर राम बहुत प्रसन्न हुए| उन्होंने कहा – “हे हनुमान! तुमने तो महान चमत्कार कर दिया है| अब न ही रात्रि का अंत होगा और न ही अंधेरा मिट सकेगा| सूर्यदेव संसार को प्रकाश देने वाले हैं| उनको मुक्त कर दो| ताकि संसार में उजाला हो सके|”

श्रीराम की बात सुनकर हनुमान जी ने अपने दोनों बाजू ऊपर उठा दिए| सूर्यदेव मुक्त हो गए| राम तथा सभी वानरों ने सूर्यदेव के चरणों की वंदना की| फिर सूर्यदेव उदय होने के लिए उदयाचल पर्वत की ओर प्रस्थान कर गए| रात्रि का अंत हो गया| लक्ष्मण औषधि सेवन से स्वस्थ हो गए और वानर सेना में प्रसन्नता की लहर दौड़ पड़ी|

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