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सच्ची मेहनत की करामात

किसी गांव में एक किसान रहता था| उसकी थोड़ी-सी खेती-बाड़ी थी| उससे उसे जो कुछ मिल जाता, उसी से वह अपनी छोटी-सी गृहस्थी की गुजर-बसर कर लेता था| कभी किसी के आगे हाथ नहीं फैलाता था|

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संयोग की बात थी कि उस किसान का एक बैल मर गया| बेचारा बड़ी परेशानी में पड़ गया| खेत को बोना जरूरी था, पर बोए कैसे? बैल तो एक ही रह गया था| उसने बहुत सोचने के बाद एक फैसला किया| हल के जुए में एक ओर बैल जोता और दूसरी ओर अपनी स्त्री और फिर काम करने लगा|

उसी समय वहां का राजा अपनी रानी के साथ रथ पर उधर से गुजरा| अचानक उसकी निगाह हल पर गई, जिसके जुए में एक तरफ बैल और दूसरी तरफ स्त्री थी| उसे बड़ा अचरज हुआ, साथ ही दुख भी| उसने रथ को रोका और किसान के पास जाकर कहा – “यह तुम क्या कर रहे हो|”

किसान ने निगाह उठाकर उसकी ओर देखा और बोला – “मेरा एक बैल मर गया है और खेत को बोना जरूरी है|”

राजा ने कहा – “भलोमानस! कहीं स्त्री से भी बैल का काम लिया जाता है?”

किसान बोला – “क्या करूं और उपाय ही क्या है?”

“उपाय!” राजा ने कहा – “तुम मेरा एक बैल ले लो! जाओ!”

किसान बोला – “मेरे पास इतना समय नहीं है|”

इतना कहकर उसने बैल को आगे बढ़ा दिया|

राजा ने कहा – “सुनो भाई! तुम अपनी स्त्री को बैल लाने भेज दो| जब तक वह आए, तब तक मैं उसकी जगह काम करूंगा|”

किसान की स्त्री ने कहा – “तुम तो बैल देने को तैयार हो, पर तुम्हारी औरत ने इंकार कर दिया तो?”

राजा बोला – “नहीं ऐसा नहीं होगा|”

किसान राजी हो गया|

उसकी स्त्री बैल लेने चली गई और राजा ने हल का जुआ अपने कंधे पर रख लिया|

किसान की स्त्री ने जब रानी के पास जाकर राजा की बात कही तो वह बोली – “बहन! एक बैल से कैसे काम चलेगा! तुम्हारा बैल कमजोर है| हमारा बैल मजबूत है| दोनों साथ काम नहीं कर सकेंगे| तुम हमारे दोनों बैलों को ले जाओ|”

स्त्री बड़ी लज्जित हुई उसे तो डर था कि वह कहीं एक बैल भी देने से इंकार न कर दे| यहां एक छोड़, दोनों को देने के लिए रानी तैयार थी|

स्त्री बैल लेकर आई और पूरे खेत की बुवाई हो गई|

कुछ समय बाद फसल उगी| किसान ने देखा तो उसे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ| सारे खेत में अनाज पैदा हुआ, लेकिन जितनी जमीन में राजा ने हल चलाया था और उसका पसीना गिरा था, उतनी जमीन में मोटी उगे थे|

यह करामात सच्ची मेहनत की थी| जहां राजा जनता की सेवा में अपना पसीना बहाता है, वहां ऐसा ही फल मिलता है|

नारद जी