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सियार और चूहे

भोजन की तलाश में सारा जंगल छानते हुए एक दिन एक सियार की नज़र चूहों के एक समूह पर पड़ी| उस समूह का मुखिया एक हट्टा-कट्टा चूहा था|

‘मैं इन पर झपट सकता हूँ| पर कोई फायदा नही, क्योंकि एक-दो को छोड़कर बाकी सब भाग जाँएगे| हाँ, अगर अक्ल से काम लूँ तो शायद कई दिनों तक के लिए उदरपूर्ति का इंतजाम हो जाए|’ यह सोचकर सियार ने चुपचाप उनका पीछा किया|

जब सारे चूहे अपने बिल में घुस गए तो वह बिल के बाहर ही एक पैर पर खड़ा हो गया| उसका मुहँ खुला था और चेहरा सूरज की ओर था|

कुछ देर बाद चूहे बिल से बाहर निकले| उन्होंने सियार को एक पैर पर खड़े देखा तो मूषकराज ने कहा, ‘महाशय, आप एक पैर पर क्यों खड़े है?’

‘यदि मैं चारों पैर धरती पर टिका दूँगा तो मेरे बोझ से धरती धँस जाँएगी|’ धूर्त सियार ने उतर दिया|

‘आप अपना मुहँ खोले क्यों खड़े है?’ मूषकराज ने आश्चर्य से पूछा|

‘हवा खाने को| सिर्फ़ यही मेरा भोजन है|’

‘चेहरा ऊपर क्यों उठाए हुए है?’ मूषकराज ने फिर पूछा|

‘सूर्यदेव की पूजा के लिए|’ सियार बोला|

‘हम किस्मत के कितने धनी है कि महान संत हमारे बिच पधारे है| हम सुबह-शाम इनकी सेवा किया करेंगे|’ मूषकराज ने चूहों को निर्देश दिया|

उधर सियार मन-ही-मन प्रसन्न हुआ, क्योंकि उसका काम बन चुका था| अगली सुबह सभी चूहे सियार को प्रणाम करने के लिए आए और सेवा करके चल दी|

सियार ने मौका देखकर आखिरी चूहे को दबोच लिया| यह दौर कई दिनों तक चलता रहा| कुछ ही दिनों में सियार हट्टा-कट्टा हो गया|

फिर एक दिन मूषकराज ने सोचा, ‘हवा खानेवाला संत आखिर इतना हट्टा-कट्टा कैसे हो गया?’

इसके कुछ दिन बाद मूषकराज अपने दरबार में बैठा हुआ था| मंत्री ने कहा, ‘महाराज, हम लोग गिनती में पहले से कम हो गए है|’

‘क्या कारण हो सकता है?’

‘मुझे उस सियार पर शक है, जो दिन-प्रतिदिन मोटा-तगड़ा होता जा रहा है| कहीं ये सियार ही तो….| खैर, मैं इसका अवश्य पता लगाऊँगा|’

अगली सुबह सब पूजा के लिए चलने लगे तो मूषकराज ने कहा, ‘आज तुम सब आगे चलो, मैं पीछे चलूँगा|’

रास्ते में मूषकराज सोचता रहा, ‘यदि मेरा अनुमान ठीक है तो वह धावा ज़रूर बोलेगा| मुझे सचेत रहना चाहिए|’

अगले ही क्षण सियार मूषकराज पर झपटा, किंतु वह चूक गया| उधर मूषकराज ने फुर्ती से अपने दाँत सियार की गर्दन में गड़ा दी और उसे खत्म कर दिया|

शिक्षा: धूर्त व मक्कार प्राणियों से सदैव बचकर रहना चाहिए| उन्हें संत समझने की भूल तो चूहों जैसा कोई मूर्ख ही कर सकता था| वह तो मूषकराज व उसके मंत्री को समय रहते समझ आ गई वरना जान के लाले पड़ जाते| चिकनी-चुपड़ी बातों में आने से अपना ही नुकसान होता है|