श्रेष्ठ कौन?

कौशल नरेश मल्लिक न्यायप्रिय और शक्तिशाली राजा था| लेकिन उसे अपनी योग्यता पर बिल्कुल भी भरोसा नही था| वह सोचता, ‘लोग उसे अच्छा कहते है, क्या मैं सचमुच ही अच्छा हूँ?’

एक दिन दरबार में उसने अपने मंत्रियों से पूछा, ‘सच-सच बताना, क्या मुझमें कोई दोष है?’

‘नही महाराज|’ मंत्रियों के साथ दरबारी भी एक स्वर से कह उठे|

‘आप सज्जन, दयालु और न्यायप्रिय है|’ एक मंत्री ने कहा|

राजा ने अपनी प्रजा से भी पूछा लेकिन सबका यही उत्तर था कि आप कुशल शासक है| हम सब आपके शासन में सुखी और संपन्न है|

लेकिन राजा फिर भी संतुष्ट नही हुआ| वह सोचने लगा, ‘शायद मेरे मंत्री और प्रजाजन सच नही बोल रहे|’

वह भेष बदलकर गाँव-गाँव घूमा| लेकिन उसे एक भी निंदक नही मिला| आम ग्रामीणों की भी यही राय थी कि हमारे राजा जैसा चरित्रवान और दयालु कोई और नही है|

एक दिन राजा का रथ संकरे पुल से गुज़र रहा था| वह पुल मात्र इतना चौड़ा था कि उसमें एक ही रथ आ-जा सकता था| यदि सामने से कोई अन्य वाहन आ जाए तो मार्ग अवरुद्ध हो जाता था|

अब इसे संयोग ही कहा जाएगा कि सामने से राजा ब्रह्मदत् भी अपने शाही रथ पर आ रहा था| दोनों के रथ आमने-सामने रुक गए|

राजा मल्लिक के सारथी ने कहा, ‘अपना रथ पीछे हटाओ, ये राजा मल्लिक है|’

दूसरी तरफ़ से राजा ब्रह्मदत् के सारथी ने कहा, ‘दोनों में जो श्रेष्ठ होगा, वही पहले पुल पार करेगा|’

राजा मल्लिक का सारथी बोला, ‘तुम्हारे महाराज कि आयु क्या है और उनका राज्य कितना बड़ा है?’

इस तरह से उन दोनों में बहस होने लगी|

दोनों राजाओं की आयु और राज्य तकरीबन समान ही निकले| इसका फैसला न हो पाया तो राजा ब्रह्मदत् के सारथी ने कहा, ‘तुम्हारे स्वामी में क्या विशेषता है?’

राजा मल्लिक के सारथी ने कहा, ‘मेरे स्वामी बुराई का बदला बुराई से तथा भलाई का भलाई से देते है|’

‘यदि यह तुम्हारे स्वामी की विशेषता है तो दोनों की कल्पना से ही मैं सिहर उठता हूँ|’ राजा ब्रह्मदत् के सारथी ने कहा|

‘आखिरकार कोई तो ऐसा मिला जिसने साफ़ बात कही है|’ राजा मल्लिक सोच में पड़ गया|

‘अब बकवास बंद करो और यह बताओ तुम्हारे स्वामी में क्या विशेषता है?’

राजा मल्लिक भी उतावला-सा राजा ब्रह्मदत् के सारथी की ओर देखने लगा|

‘मेरे स्वामी बुराई का बदला भी भलाई से देते है|’ राजा ब्रह्मदत् के सारथी ने कहा|

इतना सुनते ही राजा मल्लिक खड़ा हो गया और बोला, ‘तब निश्चय ही वे मुझसे श्रेष्ठ शासक है|’ इतना कहकर वह नीचे उतर गया और राजा ब्रह्मदत् को प्रणाम किया|

फिर वह अपने सारथी के पास आया और बोला, ‘अब मुझे ज्ञात हुआ, मुझमें क्या दोष है| मैं आदर्श से अभी कितना दूर हूँ| चलो, अपना रथ पीछे कर लो और राजा ब्रह्मदत् को पहले रास्ता दो|’

शिक्षा: गुण-दोषों की परख अपने लोग नही, दूसरे ही कर सकते है| वैसे भी राजा में दोष ढूँढने का साहस कौन करता…दंड का भय जो था| भलाई करने वाला व्यक्ति तो बुराई के विषय में जानता ही नही| यह बात जब राजा मल्लिक को पता चली तो उसे अपना दोष मालूम पड़ गया|