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सेर को सवा सेर

एक राजमहल के पिछवाड़े में एक बहुत बड़ा सरोवर था| उसमे अनेक सुनहरे हंस रहते थे| प्रत्येक हंस छह मास बाद सोने का एक पँख सरोवर के तट पर छोड़ देता था, जिसे राजा के सेवक उठा ले जाते थे|

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उस सरोवर में एक बार बहुत बड़ा पक्षी आया| उसे देखते ही सारे हंस बोले, ‘अरे भाई! तुम हमारे बीच यहाँ नही रह सकते| तुम यहाँ क्यों चले आए? हम हर छह महीने बाद राजा को एक-एक सोने का पँख देते है| इस तरह हमने ये तालाब खरीद लिया है|’

‘भाइयों! मैं तो बेसहारा हूँ| बड़ी आशा से आप लोगों की शरण में आया हूँ|’ वह पक्षी बोला|

मगर किसी ने उसकी प्रार्थना नही सुनी, बल्कि उसे दुत्कार कर भगा दिया|

हंसों का ऐसा व्यवहार देखकर पक्षी को बहुत क्रोध आया| उसने मन-ही-मन निर्णय लिया कि इन घमंडी हंसों को सबक सिखाना ही पड़ेगा|

वह पक्षी राजा के पास गया और बोला, ‘महाराज! आपके सरोवर के हंस बड़े घमंडी और बदतमीज है| मैं वहाँ शरणार्थी बनकर गया था और प्रार्थना की थी कि दयालु राजा के मानसरोवर में मुझे भी स्थान दे दो| लेकिन उन्होंने मेरी प्रार्थना पर कोई ध्यान नही दिया, बल्कि उनमें से एक हंस ने अकड़कर कहा, ‘राजा कौन होता है? वो हमारा क्या बिगाड़ लेगा? यह सरोवर हमने उससे खरीद लिया है| महाराज! वे लोग सोचते है कि सोने का पँख देकर उन्होंने पूरा सरोवर ही खरीद लिया है| मेरा अपमान करके मुझे वहाँ से भगा दिया| आपके राज्य में ऐसा अन्याय होना शोभनीय नही है| न्याय करे महाराज!’

‘तुम चिंता न करो, हम अवश्य न्याय करेंगे|’ राजा ने उसे सांत्वना देकर सैनिकों से कहा, ‘तुम लोग इसी समय उन हंसों को मेरे सामने पेश करो! उन घमंडी हंसों को दंडित किया जाएगा|’

राजा का हुक्म पाकर सैनिक सरोवर की ओर कूच कर गए|

हंसों ने सैनिकों को सरोवर की ओर आते देखा तो उनमें से एक बूढ़ा हंस बोला, ‘दोस्तों! अब इस सरोवर को छोड़ देना ही हितकर है| लगता है उस पक्षी ने हमारे खिलाफ़ राजा के कान भर दिए है, अब हमें दंडित भी किया जा सकता है|’

बूढ़े हंस की बात मानकर तुरंत सारे हंस वहाँ से उड़ गए|

राजा ने नए पक्षी को तालाब में रहने की आज्ञा दे दी|


कथा-सार

घमंडी का सिर सदैव नीचा होता है| अहंकार के मद में चूर होकर किसी का अपमान करना ठीक नही| शरणागत तो अतिथि होता है, उसका सम्मान करना चाहिए, लेकिन हंसों ने तो सरोवर पर अपना अधिकार समझ लिया था| इसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा और उस स्थान को छोड़कर अन्यत्र शरण लेनी पड़ी|

भक्त और