सहनशीलता

महाराष्ट्र में एक बहुत बड़े संत हुए हैं| उनका नाम था एकनाथ| वह सबसे प्रेम करते थे| कभी गुस्सा नहीं होते थे| एक दिन वह पूजा कर रहे थे कि एक आदमी उनकी गोद में आ बैठा| एकनाथ से प्रसन्न होकर कहा – “वाह! तुम्हारे प्रेम से मुझे बहुत ही आनंद मिला है|”

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इसके बाद एकनाथ जब दोपहर का भोजन करने बैठे तो एक थाली उस आदमी के लिए भी परोसी गई| एकनाथ की पत्नी जैसे ही उसके पास आई कि वह उठकर उनकी पीठ पर सवार हो गया|

एकनाथ ने बड़े प्यार से अपनी पत्नी से कहा – “देखना कहीं वह भाई तुम्हारी पीठ पर से नीचे न गिर जाए!”

पत्नी बोली — “नहीं, आप चिंता न करें| मुझे अपने बेटे को पीठ पर लादे रहने का बड़ा अभ्यास हो गया है|”

वह आदमी लज्जित होकर एकनाथ के चरणों में गिर पड़ा| बोला – “महाराज आप मुझे क्षमा करें| मुझसे एक आदमी ने कहा था कि अगर तुम एकनाथ को गुस्सा दिलाओगे तो हम तुम्हें सौ रुपए देंगे| इसलिए मैंने ऐसा किया| मुझे बड़ा दुख है|”

एकनाथ ने प्यार से उसे उठाकर कहा – “छोड़ो उस बात को| आओ, हम खाना शुरू करें|”

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