Homeशिक्षाप्रद कथाएँमरे चूहे से व्यापार

मरे चूहे से व्यापार

बहुत पुरानी बात है…पाटलीनगर में एक युवक काम की तलाश में इधर-उधर भटक रहा था| संयोगवश राज्य का कोषाध्यक्ष भी अपने एक मित्र के साथ उधर से गुज़र रहा था|

‘महाराज तुमसे अतिप्रसन्न है| राजकोष धन से लबालब भरा है| आखिर तुम्हारी सफलता का राज क्या है?’ मित्र ने पूछा|

‘सूझ-बूझ और उधम|’ कोषाध्यक्ष ने कहा|

लेकिन उसका मित्र समझ नही पाया|

तब कोषाध्यक्ष ने कहा, ‘मैं समझता हूँ…वह मृत चूहा (मूषक) देख रहे हो?’

‘हाँ|’

‘यदि कोई अक्ल से काम ले तो बिना पूंजी के उस मूषक से ही व्यापार कर सकता है|’ कोषाध्यक्ष ने कहा|

‘मृत मूषक से…!’ कहकर उसके मित्र ने उसकी खिल्ली उड़ाई|

युवक बातें सुनता हुआ उनके पीछे चल रहा था| वह ठिठककर मूषक की तरफ़ देखकर सोचने लगा की कोषाध्यक्ष ने कुछ सोचकर ही ऐसा कहा होगा| फिर उसने मृत मूषक को उठा लिया और आगे बढ़ने लगा|

सामने से एक व्यापारी हाथ में बिल्ली लेकर आ रहा था| अचानक उसके हाथ से बिल्ली छूट गई| वह उसके पीछे भागने लगा, ‘रुको, बिल्ली रानी| कहाँ भागी जा रही हो?’ फिर उसकी नजरें युवक के हाथ में लटके हुए मूषक पर जा पड़ी| तब व्यापारी की समझ में आ गया कि बिल्ली क्यों उस तरफ़ भाग रही थी|

वह युवक के पास आया और बोला, ‘क्या तुम अपना मृत मूषक बेचोगे? मैं तुम्हें इसकी कीमत दूँगा|’

युवक ने उससे एक पैसा लेकर मृत चूहा उसके हवाले कर दिया|

फिर वह पैसे को लेकर आगे बढ़ गया| वह सोच रहा था कि एक पैसे का क्या किया जाए? तभी उसे कोषाध्यक्ष की बात याद आ गई की सूझ-बूझ से काम लेना चाहिए|

कुछ आगे चलकर उस युवक ने दुकान से एक पैसे का गुड़ खरीदा| उसके बाद वह एक मटके में पानी भरकर नगर की सीमा पर जा पहुँचा| वहाँ उसे पता चला की वन से लोग फल-फूल तोड़कर इसी रास्ते से आते हैं| वह एक पेड़ के नीचे गुड़ और पानी का घड़ा लेकर उनके लौटने का इंतजार करने लगा|

दोपहर बाद जब लोग अपना काम खत्म करके शहर की ओर लौटे तो भूख-प्यास से उनका बुरा हाल हो रहा था|

उनको आता देखकर युवक की आँखों में चमक आ गई| जब वे वहाँ से गुज़रने लगे तो वह बोला, ‘भाई, थक गए होंगे| थोड़ा गुड़ खाकर व पानी पीकर गला तर कर लो|’

‘जुग-जुग जियो, बेटा तुम्हारी बड़ी मेहरबानी|’ एक वृद्ध ने पानी पीकर थोड़े से फूल उस युवक को दे दिए और शहर की ओर चल दिया|

युवक से सब फूलवालों ने पानी पिया और बदले में थोड़े-थोड़े फूल उसको भेंट कर दिए और जाते-जाते बोले, ‘कल भी हमारे लिए पानी का इंतजाम रखना दोस्त|’

‘ज़रूर|’ युवक बोला|

युवक फूल लेकर नगर के एक मंदिर में पहुँचा और वहाँ उन्हें बेचने लगा| उसके बदले में उसे कुछ पैसे मिले| जब उसने गिने तो वे पूरे आठ पैसे थे|

इस तरह अपनी पहली कमाई से उसने एक बड़ा घड़ा और पहले से ज्यादा गुड़ खरीदा और जंगल के उसी रास्ते पर पहुँच गया|

खेतों में घसियारे घास काट रहे थे| युवक ने उनसे कहा, ‘किसी को प्यास लग रही हो तो पानी पी लो|’

‘अरे भाई, यहाँ प्यास किसे नही लगी है, सब प्यासे है|’ एक घसियारा बोला|

फिर युवक ने सबकी प्यास बुझाई| घसियारे बोले, ‘हमारे लायक कोई काम हो तो ज़रूर बताना|’

इस तरह एक महीना बीत गया| एक शाम जब युवक घर लौट रहा था कि अचानक तूफ़ान आ गया| थोड़ी देर बाद जब तूफ़ान थमा तो चारों तरफ़ सूखी पत्तियाँ और टहनियाँ बिखरी पड़ी थी| युवक सोचने लगा कि अगर मृत मूषक से पैसा कमाया जा सकता है तो सूखी डालों और पत्तों से भी ज़रूर कुछ आय हो सकती है|

अगले दिन वह राजमहल के माली से मिला|

‘बड़े परेशान नज़र आ रहे हो काका? क्या बात है?’ युवक ने माली से पूछा|

‘तुम देख रहे हो न, बगीचे में टहनियाँ बिखरी पड़ी है| महाराज किसी भी वक्त यहाँ आ सकते है| उनके आने से पहले बगीचे की सफ़ाई कर भी पाउँगा या नही, इसी सोच में डूबा हूँ|’ माली ने कहा|

अगर ये टहनियाँ मुझे देने का वायदा करो तो मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूँ|’ युवक ने कहा|

‘ले जा बेटा, जल्दी यहाँ से ले जा|’ माली ने खुश होते हुए कहा|

‘मैं अभी आया|’ यह कहकर युवक बगीचे से बाहर आ गया| उसने बगीचे के बाहर खेल रहे बच्चों को गुड़ खिलाया और कहा, ‘यदि तुम और गुड़ खाना चाहते हो तो तुम्हें मेरा एक काम करना होगा|’

बच्चे खुश हो गए और गुड़ के लालच में काम करने को तैयार हो गए|

युवक बच्चों को बगीचे में ले गया और उनसे सारी सूखी लकड़ियाँ बगीचे से बाहर एक जगह इकठ्ठी करवा ली और उन्हें बहुत सारा गुड़ ईनाम स्वरूप देकर वहाँ से विदा कर दिया|

वह सोच रहा था कि अब क्या किया जाए की तभी सामने से एक कुम्हार गाड़ी लेकर आता दिखाई दिया| कुम्हार ने युवक के पास लकड़ियों को देखकर पूछा, ‘क्या तुम यह लकड़ियाँ बेचोगे?’

युवक ने ‘हाँ’ में गर्दन हिलाई|

कुम्हार ने युवक के साथ मिलकर सारी लकड़ियाँ गाड़ी में रखवा ली| बदले में उसे सोलह पैसे दिए| वह युवक उसी की गाड़ी में बैठकर बाज़ार पहुँच गया|

बाज़ार में जाकर उसे पता चला कि कल घोड़ों का व्यापारी पाँच सौ घोड़े लेकर आ रहा है| उसने सोचा, यदि वह पाँच सौ घोड़ों के लिए घास का प्रबंध कर ले तो अच्छी कमाई हो सकती है|

फिर वह तुरंत उन घसियारों के पास पहुँचा जिनको उसने पानी पिलाया था| वह उनसे बोला, ‘मुझे तुम सब से एक-एक गट्ठर घास चाहिए|’ वे करीब पाँच सौ घसियारे थे| सबने एक-एक गट्ठर घास युवक की बताई हुई जगह पर पहुँचा दी| युवक ने उन सबका शुक्रिया अदा किया|

अगले दिन घोड़ों का व्यापारी घोड़े लेकर पहुँचा| उसने घोड़ों के लिए घास का इंतजाम करने की सोची, लेकिन उसे कहीं घास न मिली| जब वह बाज़ार में पहुँचा तो एक कोने में युवक के पास उसे ढेर सारी घास दिखाई दी| उसने युवक से पूछा, ‘क्या तुम घास बेचोगे?’

युवक ने कहा, ‘शौक से खरीदिए| पूरे पाँच सौ गट्ठर है|’

घास के बदले में घोड़ों के व्यापारी से उस युवक को पूरे एक हज़ार ताँबे के सिक्के मिले| युवक बहुत खुश हुआ| क्योंकि उसके पास काफ़ी पैसे इकठ्ठे हो चुके थे|

उसके बाद उसे पता चला कि कल जहाजी बेड़ा भी आने वाला है, सो उसने नए कपड़े खरीदे और एक रथ किराए पर ले लिया|

अगले दिन वह अपने दो मित्रों के साथ रथ में सवार होकर नदी किनारे जा पहुँचा|

थोड़ी ही देर में जहाजी बेड़ा वहाँ आ पहुँचा| उस युवक ने उन व्यापारियों का भव्य स्वागत किया और कहने लगा कि मैं आपसे सारा माल खरीदना चाहता हूँ| उन्होंने उसकी सेवा-भावना से खुश होकर उसे माल बेचना स्वीकार कर लिया| तब युवक ने कहा, ‘श्रीमान! आपको थोड़ा इंतजार करना होगा| क्योंकि इतनी बड़ी रकम का इंतजाम करने में समय तो लगेगा ही| तब तक आप मेरा यह धन अपने पास रखे|’

व्यापारियों ने उसे समय की छूट दे दी|

उस युवक ने थोड़ी ही दूरी पर अपना खेमा लगा लिया| कुछ ही देर बाद नगर के लगभग सौ व्यापारी वहाँ आ पहुँचे| उन्होंने जहाज के व्यापारी से बातचीत की| जहाज के व्यापारी ने बताया कि उसका सारा माल बिक चुका है| सुनकर व्यापारी ठगे से खड़े रह गए| फिर उन्होंने आपस में सलाह की और उस युवक के पास जा पहुँचे, जिसने व्यापारी से माल खरीदा था|

‘हम जहाज का सारा माल खरीदना चाहते है, बदले में तुम्हें एक लाख स्वर्ण मुद्राएँ देंगे|’ उन व्यापारियों ने कहा|

युवक सहर्ष तैयार हो गया| उसने व्यापरियों से एक लाख स्वर्ण मुद्राएँ ली और सारा माल उनके हवाले कर दिया| उसके बाद उसने जहाज के व्यापारी को उसकी कीमत चुकाई और वापस नगर की ओर चल दिया| अब उसके पास अच्छी-खासी रकम हो गई थी| सारे रास्ते वह कोषाध्यक्ष के बारे में सोचता जा रहा था कि यह सब उसकी दी हुई नसीहत का ही प्रताप है| अतः वह उसका आभार प्रकट करने के लिए उसके घर जा पहुँचा|

‘श्रीमान, गुरु दक्षिणा के रूप में मेरी यह तुच्छ भेंट स्वीकार कीजिए|’ युवक बोला|

‘गुरु दक्षिणा!’ कोषाध्यक्ष चौंका, ‘किस बात की? मैंने तो तुम्हें पहले कभी नही देखा|’

‘श्रीमान! मैंने आपको दी हुई नसीहत के कारण चार महीने में ही काफ़ी धन कमा लिया है|’ फिर उसने मृत मूषक से लेकर अब तक की सारी कहानी कह सुनाई|

कोषाध्यक्ष युवक की मेहनत और लग्न देख बहुत खुश हुआ और उसने अपनी बेटी की शादी उस युवक के साथ कर दी और अपनी सारी संपति का उसे वारिस बना दिया|

शिक्षा: छोटे-छोटे काम करने के बाद ही बड़े कामों की बारी आती है| कोई भी सबसे ऊँची पायदान पर एक ही छलाँग में नही पहुँच जाता- एक-एक सीढ़ी चढ़कर ही वहाँ पहुँचा जाता है| मेहनत तथा लगन ही जीवन में सफलता प्राप्त करने का मूलमंत्र है|