लोभी मछुआरा

एक दिन जोगराम और उसका बेटा मछली पकड़ने नदी किनारे गए|

एक रमणीय स्थान देखकर जोगराम ने पानी में काँटा डाल दिया| थोड़ी ही देर में एक मछली फँस गई| जोगराम ने काँटा खींचना शुरु किया किंतु नाकामयाब रहा| उसने सोचा शायद आज कोई बड़ी मछली फँस गई है| उसने अपने लड़के को कहा, ‘जाकर अपनी माँ से कह दे कि वह पड़ोसियों से झगड़ना शुरु कर दे|’

‘लेकिन क्यों पिताजी?’ लड़के ने पूछा|

‘सवाल मत कर, जो कहा है, वह कर|’ जोगराम बोला|

लड़का वहाँ से चला गया|

घर आकर उसने अपनी माँ से कहा, ‘पिताजी ने कहा है कि तुम पड़ोसियों से झगड़ा करो|’

‘तेरा बापू अपने आपको समझता क्या है| इतने अच्छे पड़ोसियों से कोई झगड़ा करता है? अरे, अच्छे पड़ोसी तो हीरे-जवाहरात से भी ज्यादा कीमती होते है|’

‘बापू ने बहुत बड़ी मछली पकड़ी है|’

‘हें! क्या कहा तूने, बहुत बड़ी मछली…?’

‘हाँ माँ|’

‘तब तो मैं अभी झगड़ा करके आती हूँ|’

‘पर क्यों माँ?

‘जब तेरे बापू मछली लेकर आएँगे तो पड़ोसियों को भी हिस्सा देना पड़ेगा| जब पड़ोसियों से बोलचाल ही बंद हो जाएगी तो किसी को भी कुछ नहीं देना पड़ेगा|’ इतना कहकर उसने अपने चेहरे पर कालिख पोती तथा कान के पीछे कुछ पत्तियाँ खोंसी और घर से बाहर निकल गई|

‘हे ईश्वर, यह तुमने अपनी क्या हालत बना रखी है?’ एक पड़ोसन ने कहा|

‘कहीं तुम्हारा दिमाग तो नही घूम गया?’ दूसरी पड़ोसन बोली|

‘तू मुझे पागल कह रही है, तेरी इतनी हिम्मत|’

फिर देखते-ही-देखते उस औरत ने झगड़ना शुरु कर दिया| नौबत यहाँ तक आ गई कि कोतवाल को बीच-बचाव के लिए आना पड़ा|

वह उनको पकड़कर हाकिम के पास ले गया| हाकिम ने ध्यान से दोनों के बयान सुने और फैसला दिया, ‘सारे फसाद की जड़ जोगराम की पत्नी है| इस पर आठ सिक्कों का जुर्माना किया जाता है|’

‘आठ सिक्कें!’

आठ सिक्कों का जुर्माना अदा करके वह रुआंसी सूरत लिए घर की ओर चल दी| इन आठ सिक्कों से मैं बड़ी-बड़ी चार मछलियाँ खरीद सकती थी| अब मेरा पति जो बड़ी मछली लानेवाला है, वह इस खर्च और झगड़े के काबिल हो तो बात बन सकती है- यही सोचती हुई वह घर की ओर चली जा रही थी| तभी उसे शोरगुल सुनाई दिया| लगता है बच्चे किसी का मज़ाक उड़ा रहे हैं| फिर वह उस ओर गई तो देखा कि वह उसका पति ही है|

उसने सब बच्चों को डाँटकर भगा दिया|

‘हुआ क्या है? तुम्हारे कपड़े कहाँ है, तुम्हारी आँख को क्या हुआ और वह मछली कहाँ है?’

‘मेरा काँटा किसी बड़े पौधे की जड़ में अटक गया था और मैं समझा कोई बड़ी मछली फँसी है| जब मैं काँटा निकालने की कोशिश कर रहा था तो जड़ उखड़कर मेरी आँख में आ लगी और जब मैं किनारे आया तो देखा कि कोई मेरे कपड़े उठारकर भाग रहा है|’ दर्द से कराहता हुआ जोगराम बोला|

फिर वह दोनों पागलों जैसी हालत में अपने घर की ओर चल पड़े|

शिक्षा: दुख-सुख को आपस में बाँटने से प्रेम बढ़ता है| अपने हिस्से में से थोड़ा-सा किसी को दे देने से पहाड़ नही टूट जाता| लेकिन जोगराम और उसकी पत्नी तो आकंठ लोभ में डूबे थे और लालची व्यक्ति कभी सुखी नही हो सकता|

महल में