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खजाने का रहस्य

रामसुख और मनसुख दो जमींदार घनिष्ठ मित्र थे| जब मनसुख की पत्नी ने पुत्र को जन्म दिया तो रामसुख बोला…

‘बड़े भाग्यवान हो, ईश्वर ने तुम्हें पुत्र दिया है|’

‘हाँ, मैं सचमुच ही बहुत भाग्यवान हूँ| लेकिन एक चिंता सता रही है कि मेरे मरने के बाद यदि मेरे बेटे को धन-संपति न मिली तब क्या होगा? इसीलिए सोचता हूँ कि उसके भविष्य के लिए धन को जंगल में कहीं छिपा दूँ?’ मनसुख बोला|

‘हाँ, यह ठीक रहेगा, इससे चोरी का खतरा भी टल जाएगा|’ रामसुख बोला|

दूसरे ही दिन मनसुख अपने एक विश्वसनीय नौकर चंदू को लेकर जंगल की ओर चल पड़ा| बीच जंगल में जाकर मनसुख ने धन को सुरक्षित स्थान पर छिपा दिया| फिर वह अपने नौकर चंदू से बोला, ‘जब मेरा बेटा समझदार हो जाए तो उसे इस खजाने के बारे में बता देना| इसकी किसी को कानोंकान ख़बर न हो, इस बात का ध्यान रखना|’

समय गुज़रता गया और आखिर एक दिन मनसुख की मृत्यु हो गई| जब उसका बेटा चेतन जवान हो गया तो वह अपने पिता के मित्र रामसुख से जाकर मिला|

रामसुख ने अपने मित्र के पुत्र की आवभगत की और कहा, ‘कहो, कैसे आना हुआ?’

‘एक बात मेरी समझ में नही आती चाचाजी| मेरे पिता के पास काफ़ी धन था किंतु अब ज़मीन-जायदाद की देखरेख के लिए मेरे पास फूटी कौड़ी भी नही है, मैं क्या करूँ?’

‘लेकिन तुम्हारे पिता ने तो तुम्हारे लिए काफ़ी धन रख छोड़ा था|’ रामसुख ने सोचपूर्ण स्वर में कहा|

‘तो कहाँ गया वो धन? मुझे तो उसके बारे में कोई जानकारी नही है|’ मनसुख का पुत्र चेतन उदास स्वर में बोला|

‘तुम्हारे पिता ने धन कहीं जंगल में तो नही छिपा रखा है| अपने सेवक चंदू से पूछो, शायद उसको पता हो|’ रामसुख बोला|

उसके बाद चेतन अपने सेवक चंदू के पास गया और उससे पूछा, ‘तुम्हें पता है, पिताजी ने धन कहाँ छिपाया था?’

‘हाँ मालिक! जंगल में मेरे सामने ही गाड़ा था|’ चंदू ने कहा|

‘चलो, ले आएँ| मुझे धन की ज़रूरत है|’ चेतन ने अधीरता से कह|

वे तुरंत जंगल के बीच पहुँचे तो चेतन बोला, ‘बताओ, धन कहाँ गाड़ा था?’

‘लेकिन तुम्हारे पास क्या सबूत है की तुम्हारे पिता ने वह धन तुम्हारे लिए ही यहाँ गाड़ा था?’ लालची चंदू के अचानक ही तेवर बदल गए|

चेतन हक्का-बक्का रह गया| वह सोच में पड़ गया की आखिर एकाएक इसमें यह परिवर्तन कैसे आ गया, अब मैं क्या करूँ?

चेतन ने उसकी बात को अनसुना करके कहा, ‘चलो, अब घर वापस चलते है|’

चंदू शांत मुद्रा में उसके पीछे-पीछे चल पड़ा|

कुछ दिनों के बाद वे दोनों फिर बीच जंगल में जा पहुँचे और एक ख़ास जगह पर पहुँचकर रुक गए|

‘अरे मूर्ख! तू यहाँ क्या लेने आया है?’ चंदू ने फिर तेवर बदल लिए|

‘कुछ नही|’ चेतन विनम्रता से बोला, ‘चलो, वापस घर चलते है|’

वे फिर खाली हाथ घर लौट आए| रास्ते में चेतन ने सोचा, ‘चंदू को यहाँ पहुँचकर आखिर हो क्या जाता है जबकि घर से चलते समय वह ठीक-ठाक होता है|’ वह जितना सोचता उतना ही उलझता जाता|

फिरे उसने सोचा कि मुझे अपने पिताजी के मित्र रामसुख चाचा से इस बारे में सलाह लेनी चाहिए| हो सकता है वे ही कोई हल निकाल दे| यह सोचकर वह फिर रामसुख के पास जा पहुँचा और सारी बातें उनसे कह डाली|

‘इसका मतलब यह है कि जंगल में जिस ख़ास जगह पर पहुँचते ही वह तुम्हें गाली देने लगता है, निश्चित रूप से धन उसी जगह गड़ा होगा|’ वृद्ध रामसुख ने सोचते हुए कहा|

‘आपने यह अनुमान कैसे लगा लिया?’ चेतन ने पूछा|

‘धन-दौलत के लालच में अच्छे-अच्छों का ईमान डगमगा जाता है| शायद चंदू के साथ भी ऐसा ही हुआ है|’ रामसुख ने कहा|

‘अगर ऐसा है तो उसने अभी तक धन निकाला क्यों नही?’

‘शायद उसकी हिम्मत नही पड़ी हो|’ रामसुख ने कहा|

‘लेकिन मुझे अब क्या करना चाहिए, आप ही कोई रास्ता दिखाएँ|’ चेतन ने कहा|

‘इस बार जब तुम उसके साथ जाओ और जैसे ही वो गाली देने लगे तो…|’ फिर रामसुख ने चेतन को सारी योजना समझा दी|

जैसे ही उस अगले दिन चेतन चंदू के साथ जंगल में पहुँचा| चंदू ने फिर गालियाँ देनी शुरू कर दी| किंतु इस बार चेतन ने योजनानुसार चंदू को आड़े हाथों लिया, ‘तेरी इतनी मज़ाल कि मुझसे इस तरह से बात करे?’ फिर उसने चंदू का गला पकड़ लिया|

अब चेतन ने उस जगह को खोदना शुरू कर दिया और चंदू से कहा, ‘जब तक मैं न कहूँ अपनी जगह पर ही खड़े रहना|’

थोड़ा खोदने पर ही खज़ाना मिल गया| चेतन फूला नही समाया| फिर उसने चंदू को हुक्म दिया, ‘इसे घर ले चल|’

इस प्रकार चेतन धन लेकर घर आ गया और चंदू भी जीवनभर बड़ी ईमानदारी और निष्ठा से उसकी सेवा करता रहा|

शिक्षा: अमानत में खयानत करना बुरी बात है| चेतन के पिता ने चंदू पर विश्वास करके धन जंगल में गाड़ा था| लेकिन चंदू की नीयत बदल गई और जब चेतन ने कड़े तेवर दिखाए तो उसका नौकर-बोध जाग उठा| सीधी उँगली से घी नही निकलता, कभी-कभी उँगली टेढ़ी भी करनी पड़ती है|