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होनहार पुत्र

एक सुबह रामदीन अपने वृद्ध पिता को बैलगाड़ी में बिठाकर कहीं ले जा रहा था कि उसका पुत्र बोला, ‘पिताजी, आप दादाजी को कहाँ ले जा रहे है?’

‘बेटा, शहर ले जा रहा हूँ|’

‘मैं भी शहर चलूँगा|’ लड़का जिद्द करने लगा|

‘नही बेटा, तू यहीं ठहर, तुझे तेरी माँ अच्छे-अच्छे पकवान देगी|’ रामदीन ने अपने बेटे को समझाते हुए कहा|

‘भीतर चल बेटे, कल तेरे बापू मिठाई लाए थे, वह खाने को दूँगी|’ उसकी माँ ने भी प्रलोभन दिया|

मगर लड़का नही माना और भागकर अपने दादाजी की गोद में जा बैठा|

‘अजीब मुसीबत है| अब इसे भी साथ ले जाना पड़ेगा|’ रामदीन ने झुँझलाते हुए कहा|

थोड़ी दूर चलने पर रामदीन ने एक कब्रिस्तान के आगे गाड़ी रोक दी और खुद गाड़ी से नीचे उतर गया, ‘तुम दोनों यही रुको, मैं अभी आता हूँ|’

फिर वह कब्रिस्तान के एक कोने में जाकर गड्ढा खोदने लगा|

थोड़ी देर बाद उसका बेटा भी वहाँ आ पहुँचा|

‘तू यहाँ क्यों आया? जा, अपने दादा के पास जा|’ रामदीन ने उसे धमकाते हुए कहा|

‘यह तुम क्या कर रहा हो बापू?’ लड़के ने मासूमियत से पूछा|

‘ज़मीन खोद रहा हूँ, दिखाई नही देता|’

‘क्यों? बापू! यहाँ कुछ गड़ा है क्या?’ लड़के ने पूछा|

रामदीन ने सोचा- लगता है इसे सच बात बतानी ही पड़ेगी| फिर वह बोला, ‘बेटा, मैं तुम्हारे दादा के लिए कब्र खोद रहा हूँ|’

‘दादाजी के लिए? लेकिन वे तो अभी जिंदा है?’ लड़के ने आश्चर्य से अपने पिता की ओर देखा|

‘हाँ| लेकिन वे इतने बूढ़े हो गए है कि बोझ लगने लगे है| वैसे भी वे ज्यादा दिन जिंदा नही रहेंगे| इसलिए तुम्हारी माँ ने और मैंने सोचा कि उन्हें अभी से दफ़ना देने में हर्ज ही क्या है|’ रामदीन ने उसे समझाया|

‘ये तुमने बड़ा अच्छा किया बापू, जो मुझे बता दिया|’ लड़के ने कहा|

‘मुझे पूरा विश्वास है कि मेरा राजू तो किसी को नही बताएगा|’

थोड़ी देर के लिए फावड़ा मुझे दोगे, बापू|’ लड़का बोला|

रामदीन ने उसे फावड़ा थमा दिया, ‘पता नही क्या करना चाहता है यह?’ फिर उसने अपने लड़के का पीछा किया|

लड़का कुछ दूर जाकर फावड़े से ज़मीन खोदने लगा|

‘यह क्या कर रहे हो बेटा?’

‘ज़मीन खोद रहा हूँ बापू| तुम्हें ज्यादा इंतजार नही करवाऊँगा|’ लड़के ने कहा|

‘मैं तुम्हारी बात समझा नही बेटे?’ रामदीन असमंजस में पड़ गया|

‘जब तुम बूढ़े हो जाओगे और मैं तुम्हारी कब्र खोदूँगा तो तुम्हें बाहर इंतजार करना पड़ेगा| इसलिए पहले से ही कब्र खोदकर तैयार कर रहा हूँ, ताकि तुम्हें दादाजी की तरह इंतजार न करना पड़े| मैं तुम्हें यहाँ लाकर सीधे इस गड्ढे में धकेल दूँगा|’

‘क्या तुम मुझे जिंदा दफ़ना दोगे?’ रामदीन झुँझला उठा|

‘बापू, तुम भी तो दादाजी के साथ ऐसा ही करने जा रहे हो| मैं भी परिवार की परिपाटी को निभाऊँगा|’

‘हे भगवान! मैं कैसा अनर्थ करने जा रहा था| बेटा, तूने मेरी आँखें खोल दी है| तूने मुझे भयानक पाप करने से बचा लिया| चलो, अब वापस अपने घर चलते है|’

इतना कहकर रामदीन अपने पिता को घर ले गया और जीवनभर उनकी अच्छी तरह देखभाल और सेवा की|

शिक्षा: बच्चों का मन कोमल होता है, उस पर जैसी छाप छोड़ी जाए वैसा ही बन जाता है| रामदीन अपने पिता के लिए कब्र खोद रहा था तो रामदीन का बेटा उसके लिए| तभी तो कहा गया है कि दूसरों को गिराने के लिए कुआँ खोदोगे तो स्वयं के लिए खाई तैयार मिलेगी|