ढोलक का राज

एक गांव में एक नाई रहता था | उसका काम था लोगों की इजामत बनाना | उसकी एक बुरी आदत थी कि उसके पेट में कोई बात पचती नहीं थी | अत: इधर की बातें उधर बताने का उसे शौक था |

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एक बार राजा का शाही नाई बीमार पड़ गया तो राजा ने उस नाई को बुलवा भेजा | राजमहल जाकर नाई राजा के बाल काटने लगा तो उसने देखा कि राजा के कान गधे जैसे हैं, जो कि पगड़ी व राजमुकुट के कारण दिखाई नहीं देते थे |

नाई हजामत करके जाने लगा तो राजा ने नाई को पैसे देकर कहा – “यहां जो कुछ तुमने देखा है, वह किसी को नहीं बताओगे | मेरे कानों का राज तुमने जान लिया है | यह राज तुमने किसी को भी बताया तो तुम्हें पकड़वाकर तुम्हारी जीभ काट दी जाएगी और कोड़ों की सजा भी मिलेगी | लो, राज को राज रखने के लिए यह मोती की माला इनाम में ले जाओ |”

नाई ने निश्चय कर लिया कि राजा के कानों के बारे में किसी को नहीं बताएगा वरना उसे सजा मिलेगी |

नाई घर पहुंचा तो बार-बार उसका मन करता कि वह राजा के कानों के बारे में अपनी पत्नी को बता दे | परंतु जीभ कटने के डर से उसने पत्नी को नहीं बताया और रात भर करवटें बदलता रहा |

एक-दो बार पत्नी ने भी पूछा कि क्यों बेचैन हो रहे हो, फिर भी वह चुप रहा | अगले दिन वह दुकान पर गया तो उसका मित्र हजामत बनवाने आया |

नाई ने सोचा कि मित्र को बताने में क्या हर्ज है | फिर याद आया कि राजा उसकी जीभ कटवा देंगे और कोड़ों से पिटवाएंगे | अत: कुछ न बोला | नाई का मन बेचैन हुआ जा रहा था | वह अपनी बात किसी को बताना चाहता था |

नाई अपनी बेचैनी कम करने के लिए अपने रिश्तेदार के यहां गया ताकि राजा के कानों के बारे में बता सके | परंतु वहां जाकर भी डर के मारे हिम्मत नहीं हुई |

नाई बहुत बेचैन हो गया | उसके पेट में दर्द होने लगा | वह हर समय यही सोचता रहता कि राजा के कानों के बारे में किसे बताए | धीरे-धीरे उसका पेट दर्द बढ़ने लगा तो वह और भी परेशान हो उठा | उसे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे, क्या न करे ?

घबराहट में नाई जंगल की ओर भागा | उसने सोचा कि जंगल में पेड़-पौधे तो बेजुबान होते हैं, क्यों न उन्हें ही बता दिया जाए | कुछ सोच-विचार के बाद वह एक पेड़ के पास गया और जाकर धीरे से बोला – “राजा के गधे के कान, राजा के गधे के कान |”

अचानक नाई का पेट दर्द ठीक हो गया और वह घर वापस आ गया | उसी दिन जंगल में एक लकड़हारा लकड़ी काटने गया तो एक बड़ा वृक्ष देखकर उसकी लकड़ी काटने लगा |

संयोगवश यह वही वृक्ष था, जिसे नाई ने अपना राज सुनाया था | उस पेड़ को काटकर उसकी ढोलक बनाई गई | ढोलक एक घर में विवाह के अवसर पर बजाई गई तो ठीक से बजने के स्थान पर खास आवाज निकल रही थी | लोगों ने सुना ढोलक बार-बार कह रही थी – “राजा के गधे के कान, राजा के गधे के कान |”

पहले तो लोगों को यकीन नहीं हुआ, परंतु बार-बार ढोलक यही कहती रही |

पूरे गांव में खबर फैल गई ‘राजा के गधे के कान’ | लोग ढोलक का गाना सुनने के लिए उसे किराए पर लेने आते और खूब मजा लेकर सुनते | अब पूरे गांव में राजा के कानों की चर्चा थी |

धीरे-धीरे खबर राजा तक पहुंची | राजा जानता था कि इस नाई के अलावा यह काम किसी का नहीं हो सकता | फिर उसने नाई को बुलवा भेजा | नाई डरता-डरता आया | राजा ने कहा – “तुमने हमारी आज्ञा का उल्लंघन किया है, तुम्हें सजा अवश्य मिलेगी | तुम्हारी जीभ काट दी जाएगी |”

नाई राजा के पैरों में पड़कर गिड़गिड़ाने लगा, “मेरी जीभ मत कटवाइए | मैंने तो सिर्फ पेड़ से कहा था |”

राजा का दिल पिघल गया और आज्ञा दी कि इसकी जीभ न काटी जाए, परंतु सजा के तौर पर इसे कोड़े जरूर मारे जाएं ताकि यह इधर की बात उधर करने की आदत को सुधार सके |

नाई पर जमकर कोड़े बरसाए गए और उसने कसम खाई कि वह कभी भी इधर की बात उधर नहीं करेगा |