बड़प्पन

कश्मीर की एक घटना है| हम लोग एक दिन शिकारे में बैठकर ‘डल’ झील में घूम रहे थे| हमारे शिकारे वाला बड़ा मौजी आदमी था| डांड चलाते-चलाते कोई तान छेड़ देता था, वह खूब जोर से गाता था| वह हमें तैरती खेती दिखाने ले गया| वह कमल के बड़े-बड़े पत्तों और फूलों के बीच घूमता हुआ उस जगह आया, जहां एक सुंदर लड़की तीर-सी पतली नाव पर बैठी अपने खेत देख रही थी|

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शिकारे वाला बोला – “यह यहां के जमींदार की लड़की है| सब खेत इसी के हैं| बड़े ऊंचे दिमाग की है, आप बुलाओ तो नहीं आएगी|”

हमने हाथ का इशारा किया| उसने मुंह फेर लिया|

शिकारे वाले ने कहा – “देखा? अच्छा अब मैं बुलाता हूं|”

उसने कश्मीरी भाषा में कुछ कहा और हमारे देखते-देखते वह लड़की अपनी नाव को लेकर हमारे पास आ गई|

वह हमारी भाषा नहीं जानती थी, हम उसकी भाषा नहीं जानते थे| शिकारे वाले की मदद से हमने उससे कई सवाल पूछे और उसने जवाब दिए| उसकी नाव पर बहुत से कमलगट्टे और मक्की के भुट्टे रखे थे, हमने विनोद में कहा – “इन्हें हमें नहीं दोगी?”

उसने मुस्कराते हुए बहुत-से भुट्टे और कमलगट्टे हमारी ओर बढ़ा दिए|

उन्हें लेते हुए हमने पूछा – “इनके कितने पैसे हुए?”

उसका चेहरा तमतमा गया| उसने हमारी ओर देखा और कहा – “बड़े ओछे आदमी हो! ये मेरे खेत के हैं| तुम मेरे मेहमान हो| पैसे की बात करते तुम्हें शर्म नहीं आती? हम इतने गए बीते नहीं हैं|”

और हम कुछ कहें उससे पहले ही वह अपनी नाव को तेजी से खेकर नौ-दो-ग्यारह हो गई|