अनन्त लालसा

बिरजू एक गरीब चरवाहा था | दिन भर दूसरों की गाएं चराकर शाम को थका-मांदा घर लौटता था | उसकी कमाई केवल इतनी थी कि मुश्किल से एक वक्त की रोटी जुटा पाता था |

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उसके दो छोटे बच्चे थे | दोनों ही पूर्ण भोजन न मिल पाने के कारण बेहद दुर्बल थे | बिरजू बहुत परेशान रहता था कि किसी तरह उसकी आमदनी बढ़ जाए |

एक दिन की बात है | बिरजू जंगल में बैठा भगवान का ध्यान कर रहा था कि अचानक उसे महसूस हुआ कि उसके सामने कोई खड़ा है | उसने गरदन उठाई तो साक्षात् ईश्वर के दर्शन किए |

ईश्वर बोले – “हम तुम्हारी मेहनत और ईमानदारी से खुश हुए हैं | तुम कोई एक इच्छा करो, हम उसे पूरा कर देंगे |”

बिरजू बोला – “मैं बहुत गरीब हूं | अगर मेरे पास भी अपनी गाय होती तो मैं सुखी हो जाता |”

ईश्वर ने उसकी प्रार्थना सुन ली और उसे एक गाय दे दी | अब बिरजू सुबह उठकर गाय का दूध दुहता | दिन में गाय को बाहर चराकर लाता | शाम को फिर गाय का चारा काट कर सानी तैयार करता | फिर रात को दूध दुहता |

इस प्रकार बिरजू का पूरा दिन गाय के काम-काम में बीतने लगा | उसके बच्चों को दूध मिलने लगा | उसकी पत्नी भी गाय की देखभाल व घर का काम-काम करती | इसी तरह कुछ दिन बीत गए |

तब बिरजू सोचने लगा कि गाय का दूध सारा घर में ही खर्च हो जाता है | थोड़ा बहुत ही दूध बचता है | चलो उसे दूसरों को बेच दिया करूं | इससे कुछ आमदनी बढ़ेगी |

धीरे-धीरे वह गाय का काफी दूध बेचने लगा | थोड़ा समय बीता तो बिरजू को लगने लगा कि यदि उसके पास गाय की जगह भैंस होती तो कितना अच्छा होता | वह सारा दूध बेच भी लेता जिससे उसकी आय बढ़ जाती और घर में बच्चों व पत्नी को भी दूध की कमी न रहती |

वह परेशान रहने लगा | एक दिन वह विचारों में खोया था कि उसे पुन: ईश्वर के दर्शन हुए | ईश्वर बोले – “क्या बात है पुत्र, बहुत परेशान लगते हो |”

बिरजू बोला – “प्रभु, आपकी कृपा से मुझे गाय मिल गई परंतु यदि मेरे पास गाय की जगह एक तगड़ी भैंस होती तो मैं ज्यादा सुखी हो जाता | परंतु तब मुझे यह बात सूझी ही न थी |”

“चिंता क्यों करते हो पुत्र ! मैं तुम्हारी इच्छा पूरी किए देता हूं |” कहकर ईश्वर अन्तर्धान हो गए |

बिरजू को भैंस मिल गई | उसकी भैंस सुबह-शाम 15 किलो दूध देती |वह दूध हलवाई के यहां बेच आता | इस तरह उसकी आमदनी बढ़ गई | वह खुश रहने लगा | उसके बच्चे स्कूल जाने लगे | पत्नी अच्छे कपड़े पहनने लगी |

कुछ दिन बाद बिरजू फिर सोचने लगा कि एक भैंस से क्या काम चलता है | उसने गलती की जो ईश्वर से एक ही भैंस मांगी, उसे कम से कम पांच भैंसें मांगनी चाहिए थीं |

वह आंखें बंद किए सोच ही रहा था कि ईश्वर ने उसे पुन: दर्शन दिए पर पूछा – “क्या बात है पुत्र, तुमने गाय मांगी, मैंने तुम्हें गाय दी | फिर भी तुम सुखी नहीं हुए | फिर तुमने भैंस मांगी, मैंने तुम्हें भैंस दी | परंतु तुम अभी भी परेशान और दुखी दिखाई देते हो |”

“प्रभु, यह ठीक है कि मैंने भैंस मांगी थी, परंतु एक भैंस से घर के खर्च पूरे नहीं हो पाते, इस कारण मैं परेशान हूं |” बिरजू बोला |

ईश्वर बोले – “फिर क्या चाहते हो ? चलो मैं तुम्हारी एक इच्छा और पूरी कर देता हूं, लेकिन यह अंतिम इच्छा होनी चाहिए |”

बिरजू सोचने लगा कि अभी तक मैं पांच भैंसे लेने की सोच रहा था | लेकिन भगवान कह रहे हैं तो अब मुझे अंतिम इच्छा पूरी करा लेनी चाहिए | अत: मुझे पांच की जगह दस भैंसे मांगनी चाहिए | अत: बिरजू बड़े विचार के बाद बोला – “प्रभु, छोटा मुंह बड़ी बात न समझें तो मुझे दस भैंस दिलवा दें | फिर मैं आपसे कुछ नहीं मांगूगा |”

प्रभु बोले, “ऐसा ही होगा |” और अन्तर्धान हो गए | बिरजू बहुत खुश हो गया |

अब उसके सामने समस्या हुई कि इतनी भैंसों को रखे कहां ? वह मुसीबत में पड़ गया | इतनी सारी भैंसे रखने के लिए बहुत सारी जमीन चाहिए थी | जमीन के भाव बहुत ऊंचे थे |

उसने दिमाग पर जोर लगाया और दो भैंसे बेचकर थोड़ी-सी जमीन खरीद ली | उसके चारों तरफ बाड़ लगा ली और भैंसों की देखभाल करने लगा | लेकिन इतनी सारी भैंसों की देखभाल करना उसके अकेले के वश में नहीं था |

कभी भैंसों के लिए चारे की जरूरत होती, तो कभी भैंसों का गोबर साफ करना होता | कभी इतनी सारी भैंसों का दूध निकालने की समस्या होती |

इस काम में सहायता के लिए उसने 2-3 नौकर रख लिए | सब नौकर अलग-अलग काम करते थे | कोई गोबर उठाता, कोई सफाई करता तो कोई भैंसों का दूध दुहता | फिर उसने उन भैसों का दूध जगह-जगह भेजने का प्रबन्ध कर दिया | इस काम के लिए दो लड़के रख लिए जो घर-घर दूध बेचने जाते थे |

बिरजू की डेयरी चल निकली, उसके पास धन की कमी न रही | अब उसके दोनों बच्चे बड़े होने लगे थे | उन बच्चों की बड़ी-बड़ी फरमाइशें होने लगीं | पत्नी को रोज जेवरों की चाह बनी रहती |

कुछ दिन यूं ही बीत गए | धीरे-धीरे बिरजू को लगने लगा कि उसने कैसा गंदा धंधा कर रखा है | डेयरी में चारों तरफ मक्खियां भिनभिनाती रहती हैं, हर तरफ गोबर पड़ा रहता है |

बिरजू सोचने लगा कि वह शहर में होता तो अपने बच्चों को अच्छे अंग्रेजी स्कूल में पढ़ाता | क्या ही अच्छा होता कि उसकी भैंस और दूध के कारोबार की जगह शहर में कोई अच्छा व्यापार या दुकान होती या कोई छोटी-मोटी फैक्टरी होती |

धीरे-धीरे बिरजू अपने काम से ऊब कर परेशान रहने लगा | वह बार-बार ईश्वर को याद करने लगा | वह सोचता कि किसी तरह एक बार प्रभु उसे फिर दर्शन दे दें तो कितना अच्छा हो | मैंने मांगा भी तो क्या ? भैंसे और दूध का व्यापार ? यह भी कोई काम है ? उसे कोई ढंग का काम मांगना चाहिए था |

एक दिन वह बैठा ईश्वर की प्रार्थना कर रहा था कि उसे लगा कि ईश्वर उसके सामने हैं | उसने आंखें उठाकर देखा तो ईश्वर के साक्षात् दर्शन किए | वह ईश्वर के पैरों में गिर पड़ा और गिड़गिड़ाकर बोला – “हे प्रभु मैं तो निरा बेवकूफ हूं | मैंने आपसे जो मांगा सो आपने दिया | परंतु जाने क्या सोचकर मैंने आपसे भैंसे मांग लीं, मुझे इनकी कतई जरूरत नहीं | आप मेरी एक इच्छा और पूरी कर दीजिए फिर मैं आपसे कभी कुछ नहीं मांगूंगा |”

ईश्वर बोले – “उठो वत्स, मैंने तुमसे पहले ही कहा था कि यह आखिरी इच्छा है, सोच-समझ कर मांगना और तुमने खूब सोच-विचार कर दस भैंसे मांगीं थीं | अब तुम कहते हो कि तुम्हें भैंसे नहीं चाहिए | लेकिन मैं मजबूर हूं क्योंकि तुम्हारी इच्छाएं अनन्त हैं | एक के बाद दूसरी इच्छा जन्म लेती जाती है | तुम जैसे थे वैसे ही रहो |”

यह कहकर ईश्वर अन्तर्धान हो गए | धीरे-धीरे बिरजू के व्यापार में घाटा हो गया | भैंसे बीमार होकर मरने लगीं | कुछ दिन बाद घर की वही पुरानी हालत हो गई | वह दूसरों की गाएं चराने लगा और उसी तरह चरवाहा बन कर गरीबी का जीवन बिताने लगा |